अब चीन की मीडिया ने रूस के व्लादिवोस्टॉक पर ठोका अपना दावा, पुतिन नाराज़ हुए तो छोड़ेंगे नहीं!

अब पुतिन से पंगा लेने चला है मूर्ख चीन!

व्लादिवोस्टॉक

क्या चीन को अब कोई दोस्त नहीं चाहिए? क्या चीन को अपने बॉर्डर पर शांति की ज़रूरत नहीं? शायद नहीं, क्योंकि उसे तो अपने पड़ोसियों की ज़मीन चाहिए। चीन दक्षिण चीन सागर, ताइवान, जापान और भारत की ज़मीन पर तो अपना दावा करता ही है, अब उसने यही काम दोबारा रूस के साथ करना शुरू कर दिया है। दरअसल, चीनी सोशल मीडिया Weibo पर जैसे ही रूसी दूतावास की ओर से व्लादिवोस्टॉक की 160वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में एक पोस्ट डाली गयी, तो उससे चीनी यूजर्स, चीनी पत्रकारों और चीनी राजदूतों को बहुत पीड़ा पहुंची। उन्होंने जल्द ही यह दावा करना शुरू कर दिया कि व्लादिवोस्टॉक ऐतिहासिक रूप से चीन का हिस्सा रहा है, और व्लादिवोस्टॉक पर रूस का कब्जा अवैध है। उन्होंने यह भी दावा किया कि वर्ष 1860 में जब अंग्रेजों और फ्रांसियों के हाथों चीन की हार हो गयी थी, तो रूस ने व्लादिवोस्टॉक पर कब्जा जमा लिया था।

ज़मीन माफ़िया चीन की ओर से सबसे पहले यह दावा CGTN के पत्रकार ने किया। उन्होंने ट्विटर पर अपना रोष प्रकट करते हुए लिखा “चीन में रूसी दूतावास की इस पोस्ट का बिलकुल भी स्वागत नहीं है। व्लादिवोस्टॉक का इतिहास यह है कि वर्ष 1860 में रूस ने यहाँ सैन्य कार्रवाई कर इसे अपने में मिला लिया था। लेकिन यह रूस के कब्ज़े से पहले चीन का हेशनवाई शहर था”।

चीन अपने गुलाम पत्रकारों को ऐसे ही इस्तेमाल करता है। भारत के खिलाफ CGTN के गुलाम पत्रकार 24 घंटे जहर उगलते रहते हैं, और भारत की ज़मीन पर अपना दावा ठोकते हैं। प्रोपेगैंडा के लिए चीन से बेहतर मीडिया का इस्तेमाल शायद ही कोई देश करता हो। कोई भूला नहीं होगा जब इसी CGTN ने एक ऐसी विवादित वीडियो पोस्ट की थी जिसमें Mount Everest को “चीन के तिब्बत में स्थित” दुनिया की सबसे ऊंची चोटी बताया गया था।

ये तो बात हुई चीन के गुलाम पत्रकारों की। जब चीनी मीडिया ने व्लादिवोस्टॉक को अपना बताया, तो चीन के गुलाम राजनयिक भी मैदान में कूद पड़े। पाकिस्तान में मौजूद चीनी दूतावास में तैनात चीन के तोते ज़्हांग हेकिंग ने एक बयान देते हुए कहा “क्या व्लादिवोस्टॉक पहले हमारे चीन का शहर नहीं था?”

इसी प्रकार CCP का IT सेल भी मैदान में कूद गया। Weibo पर एक ट्विटर यूजर ने लिखा “इसे हमारी आने वाली पीढ़ी हमेशा-हमेशा याद रखेंगी”। ऐसे ही एक अन्य यूजर ने लिखा “यह हमारी पैतृक संपत्ति है जो कल वापस हमारे पास लौटेगी”।

चीन का रूस के खिलाफ यह अभियान इसीलिए हैरानी भरा है क्योंकि कोरोना के बाद अब तक रूस और चीन के बीच काफी करीबी संबंध दिखाई दिये हैं। रूस और चीन कभी बहुत अच्छे दोस्त नहीं रहे हैं और बॉर्डर विवाद के अलावा मध्य एशिया के देशों पर प्रभाव को लेकर भी रूस और चीन में तनाव देखने को मिलता है, लेकिन जिस प्रकार पश्चिम देशों की ओर से रूस पर प्रतिबंध लगा उसे अलग-थलग कर दिया गया है, उसके बाद रूस-चीन को नज़दीक आने पर मजबूर होना पड़ा है, लेकिन इसके बाद भी चीन की विस्तारवादी नीतियों पर कोई लगाम नहीं लगाई है।

व्लादिवोस्टॉक का मामला ऐसे समय में उठाया जा रहा है, जब भारत-चीन विवाद में रूस का झुकाव भारत की ओर है। रूस ने ना सिर्फ भारत को फाइटर जेट्स बेचने के लिए हामी भरी बल्कि S400 की सप्लाई भी तेजी से करने का आश्वासन दिया है, ऐसे में हो सकता है कि इसी के बाद चीन की ओर से रूस पर दबाव बनाने के लिए ऐसा दावा किया गया हो।

हालांकि, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन के इस रुख से बिलकुल भी खुश नहीं होंगे। पुतिन एक मजबूत नेता हैं, जो इससे पहले विवादित कुरील द्वीपों के लिए जापान के खिलाफ खुलकर सख्त रुख अपना चुके हैं। ऐसे में अगर चीन रूस की ज़मीन पर अपना दावा करने की गलती करता है, तो उसे भी पुतिन की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है और चीन अपना इकलौता ताकतवर मित्र खो सकता है।

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