पीएम मोदी की दहाड़ से थर-थर काँपा चीन, बोला “हम तो पुराने दोस्त हैं, हमारे व्यापार संबंध मजबूत थे”

ये क्या! चीन तो दोस्ती की माला जपने लगा!

भारत पीएम मोदी ताइवान

शुक्रवार को लद्दाख के नीमू क्षेत्र में अचानक पहुँचकर पीएम मोदी ने वहाँ तैनात जवानों के अंदर जोश भर दिया। एक बेहतरीन भाषण में उन्होंने न केवल हमारे जवानों का उत्साह बढ़ाया, बल्कि उन्हें भरोसा दिलाया कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है। उन्होंने ये भी चेतावनी दी कि चीन ने यदि स्थिति को नहीं सुधारा, तो इसके गंभीर परिणाम चीन की सरकार को भुगतने पड़ेंगे। अपने सरप्राइज़ दौरे से पीएम मोदी ने न केवल विपक्ष को चौंकाया है, अपितु चीन को सख्त चेतावनी भी दी है।

पीएम मोदी के इस कदम से चीन काफी तमतमाया हुआ है, लेकिन वह इसे खुलकर ज़ाहिर भी नहीं कर सकता। इसलिए चीन ने कहा है कि भारतीय पक्ष ऐसा कोई कदम न उठाए, जो दोनों देशों के द्विपक्षीय सम्बन्धों के लिए हानिकारक सिद्ध हो । शायद वे विदेश मंत्री एस जयशंकर का बयान भूल गए हैं, जहां उन्होंने कहा था कि चीन और भारत के बीच के संबंध अब रसातल में जा चुके हैं, और वे पहले जैसे तो अब शायद ही रहेंगे।

पीएम मोदी के लद्दाख दौरे पर चिंता व्यक्त करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत को चीन के साथ शांति और बातचीत से सब मसले सुलझाने चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार, “चीन और भारत बड़े विकासशील देश है, और भारत को किसी बहकावे में नहीं होना चाहिए।  कूटनीतिक माध्यमों से दोनों देश संपर्क में बने हुए हैं, और ऐसे में किसी भी पक्ष को ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे समस्या और बढ़ जाये”।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा, “चीन ने शांतिपूर्ण समझौतों से अपने 14 पड़ोसी देशों में से 12 के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए हैं। ऐसे में चीन को विस्तारवादी करार देना बहुत गलत है, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है”। दिलचस्प बात तो यह है कि पीएम मोदी ने अपने भाषण में एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया, लेकिन जिस तरह से चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता पीएम मोदी को नसीहत दे रहे थे, उससे स्पष्ट हो गया कि चोट कितनी सटीक लगी है।

अपने पीआर में चाहे चीन पूरी ताकत झोंक दे, पर उसे भी पता है कि भारत पर हमला उसके वैश्विक महाशक्ति बनने के सपने को हमेशा के लिए नष्ट कर सकता है। वुहान वायरस के चलते पूरी दुनिया चीन को उसके वर्तमान कद से हटाने के लिए उद्यत है। ऐसे में चीन को समझ जाना चाहिए कि भारत से पंगा लेने का मतलब है कम्युनिस्ट पार्टी का अंत। शायद चीन 1967 की कुटाई पूरी तरह भूल चुका है, अन्यथा वह भारत को आँखें दिखाने से पहले हज़ार बार सोचता, और अगर उन्होंने पाकिस्तान की भांति अल्पकालिक युद्ध करने की भी सोची, तो भी भारतीय सैनिक उनके सैनिकों को पटक-पटक के धोने में सक्षम है। ऐसे में उनका बातचीत के लिए अड़े रहना कोई हैरानी वाली बात नहीं है, लेकिन चीन को ये भी स्मरण रहे कि भारत के घाव अभी भरे नहीं है, और इसका मूल्य चीनी प्रशासन को अवश्य चुकाना पड़ेगा।

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