धर्मनिरपेक्षता इस साल CBSE के सिलेबस से हुआ बाहर, ये छोटी बात लग रही होगी पर इसका प्रभाव व्यापक है

हाल ही में वुहान वायरस के कारण कई देशों के पाठ्यक्रम में कुछ व्यापक बदलाव करने पड़े हैं, और भारत भी इससे अछूता नहीं है। अभी केन्द्रीय सेकेन्डरी शिक्षा बोर्ड यानि सीबीएसई ने वुहान वायरस के चलते पाठ्यक्रम में कुछ अहम बदलाव किए हैं, जिसमें से एक है जाति और सेक्युलरिज़्म जैसे शब्दों का हटाया जाना, और ये निर्णय एक साल के लिए वैध होगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एचआरडी मिनिस्टरी से परामर्श के बाद सीबीएसई ने यह निर्णय लिया है, ताकि सीबीएसई के अंतर्गत आने वाले विद्यालयों को थोड़ी राहत मिल सके। निर्णय के अनुसार कम से कम 30 प्रतिशत तक कोर्स लोड को घटाने को कहा गया है। नए सिलेबस में सेक्युलरिज़्म, जातिवाद इत्यादि से जुड़े चैप्टर कक्षा 11 के पाठ्यक्रम से हटाये गए हैं। इसके अलावा विभाजन को समझना, जैसे कई अन्य चैप्टर हटाये गए हैं। ये निर्णय एक वर्ष के लिए वैध रहेगा, और एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के अनुसार ये निर्णय इसलिए लिया गया है, ताकि बच्चों पर पढ़ाई का बोझ कम रहे। इसके अलावा एचआरडी मंत्री ने कोर कॉन्सेप्ट को पढ़ाने पर अधिक ज़ोर दिया है।

अब आप सोच रहेंगे, ऐसा कौन सा बड़ा बदलाव हुआ है? बदलाव ये है कि जिन शब्दों से कभी नन्हें मुन्ने बच्चों के मन में प्रोपेगेंडा का विष घोला जाता था, उसे जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए केंद्र सरकार ने कमर कस ली है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्री द्वारा दिया गया संकेत ये बताने के लिए काफी है कि सेक्युलरिज़्म, जातिवाद जैसे टॉपिक राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे नहीं है, क्योंकि इनका उपयोग अक्सर वामपंथियों के प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। हमारे इतिहास और सामाजिक ज्ञान की पुस्तकों को ऐसे ढाला गया है कि वे पुस्तक कम और कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो  के बिछड़े भाई अधिक लगते हैं।

‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द भारत के संविधान में 1976 में इन्दिरा गांधी की सरकार द्वारा ज़बरदस्ती थोपा गया था। बीआर अंबेडकर द्वारा स्वीकृत भारतीय संविधान ये मानता है कि भारत प्रारम्भ से ही पंथनिरपेक्ष रहा है, ऐसे में सेक्युलरिज़्म को थोपना एक सोची समझी साजिश का हिस्सा था। लेकिन अब ये प्रोपगैंडा और नहीं चलेगा।

अभी हाल ही में ये खबर सामने आई थी कि वर्षो से लंबित एनसीएफ़ यानि नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क की अन्तरिम रिपोर्ट दिसंबर तक जमा होनी है। ये रिपोर्ट अगले वर्ष से लागू होगी, और ऐसे में सीबीएसई बोर्ड द्वारा लिया गया यह निर्णय और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। एचआरडी मंत्रालय के अनुसार नए पाठ्यक्रम में भारतीय संस्कृति से जुड़े तथ्यों, घटनाओं पर अधिक ज़ोर देना चाहिए। अभी एचआरडी मंत्री ने यह भी कहा है कि अगले एक वर्ष तक केवल मूल विषयों पर ही अधिक ध्यान दिया जाएगा। ऐसे में ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि सेक्युलरिज़्म और जातिवाद जैसे चैप्टर्स का हटाया जाना कहीं से भी एक मामूली बदलाव नहीं है, अपितु एक व्यापक बदलाव है, जो आने वाले भारत की सूरत बदल सकता है।

इसी परिप्रेक्ष्य में NCERT ने ये सुनिश्चित किया है कि जब पुस्तकों को नए पाठ्यक्रम में ढाला जाएगा, तो मूल विषयों पर अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ऐसे में सरकार अपने वर्तमान निर्णय से फालतू का पाठ्यक्रम हटाने में लग चुकी है, और ऐसे में यह बात सिद्ध होती है कि सीबीएसई का वर्तमान निर्णय भारतीय इतिहास को पढ़ाये जाने की दृष्टि से सही दिशा में लिया गया एक छोटा, पर अत्यंत अहम बदलाव है।

 

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