पेरियार के खिलाफ खड़े होने वाले रजनीकांत तमिलनाडु में राष्ट्रवाद और हिन्दू गर्व के खाली स्थान को भर सकते हैं

रजनीकांत से बेहतर ये कोई नहीं कर सकता

रजनीकांत

सनातन संस्कृति को गाली देना कुछ लोगों के लिए स्टेटस सिंबल बन चुका है। ऐसे ही एक यूट्यूब चैनल को हाल ही में भगवान मुरूगन की स्तुति का अपमान करते हुए पकड़ा गया, जिसके लिए तमिलनाडु सरकार ने उक्त चैनल पर कार्रवाई प्रारम्भ की। लेकिन जिस तरह से एक व्यक्ति ने इस कार्रवाई के लिए सरकार का आभार जताया है, उससे एक बार फिर सिद्ध होता है कि वे जनता के बीच इतने लोकप्रिय क्यों है। हम बात कर रहे हैं प्रख्यात अभिनेता रजनीकांत की।

भगवान मुरूगन की स्तुति का अपमान करने पर यूट्यूब चैनल ‘करुप्पर कूटम’ के विरुद्ध कार्रवाई होने पर रजनीकांत ने तमिलनाडु सरकार की सराहना करते हुए कहा कि धार्मिक घृणा और ईश्वर की निंदा अब बंद हो जानी चाहिए। उन्होंने ट्वीट किया कि तमिल स्तुति ‘स्कंद षष्ठी कवचम’ को भगवान के सम्मान में गाया जाता है और उसके अपमान से ‘‘करोड़ों तमिलों’’ की भावनाएं आहत हुई हैं। ट्वीट में आगे उन्होने ये कहा, ‘स्कंद षष्ठी कवचम’ का अपमान करने और करोड़ों तमिलों की भावनाओं को आहत करने वालों के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की त्वरित कार्रवाई की दिल से सराहना करता हूं।’’  

इससे एक बार फिर रजनीकांत ने सिद्ध किया कि वे सनातन संस्कृति का अपमान किसी भी स्थिति में नहीं सहेंगे। ऐसे में अब प्रश्न ये उठता है कि क्या रजनीकांत तमिलनाडु में सनातन संस्कृति की ज्योति को पुनः प्रज्वलित करने का प्रयास करेंगे? ये कहने को इतना भी आसान नहीं है, पर रजनीकान्त जैसे व्यक्ति के लिए कठिन और असंभव तो मानो उनके शब्दकोश में है नहीं।

दक्षिण भारत में अभी भी राष्ट्रवादी विचारधारा और सनातन संस्कृति को अपार समर्थन नहीं प्राप्त हो पाया है। कर्नाटक और कुछ हद तक तेलंगाना को छोड़कर राष्ट्रवादियों को अक्सर अपमान और अपशब्दों का सामना करना पड़ता है। केरल तो उनके लिए नर्क से कम नहीं है। कहने को तमिलनाडु भी काफी हिन्दू विरोधी संगठनों के लिए अनुकूल है, पर उनकी सारी गतिविधियां कुछ शहरों तक ही सीमित है। छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामों में अभी भी उनका प्रभाव पूर्ण रूप से नहीं जम पाया है, क्योंकि स्थानीय लोग अभी भी सनातन संस्कृति को पूज्य मानते हैं। चूंकि उनका प्रतिनिधित्व करने वाला कोई दमदार व्यक्ति अभी तक राज्य में उभरा नहीं है, इसीलिए उन्हें मजबूरन डीएमके या एआईएडीएमके में ही चुनाव करना होता है।

ऐसे में रजनीकांत एक मजबूत और असरदार विकल्प के तौर पर उभर सकते हैं। वे बेहद लोकप्रिय हैं, उन्हें कोई दबाव में नहीं ला सकता, और वे चंद सेकेंड की प्रसिद्धि के लिए सनातन संस्कृति का अपमान करने में विश्वास नहीं रखते हैं। 2020 के प्रारम्भ में रजनीकांत ने हिन्दू विरोधी अलगाववादी पेरियार की धज्जियां उड़ाते हुए कहा था, “1971 में सेलेम में पेरियार ने एक रैली निकाली थी, जिसमें उन्होंने न केवल भगवान श्री रामचन्द्र और माता सीता के मूर्तियों के वस्त्र उतारे, अपितु उन्हें चप्पलों की माला भी पहनाई, परंतु किसी भी अहम अखबार ने उसे प्रकाशित नहीं किया”। इस बयान के कारण पेरियार के अंध समर्थकों में आक्रोश फैल गया और उन्होंने रजनीकांत के घर का घेराव करने की ठान ली। उन्होंने रजनीकान्त से अविलंब पेरियार के विषय में क्षमा मांगने को कहा।

लेकिन रजनीकांत ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थी। उन्होंने पेरियार के चाटुकारों को ठेंगा दिखाते हुए कहा, “1971 में क्या हुआ, उसपर मैंने क्या बोला, इस पर वाद विवाद चल रहा है। मैंने कुछ बढ़ा चढ़ाकर नहीं कहा। लोग भले आपको भ्रमित करने का प्रयास करें, पर मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। मैं इसके लिए तो माफी नहीं मांगूंगा। मेरे पास मैगज़ीन भी हैं, जिससे यह सिद्ध हो जाएगा कि मैं जो कुछ भी बोल रहा हूँ, वो सब सत्य है। मैं वही बोल रहा हूँ जो मैंने देखा”।

सच कहें तो रजनीकांत वो व्यक्ति हैं जो तमिलनाडु को न केवल केरल की राह पर जाने से बचा सकते हैं, अपितु राज्य में सनातन संस्कृति की ज्योति को पुनः प्रज्वलित भी कर सकते हैं। जिस तरह से उन्होंने भगवान मुरूगन के अपमान पर कार्रवाई की सराहना की है, वो निस्संदेह तमिलनाडु की राजनीति के लिए एक शुभ संकेत है।

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