ताइवान ने दुनिया को दिखाया कैसे चीन की अर्थव्यवस्था को बर्बाद किया जा सकता है

ताइवान

कोरोना से पहले चीन विश्व की फ़ैक्टरी के रूप में जाना जाता था। सभी देशों की कंपनियाँ चीन में कम श्रमिक लागत को देखते हुए अपने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करती थी, परंतु कोरोना के बाद से माहौल बदल चुका है और सभी कंपनियाँ चीन छोड़ कर अन्य विकल्प तलाश कर रही हैं। इन कंपनियों को लुभाने के लिए सभी देश अपने अपने देश के नियमों में बदलाव भी कर रहे हैं। ताइवान भी उन्हीं देशों में से एक था परंतु ताइवान चीन में स्थापित अपने देश या अन्य देशों की कंपनियों को चीन से अपने देश में लाने का प्रयास पिछले कई वर्षों से कर रहा है।

दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में, अमेरिका के साथ ट्रेड वार और चीनी शहरों में श्रम की लागत बढ़ने से manufacturing destination के रूप में चीन की छवि को झटका लगा है। इन कारणों को देखते हुए ताइवान ने 2016 से ही अपने देश के कंपनियों की चीन में स्थित विनिर्माण इकाइयों को ताइवान या किसी अन्य “देश” में लाने के प्रयासों को दोगुना कर दिया था। राष्ट्रपति Tsai Ing-wen ने कारखानों को चीन के बाहर स्थानांतरित करने की इच्छा रखने वाली कंपनियों के लिए वित्तीय पैकेज और अन्य प्रोत्साहनों की घोषणा की थी।

SCMP की एक रिपोर्ट के अनुसार, ताइवानी सरकार ने फाइनेंसिंग से ले कर दक्षिण-पूर्व एशिया से कम लागत वाले श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति और चीनी कर्मचारियों को ताइवान में काम करने देने का आश्वासन दिया था।

अमेरिकी टैरिफ और चीन में बढ़ती मजदूरी के कारण ताइवान के इन नीतियों के कारण ताइवान को कई फायदे हुए। इससे वर्ष 2016 में होने वाले 150 बिलियन डॉलर के क्रॉस-स्ट्रेट व्यापार में कमी देखने को मिला।

अब तक चीन से विनिर्माण इकाइयों के पलायन का सबसे अधिक फायदा भी ताइवान को ही मिला है। ताईवानी कंपनियों के अलावा गूगल जैसी कई अमेरिकी हाई टेक कंपनियाँ भी अपने मै मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को चीन से बाहर स्थापित कर रही हैं।

Nikkei Asian Review की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत ताइवान की उच्च तकनीक कंपनियों ने ताइवान के अंदर नए कारखानों के निर्माण के लिए लगभग 25 बिलियन डॉलर निवेश करने की योजना बनाई है।

विभिन्न रिपोर्टों की माने तो चीन और अमेरिका के ट्रेड वार से कंपनियों के ताइवान में स्थानांतरित होने के कारण कार्यालयों का किराए भी बढ़ गया है। यूएस-चीन ट्रेड वॉर के बाद से अमेरिकी टेक कंपनियों जैसे फेसबुक, गूगल, एप्पल- ने ताइवान में अरबों डॉलर का निवेश किया है और नए कार्यालय खोले हैं।

अर्थव्यवस्था को देखें तो दक्षिण एशिया के अन्य देशों के मुक़ाबले ताइवान के नई परियोजनाओं में निवेश के कारण इस कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में सकारात्मक आर्थिक वृद्धि दर्ज की। पहली तिमाही में इस द्वीप देश की आर्थिक वृद्धि 1.54 प्रतिशत थी। इसके साथ ही ताइवान स्थित ऑडियो सिस्टम निर्माता PT Meiloon Technology ने आधिकारिक तौर पर अपने कारखाने के चीन से इंडोनेशिया में स्थानांतरण की शुरुआत कर दी है।

Nomura report के अनुसार जापान और ताइवान की कंपनियों में अपने देश वापस जाने का ट्रेंड सबसे अधिक देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि दोनों देशों में राष्ट्रवादी सरकार है और दोनों देशों की सरकार चीन को उसकी गुंडागर्दी के कारण सबक सिखाने के दिशा में काम कर रही है और ताइवान वापस लौटने वाली कंपनियों को incentive प्रदान कर रही है।

पिछले वर्ष अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए ताइवान आने वाले लगभग 156 नए निवेश परियोजनाओं को मंजूरी दी थी जिनमें से अधिकतर स्थानांतरित होने वाले प्रोजेक्ट ही थे। इस वर्ष दुनिया भर में चीन विरोधी भावना बढ़ने के कारण अधिक से अधिक व्यापार स्थानांतरित होने की संभावना है। यही नहीं ताइवान और चीन के बीच Economic cooperation Framework Agreement भी इस वर्ष सितंबर में समाप्त हो रहा है जिसे ताइवान कूड़े में डाल सकता है।

यानि देखा जाए तो कोरोनोवायरस चीन-केंद्रित वैश्वीकरण के ताबूत में अंतिम कील साबित होने जा रहा है। कोरोनावायरस महामारी  के बाद, चीन के खिलाफ आक्रोश के कारण कंपनियों के साथ-साथ श्रमिक भी चीन के साथ किसी भी प्रकार के व्यवसाय से बचने का प्रयास करेंगे।

पिछले कुछ दशकों में चीन का उदय उसके विनिर्माण कौशल के कारण हुआ था, लेकिन आय में वृद्धि के साथ श्रम महंगा हो रहा है और कंपनियां पहले से ही स्ठांतरण का विकल्प देख रही थी। कोरोनवायरस से पैदा हुई मंदी ने इन कंपनियों को भारत और वियतनाम जैसे सस्ते श्रम वाले देशों में स्थानांतरित होने का मौका दिया है।

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