तपन घोष- ये महान व्यक्ति अब नहीं रहे, लेकिन इनकी विरासत हमेशा के लिए हमारे बीच रहेगी

बंगाल में हिन्दुत्व की अलख जगाने वाले तपन घोष अब नहीं रहे

तपन घोष

(PC: Free Press Journal)

हाल ही में बंगाल के राष्ट्रवादी खेमे को बहुत बड़ा झटका लगा, जब तपन घोष कल शाम चल बसे। हिन्दू समहति के नेता और प्रखर राष्ट्रवादी तपन घोष वुहान वायरस से पीड़ित थे, और कोलकाता के एक अस्पताल में भर्ती थे।

तपन घोष को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए भाजपा के राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता ने ट्वीट किया, “श्री घोष आज शाम [रविवार] को परलोक सिधार गए। पश्चिम बंगाल में हिन्दू एकता और संगठन के लिए लड़ने वाले वे सबसे सशक्त सिपाहियों में से एक थे। अपने निजी उदाहरण से उन्होंने हजारों को प्रेरित किया। उनका सदैव स्मरण किया जाएगा और वे सदा हमें प्रेरणा देते रहेंगे। ॐ शांति”

परंतु ये तपन घोष थे कौन, जिनकी मृत्यु से बंगाल के राष्ट्रवादी खेमे को इतना गहरा नुकसान पहुंचा है? दरअसल, वे एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे, जिन्होंने बंगाल में राष्ट्रवाद की अलख को फिर से जागृत किया था। तपन घोष 1975 से आरएसएस का अभिन्न हिस्सा रहे थे, परंतु उन्होंने वैचारिक मतभेदों के चलते संघ से अपना नाता तोड़ लिया था। तद्पश्चात उन्होने 2008 में हिन्दू समहति की स्थापना की, और 2018 तक वे इस समहति का हिस्सा रहे थे।

जिस प्रकार से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर ने महाराष्ट्र में सनातन धर्म की महिमा को पुनः जागृत किया था, उसी प्रकार से तपन घोष ने पश्चिम बंगाल में विलुप्तप्राय हो रही सनातन संस्कृति को पुनः जागृत करने के लिए एक विशाल अभियान चलाया था। जिस तरह बाल गंगाधर तिलक और वीर सावरकर ने शिवाजी जयन्ती, रामलीला और गणपति विसर्जन के जरिये सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान की नींव रखी, वैसे ही तपन घोष ने रामनवमी के जरिये बंगाल में सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान का अभियान प्रारम्भ किया।

इस अभियान को रोकने के लिए कई प्रयत्न किए, स्वयं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए मानो जय श्री राम का नारा लगाना अपराध समान  हो गया। परंतु मजाल थी कि तपन दा टस से मस हुए हों। तपन दा की मृत्यु से सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान के अभियान को बंगाल में काफी गहरा नुकसान हुआ है, जिसकी भरपाई करना बहुत ही कठिन होगा।

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