90 के दशक के बाद एक बार फिर से कांग्रेस विभाजित होने वाली है?

ये विभाजन पार्टी के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देगा

कांग्रेस को सभी पार्टियों की जननी भी कहा जाता है, क्योंकि शुरू से लेकर अब तक इस पार्टी से ना जाने कितनी पार्टियां बनी हैं और कुछ तो बहुत सफल भी हुई हैं। 90 के दशक में कांग्रेस से अलग हुई NCP और TMC जैसी पार्टियां आज भी देश की राजनीति में अहम भूमिका निभा रही हैं। इसी प्रकार वर्ष 2011 में जगन मोहन रेड्डी के कांग्रेस से अलग होने के बाद भी वे सफल नेता के तौर पर अपनी पहचान स्थापित करने में कामयाब हो पाये। 90 के दशक में कांग्रेस पार्टी से कुल 19 पार्टियां टूटकर निकलीं। 90 की दशक की कांग्रेस के नेतृत्व से ज़्यादातर नेता खुश नहीं थे और इसीलिए वे अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपनी अलग पार्टियों का गठन कर रहे थे। बड़ा सवाल यह है कि क्या 2020 में भी हमें कांग्रेस के अंदर ऐसे ही बड़ी फूट देखने को मिल सकती है? क्योंकि पार्टी के अधिकतर नेता और खासकर युवा नेता पार्टी के हाईकमान से खुश नहीं हैंं।

90 का दशक कांग्रेस पार्टी के लिए बेहद कष्टभरा रहा था। वर्ष 1994 में कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह और नटवर सिंह जैसे नेताओं ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस को तोड़कर अपनी अलग पार्टी “All India Indira Congress” का गठन कर लिया, जिसे तिवारी कांग्रेस भी कहा जाता था। इसी प्रकार वर्ष 1998 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने अपनी ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और उसके एक साल बाद ही वर्ष 1999 में महाराष्ट्र कांग्रेस में एक बड़ी फूट देखने को मिली, जब कांग्रेस नेता शरद पवार ने पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ मिलकर अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया।

आज फिर कांग्रेस पार्टी ऐसे ही एक ज्वालामुखी की तरह हो गयी है, जिसमें दबाव बढ़ता ही जा रहा है और वह कभी भी फट सकती है। पार्टी हाईकमान युवा नेता और वरिष्ठ नेताओं के मुद्दे पर बंटा हुआ दिखाई दे रहा है। राहुल गांधी वर्ष 2017 में जब कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे, तो उन्होंने युवा नेताओं को प्राथमिकता दी थी। अशोक तंवर को हरियाणा कांग्रेस का सचिव बनाया गया था, झारखंड में युवा नेता अजय कुमार को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। बिहार में अशोक कुमार चौधरी को कमान सौंपी गयी थी। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को राहुल ने खुली छूट दे दी थी। हालांकि, जैसे ही सोनिया ने दोबारा कांग्रेस की कमान संभाली, वरिष्ठ नेता युवाओं पर भारी पड़ने लगे। नतीजा यह निकला कि अशोक तंवर, अजय कुमार, सिद्धू और अशोक कुमार पार्टी को छोड़ कर चल दिये। और तो और, पार्टी के कद्दावर नेता और राहुल के करीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी BJP का दामन थाम लिया। अब पायलट भी उसी रास्ते पर हैं।

कांग्रेस पार्टी में आज पायलट के जैसे ही असंख्य कुंठित नेता हैं जो पार्टी के हाईकमान से बिलकुल भी खुश नहीं हैं। इसका एक उदाहरण हमें तब देखने को मिला था जब केंद्र सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था। उस मुद्दे पर पूरी हरियाणा कांग्रेस ने केंद्रीय हाईकमान के मत से अलग हटकर केंद्र सरकार का समर्थन किया था। इसी प्रकार वर्ष 2019 में जब हरियाणा के विधानसभा चुनाव हुए थे, तो हुड्डा समर्थकों ने अपनी रैली के पोस्टर्स में कहीं भी गांधी परिवार को जगह नहीं दी थी। हालाँकि, पार्टी हाईकमान ने किसी तरह से भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नाराजगी दूर की और हुड्डा के बागी तेवर शांत पड़ने लगे। परंतु रह रहकर हुड्डा अलग होने के संकेत देते रहते हैं।

अब राजस्थान में भी कुछ ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं, जहां पायलट अपनी अलग क्षेत्रीय पार्टी का गठन कर सकते हैं, जिसके संकेत वे पहले ही दे चुके हैं। सचिन पायलट बुधवार को यह ऐलान कर चुके हैं कि वे सिंधिया वाला रास्ता नहीं अपनाएँगे। सचिन पायलट ने बीजेपी का हाथ न थाम कर पार्टी में अपना कद और बढ़ा लिया है और इसे अपने आत्मसम्मान की लड़ाई बना दी है। शायद यही कारण है कि जितिन प्रसाद और प्रिया दत्त जैसे युवा नेता उनके समर्थन में उतरे हैं।

कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद तो पार्टी को छोड़ने हेतु कई बार संकेत दे चुके हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी न मिलने से जितिन कांग्रेस से बिलकुल भी खुश नहीं थे। तब यह खबरें चली थीं कि वे कांग्रेस पार्टी छोड़ सकते हैं। अब जब पायलट को पार्टी में दरकिनार किया गया, तो भी उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए पायलट के समर्थन मे बातें कहीं। जितिन प्रसाद ने ट्वीट किया था “सचिन पायलट के साथ मैंने सिर्फ काम ही नहीं किया, बल्कि वह मेरे अच्‍छे दोस्त भी हैं। कांग्रेस में भी कोई इस बात से मना नहीं कर सकता कि इन दोनों ही नेताओं ने पूरे समर्पण भाव के साथ पार्टी के लिए काम किया है। इसलिए मैं उम्मीद करता हूं कि ये स्थिति(राजस्‍थान कांग्रेस) जल्द सुधर जाएगी, दुखी भी हूं कि ऐसी नौबत आई”।

यही नहीं पार्टी के कई अन्य नेता भी सचिन पायलट के समर्थन में हैं और पार्टी हाई कमान कोई उचित निर्णय ले इसी का इंतजार कर रहे हैं, परन्तु पायलट के पक्ष में कोई भी फैसला नजर नहीं आ रहा।

अब अगर सचिन पायलट के साथ मिलकर हुड्डा और जितिन प्रसाद जैसे कांग्रेस के कई अन्य नेता नई पार्टी बनाते हैं, तो ये कांग्रेस के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा जो पहले से हर राज्य में अस्तित्व में रहने के लिए लड़ रही है। यानि आने वाले समय में अगर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में कोई फूट देखने को मिलती है, तो इन राज्यों से हमेशा के लिए कांग्रेस का सफाया होना तय है।

ऐसे में अगर पार्टी के नेतृत्व और हाईकमान में जल्द ही बड़े बदलाव नहीं किए गए तो इस पार्टी में फिर से एक बड़ी फूट देखने को मिलेगी, जहां पार्टी के पास मणिशंकर अय्यर, ग़ुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल, अशोक गहलोत और कमलनाथ जैसे ओल्ड गार्ड्स बचेंगे और पार्टी अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ने पर मजबूर हो रही होगी। कुल मिलाकर नयी पार्टी बनती है और वो सफल होती है तो हिंदी बेल्ट के राज्यों से कांग्रेस का सफाया होना तय है

 

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