भारत चीन विवाद का positive side effect: अंडमान एवं निकोबार द्वीपों का हो रहा है militarisation

हिन्द महासागर का boss कौन?- भारत!

(PC: Naval News)

जब से भारत और चीन के बीच बॉर्डर विवाद बढ़ा है और चीन ने कायरतापूर्ण तरीके से भारत के सैनिकों पर हमला किया है तब से ही भारत चीन को हर मोर्चे पर मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। तब भारतीय नौसेना ने चीन को स्पष्ट संदेश भेजने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में अपने युद्धपोतों और पनडुब्बियों को रणनीतिक रूप से तैनात कर दिया था। खास कर Malacca Strait में जहां से चीन का मुख्य समुद्री व्यापार होता है। अगर भारत को चीन पर और कड़ी नजर रखनी है तो अंडमान निकोबार द्वीप समूह (ANI) का सैन्यकरण सबसे आवश्यक है। ANI के सैन्यकरण से न सिर्फ चीन की गतिविधियों पर नजर राखी जा सकेगी बल्कि उसके खिलाफ Naval Blockade भी किया जा सकेगा।

इसी क्रम में भारत ने रणनीतिक रूप से स्थित अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में लगभग 5,000 करोड़ रुपये के सैन्य बुनियादी ढांचे के विकास की योजना को लागू करने की प्रक्रिया को फास्ट ट्रैक कर दिया है। इस योजना के तहत अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में अतिरिक्त युद्धपोत, विमान, ड्रोन, मिसाइल बैटरी और पैदल सेना सैनिकों को तैनात किया जा सकेगा। जिस तरह से चीन हिन्द महासागर में अपनी दादागिरी बढ़ा रहा है, यह कदम उसे देखते हुए लिया गया है।

भारतीय नौसेना ने पिछले वर्ष हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति के विस्तार के तहत अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक नए हवाई अड्डे “आईएनएस कोहासा” को कमीशन किया था। उसी दौरान अंडमान निकोबार के सैन्यकरण की योजना की कार्रवाई शुरू की गयी थी।

यही नहीं इस योजना के तहत उत्तर में स्थित INS Kohassa से ले कर दक्षिण में स्थित INS Baaz(Campbell Bay) तक 10 हजार फुट लंबा रनवे बनाया जाएगा जिससे बड़े हवाई जहाज को वहाँ उतारने में सुविधा होगी।

बता दें की अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के एक मात्र थियेटर कमांड है जहां पर थल सेना, नौसेना वायु सेना तथा कोस्ट गार्ड के सैनिक एक साथ एक कमांड में भारत की सुरक्षा का दायित्व निभाते हैं। भारत पहले से ही इस द्वीप समूह से Sukhhoi-30 MKI, लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमान Poseidon-8I और Heron-II निगरानी ड्रोन जैसे लड़ाकू जेट ऑपरेट करता है। भारत ने ANI में मौजूद naval air stations को aviation bases में बदल रहा है जिससे चीन पर कड़ी निगरानी रखी जा सके।

भारत और ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में Mutual Logistics Support Agreement यानि MLSA पर हस्ताक्षर किए थे और जापान से यही समझौता करने वाला है। इस समझौते के बाद भारत और ऑस्ट्रेलिया की सेनाओं को एक दूसरे के military bases इस्तेमाल करने की छूट मिल गयी थी। हालांकि अमेरिका, फ्रांस, सिंगापुर के साथ भारत का पहले से ही Mutual Logistics Support Agreement हो चुका है लेकिन भारत ने अभी तक इस समझौते का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया है। किसी भी देश की नेवी को अभी भारत के ANI का access नहीं है। अब चीन जिस तरह से अपने पाँव पसार रहा है उसे देखते हुए भारत को  MLSA समझौते का भरपूर फायदा उठाना चाहिए। अगर ऐसे होता है तो भारत को भी कई ऐसे महत्वपूर्ण रणनीतिक द्वीपों का access मिल जाएगा जिससे चीन को रोकने में आसानी होगी।

उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ MLSA से भारत के अंडमान एवं निकोबार द्वीप और ऑस्ट्रेलिया के कोकोस द्वीपों पर मिलिटरी बेस बनाने के समझौते का रास्ता भी खुल गया है। अगर यह समझौता हो जाता है तो इसके तहत ऑस्ट्रेलिया भारत के अंडमान का रणनीतिक इस्तेमाल कर सकेगा, तो वहीं भारत भी ऑस्ट्रेलिया के कोकोस द्वीपों का रणनीतिक फायदा उठा सकेगा। अंडमान और कोकोस, दोनों ही द्वीपों की लोकेशन बड़ी ही अहम है, क्योंकि एक तरफ जहां अंडमान straits of Malacca के मुहाने पर स्थित है, तो वहीं कोकोस द्वीप इंडोनेशिया के straits of Sunda के पास स्थित हैं। दोनों ही रास्ते दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लिए अहम ट्रेडिंग रूट्स का काम करते हैं। भविष्य में भारत और ऑस्ट्रेलिया मिलकर इन द्वीपों के जरिये बड़ी आसानी से इन ट्रेडिंग रूट्स की निगरानी कर सकते हैं।

यहाँ यह समझना आवश्यक है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह हिन्द महासागर में एक बेहद ही रणनीतिक क्षेत्र में हैं जहां से मलक्का स्ट्रेट को तुरंत ब्लॉक किया जा सकता है। मलक्का स्ट्रेट चीन के लिए बेहद अहम है क्योंकि उसके समुद्री व्यापार के अधिकतर इसी समुद्री रास्ते से हो कर गुजरते हैं। मलक्का स्ट्रेट तो दुनिया के सबसे व्यस्त ट्रेडिंग रूट्स में गिना जाता है, जिसके माध्यम से विश्व का कुल 25 प्रतिशत समुद्री व्यापार किया जाता है। मलक्का स्ट्रेट से चीन भी बड़े पैमाने पर व्यापार करता है। चीन समुन्द्र के रास्ते अपना करीब 70 प्रतिशत व्यापार करता है, और उसका एक बड़ा हिस्सा मलक्का स्ट्रेट से होकर गुजरता है। इसी के साथ चीन के कुल कच्चे तेल आयात का करीब 85 प्रतिशत हिस्सा मलक्का स्ट्रेट से होकर ही गुजरता है। जितना ज़्यादा ANI का सैन्यकरण होगा-उतना ज़्यादा ही हिन्द महासागर में भारत की पकड़ मजबूत होगी। ऐसे में भारत समुन्द्र का बेताज बादशाह बन जाएगा।

हालांकि यह स्पष्ट है कि भारत को जो काम पहले कर लेना चाहिए था वो अब कर रहा है। भारतीय पर्यवेक्षक अक्सर ANI के सैन्यकरण न होने या उसके देरी होने के कारण निराशा व्यक्त कर चुके हैं। आज तक भारत ANI का सैन्यकरण करने से डरता था, क्योंकि वह चीन को आँख नहीं दिखाना चाहता था। साथ ही साथ, भारत दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ देश भी इसके विरोध में थे। भारत नहीं चाहता था कि अन्य देशों को यह संदेश जाए की भारत दक्षिण पूर्व एशिया के देशों पर दबाव बनाने के लिए ANI का सैन्यकरण कर रहा है। परंतु जब से चीन ने हिन्द महासागर में अपनी दादागिरी दिखानी शुरू की है और भारत के साथ बॉर्डर विवाद को बढ़ा रहा है तब ANI का सैन्यकरण करने का अच्छा मौका मिल गया है। अब भारत को अंडमान निकोबार का सैन्यकरण और तेज़ कर देना चाहिए जिससे भारत की हिन्द महासागर क्षेत्र में ताकत बढ़ जाए। भारत की बढ़ती ताकत को देख कर चीन पीछे हटने पर मजबूर हो जाएगा।

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