Kleiner Perkins के मुताबिक मार्केट वैल्यू के हिसाब से दुनिया की टॉप 20 टेक कंपनियों में चीन की 9 कंपनियां शामिल हैं। Alibaba, Tencent, Ant Financials, Baidu, Xiaomi, Didi Chuxing, और JD.com जैसी कंपनियाँ दुनियाभर में operate करती हैं और हर साल करोड़ों रुपये का मुनाफा कमाती हैं।
पिछले कुछ सालों में चीन के टेक सेक्टर ने बहुत तेजी से विकास किया है, और इसके विकास में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। स्टील और एल्यूमिनियम उद्योग में विकास दर तो अब धीमी पड़ चुकी है, ऐसे में चीन के विकास में वहाँ के टेक सेक्टर का बड़ा योगदान रहा है।
यही कारण है कि लगातार 10 सालों तक लगभग 10 प्रतिशत की दर से विकास करने वाला चीन पिछले साल तक भी 6 प्रतिशत की दर से विकास कर रहा था। टेक सेक्टर इतना महत्वपूर्ण है कि अब चीन के कुल राष्ट्रीय उत्पादन में यह सेक्टर लगभग 33 प्रतिशत का योगदान देता है। इसी सेक्टर के बलबूते चीन अपने कर्ज़ का प्रबंधन कर पाता है और चीन को विकास के रास्ते पर चलाये रखता है।
चीन का कुल डिजिटल उत्पादन लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर है, इतना तो भारत का कुल राष्ट्रीय उत्पादन भी नहीं है। एल्यूमिनियम और एनर्जी सेक्टर पर निर्भर चीन की पुरानी अर्थव्यवस्था में विकास दर जब धीमे होने लगी, तो चीन ने जमकर टेक सेक्टर में पैसा निवेश किया। अब चीन हर साल टेक सेक्टर में 400 बिलियन डॉलर का निवेश करता है, यूरोपियन यूनियन से भी ज़्यादा!
इस निवेश का चीनी टेक कंपनियों को सबसे ज़्यादा फायदा हुआ। चीन में hardware और सॉफ्टवेर कंपनियाँ तेजी से विकास करने लगीं, और दुनिया में एक्सपोर्ट करने लगीं।
हालांकि, पिछले कुछ समय से भारत और अमेरिका जैसे देश चीन के टेक साम्राज्य को बर्बाद करने की कोशिशों में लगे हैं। दुनियाभर में चीनी कंपनियों पर लगाए जा रहे प्रतिबंध के कारण टेक क्षेत्र में चीन का प्रभाव कम होता जा रहा है। चीन अपनी जिन टेक कंपनियों के बूते दुनिया पर राज करना चाहता था, उन कंपनियों को देश “अपनी सुरक्षा के लिए खतरा” घोषित कर बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं।
हाल ही में चीन के टेक सेक्टर की टॉप कंपनी हुवावे को भारत समेत कई देशों ने प्रतिबंधित कर दिया। जब अमेरिका ने अपने यहाँ से सेमीकंडक्टर (चिप) के एक्सपोर्ट पर बैन लगाया था तो हुवावे ने एक बयान में कहा “अब इस कंपनी के अस्तित्व पर संकट आन खड़ा हुआ है”। इसके अलावा हुवावे के अध्यक्ष ने कहा था कि अब अपना अस्तित्व बचाए रखना ही हुवावे की सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
इसके बाद अमेरिकी सीनेट ने एक ऐसा बिल पास कर दिया जिसके कानून बनने के बाद कोई भी ऐसी चीनी कंपनी अमेरिका के स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिड नहीं हो पाएगी, जिसका CCP के साथ सीधा संबंध होगा। इसी बिल में दूसरी शर्त यह थी कि चीनी कंपनियों को अमेरिका की Auditing बॉडी Public Company Accounting Oversight Board से ही अपने खाते चेक कराने होंगे, अन्यथा उन्हें अमेरिका से निवेश प्राप्त नहीं करने दिया जाएगा। अमेरिका के ये कदम भी चीनी टेक कंपनियों के लिए बड़े घातक साबित हुए हैं।
रही-सही कसर भारत ने चीन के 59 एप्स बैन कर पूरी कर दी। इन एप्स में टिक-टॉक जैसी कंपनियाँ भी शामिल हैं, जिसके भारत में 22 करोड़ यूजर्स थे। चीनी मीडिया के अनुसार भारत के इस कदम से टिकटॉक को 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान पहुंचा है।
अमेरिका से चीनी कंपनी सबसे ज़्यादा पैसा कमाती हैं, तो वहीं भारत में चीनी कंपनियों का सबसे बड़ा यूज़रबेस है। ऐसे में दुनिया पर राज करने के चीनी सपने को बड़ा झटका लगा है। चीन ने जो पिछले कई दशकों में पाया, भारत-अमेरिका ने उसे कुछ दिनों में ही उजाड़ दिया, इसके लिए चीन की आक्रामकता और जिनपिंग सरकार की विस्तारवादी नीति ही जिम्मेदार हैं।