अगवा करना, आज़ादी छीनना और तानाशाही करना: CCP के कम्युनिस्टों और इस्लामिक आतंकियों में काफी समानता है

क्या CCP को आतंकवादी कहना गलत है? बिलकुल नहीं!

दुनिया के कम्युनिस्टों और इस्लामिस्टों के बीच हमें एक अघोषित गठबंधन देखने को मिलता है। चाहे कोई भी देश हो, चाहे कोई भी जगह हो, चाहे कोई भी सरकार हो, कम्युनिस्टों और इस्लामिस्टों की हमेशा अलग खिचड़ी पकती हुई दिखाई देगी। जब बात कम्युनिस्टों की हो रही है, तो ऐसे में हम चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को कैसे भूल सकते हैं भला? चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को इस्लामवादियों से कोई प्यार तो बिलकुल नहीं है। यह आप CCP द्वारा उइगर मुसलमानों पर किए जा रहे अत्याचारों से भली-भांति समझ सकते हैं। हालांकि, जिहादियों के तौर-तरीकों को अपनाने में कम्युनिस्ट पार्टी को कोई आपत्ति नहीं होती।

CCP भी कट्टर इस्लामवादियों की तरह लोकतंत्र की धुर विरोधी है। CCP को भी कट्टरपंथियों की तरह बोलने की आज़ादी और घूमने-फिरने की आज़ादी पसंद नहीं। बीजिंग ने Hong-Kong पर अपना “सुरक्षा कानून” थोप दिया है, जिसके बाद से ही क्षेत्र में आतंक का माहौल है। पुलिस को मासूम लोगों पर अत्याचार ढाने का मानो बहाना मिल गया है। लोगों को अगवा किया जा रहा है, यहां तक कि पुस्तकालयों से लोकतंत्र के समर्थन में लिखी पुस्तकें गायब की जा रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक Hong-kong से लोकतंत्र समर्थक लेखकों जैसे जोशुआ वोंग और तान्या चान की पुस्तकें गायब की जा रही हैं।

CCP अब चाहती है कि Hong-Kong में लोकतंत्र का कोई भी प्रतीक न बचे, फिर चाहे वह पुस्तक ही क्यों न हो। CCP को डर है कि कहीं एक पुस्तक भी Hong-Kong में लोगों को स्वतंत्र होने की प्रेरणा न देने लगे। इतना ही नहीं, चीन को इस बात का भय भी सता रहा है कि अगर ये पुस्तकें mainland चीन पहुँच जाती हैं तो वहाँ के लोग भी सरकार के विरोध में खड़े हो सकते हैं।

CCP का यह तरीका इस्लामिस्टों के तरीकों से कितना मिलता जुलता है। वर्ष 2015 में ISIS के आतंकवादियों ने भी मोसुल यूनिवर्सिटी की किताबों को इसी प्रकार जला दिया था। उन किताबों के प्राचीन लेख, मनुस्मृतियाँ और ऐतिहासिक लेख शामिल थे। तब ISIS द्वारा 1 लाख से ज़्यादा किताबों को जला दिया गया था, जिससे पूरी दुनिया को एक गहरा झटका लगा था।

इसी तरह इस्लामिस्टों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान के बामियान स्थित महात्मा बुद्ध की दो मूर्तियों के साथ किए गए बर्ताव को कौन भूल सकता है। वे दो मूर्तियां- 115 फीट और 174 फीट- लंबी थी और ये 1500 साल से ज्यादा समय तक खड़ी रहीं। मार्च 2001 में तालिबान ने इन्हें उड़ा दिया था। ये मूर्तियां न सिर्फ अफगान बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर थीं। यूनेस्को ने इन्हें वर्ल्ड हेरिटेज साइट के तहत सूचीबद्ध किया हुआ था।

इस्लामिस्टों और कम्युनिस्टों के बर्ताव में कितनी समानता है, ये देखा जा सकता है। CCP को भी इस्लामिस्टों की तरह बहुसंस्कृतिवाद पसंद नहीं है, जिसका विरोध करने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। चीन में उइगरों के साथ हो रहे बर्ताव और Hong-Kong में Hong-Kongers के साथ हो रहे बर्ताव को देखकर कम्युनिस्ट पार्टी की आतंकियों से तुलना करना बिलकुल जायज़ है।

दोनों का एक ही मकसद है, कैसे फ्री स्पीच पर हमला बोला जाये, और कैसे लोगों में आतंक फैलाया जाए। CCP अब Hong-Kong में लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए एक बेहद सुनियोजित तरीके से काम कर रही है। सुरक्षा कानून के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के लिए अरेस्ट किया जाता है और उसपर मुकदमा चलाया जाता है, तो वह Hong-Kong में चुनाव नहीं लड़ पाएगा। ऐसे में सभी लोकतंत्र समर्थकों को अयोग्य घोषित कर जिनपिंग सरकार Hong-Kong में अपना विपक्ष ही मिटाना चाहती है। अगर किसी भी जगह लोगों से स्वतंत्रता छीनी जा रही है, तो यह या तो कम्युनिस्टों के राज में संभव होगा, या फिर इस्लामिस्टों के राज में!

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