विकास दुबे ब्राह्मण है, लेकिन कोई भी ब्राह्मण दूसरों की तरह पीड़ित कार्ड नहीं खेलेगा

विकास दुबे को सबसे कठोर सजा मिलनी चाहिए

विकास दुबे

पाँच दिन तक पुलिस को गुमराह करने के पश्चात विकास दुबे आखिरकार मध्य प्रदेश के उज्जैन में पकड़ा गया। उस पर कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करवाने का आरोप लगा है।

विकास दुबे के नाम साठ से अधिक मामले दर्ज है, जिनमें हत्या, अपहरण, रंगदारी और दंगा फसाद जैसे अपराध भी शामिल है। परंतु इक्के दुक्कों को छोड़कर कोई भी व्यक्ति  विकास दुबे के जाति या फिर उसके धर्म की आड़ में उसके कुकृत्यों का बचाव नहीं कर रहा है। ये काफी अनोखी बात है, क्योंकि अक्सर ही कई अपराधियों को इन आधार पर बचाया जाता है कि चूंकि वो फलाने धर्म से था, या फलानी जाति का था, इसलिए उसके साथ कुछ बुरा नहीं होना चाहिए।

स्मरण कीजिये वो समय, जब कुछ ही महीनों पहले बुरहान वानी के दाहिने हाथ कहे जाने Hizbul Mujahideen (हिज़बुल मुजाहिद्दीन) के वर्तमान मुखिया रियाज़ नायकू को सुरक्षाबलों ने मार गिराया, और कैसे पूरा वामपंथी ब्रिगेड इस दुर्दांत आतंकी के बचाव में उतर पड़ा था। एक क्रूर आतंकी को एक साधारण गणित शिक्षक में परिवर्तित करना हो, यह मीडिया ने पूरी दुनिया को बड़ी बेशर्मी से बताया था।

लेकिन ये वही वामपंथी मीडिया है, जो बुरहान वानी के मारे जाने पर फूट फूट कर रोई थी। बरखा दत्त ने तो यहाँ तक कहा था कि बुरहान वानी एक स्कूल हेडमास्टर का बेटा था, जिसने सोशल मीडिया को अपने अस्त्र के तौर पर चुना था।

लेकिन यही हमदर्दी स्वभावानुसार वास्तविक पीड़ितों को अपमानित करने में बदल सकती है, विशेषकर जब मरने वाला उनके प्रिय समुदायों में से न हो। उदाहरण के लिए बरखा दत्त को ही देख लीजिये। जिस पत्रकार ने बुरहान वानी जैसे कायर आतंकी को एक गरीब स्कूल हेडमास्टर का लड़का करार दिया, वही बरखा कश्मीरी पंडितों की त्रासदी का उपहास उड़ा रही थी। बरखा दत्त ने कहा था कि “आज भले ही वे पीड़ित हों, पर कल ये शोषक थे। इन्होंने घाटी के हर छोटे बड़े पोस्ट पर कब्जा जमा कर रखा हुआ था”।

ये विक्टिम कार्ड केवल कश्मीर तक ही सीमित नहीं है। अभी इसी वर्ष जब पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों में पूर्व आम आदमी पार्टी पार्षद ताहिर हुसैन को दंगे भड़काने के लिए हिरासत में लिया गया था, तो आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने ये आरोप लगाया कि ताहिर हुसैन को इसलिए सज़ा मिल रही क्योंकि वह एक मुसलमान है, और यहाँ तक कह दिया कि इस देश में शायद मुसलमान होना एक अपराध है। इसी हिपोक्रेसी पर प्रकाश डालते हुए त्रिपुरा सरकार के ओएसडी संजय मिश्रा ने ट्वीट किया, “विकास दूबे पकड़ा गया, किसी ने कुछ नहीं बोला। शर्जील इमाम क्या पकड़ा गया, कई लोगों की आत्मा को ठेस पहुंची। यही अंतर है”।

सच कहें तो विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से सभी ने विकास दूबे की निंदा की है, वो अपने आप में प्रशंसनीय है। एक अपराधी पर किसी प्रकार की दया नहीं दिखाई जानी चाहिए, चाहे वो किसी भी पंथ का हो। कानून का राज सर्वोपरि है।

 

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