कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर हुए लगभग दो हफ्ते होने वाले हैं, परंतु मामला अभी भी ठंडा नहीं हुआ है। सच कहें तो विकास दुबे के एनकाउंटर के पश्चात जिन विपक्षी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निष्पक्ष जांच की मांग की थी, वे अब बहुत पछताने वाले हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विचारों से यह स्पष्ट कर दिया है की विकास दुबे जैसे लोगों को बढ़ावा देने वालों के विरुद्ध भी मोर्चा खोलना चाहिए।
दरअसल, विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर जांच पड़ताल पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े भी शामिल थे। सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने सुझाव दिया कि एनकाउंटर की जांच के लिए एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज और डीजीपी के स्तर का एक पूर्व पुलिस अफसर जांच कमेटी में शामिल होना चाहिए।
जब यूपी सरकार ने सभी शर्तों को स्वीकारा, तब सुप्रीम कोर्ट ने विकास दुबे के संबंध में पूछताछ की। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एसए बोबेड़ की अगुवाई वाली बेंच के सामने वीडियो कॉन्फेंसिंग के जरिए हुई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता यूपी सरकार की ओर से पेश हुए वहीं, यूपी पुलिस (डीजीपी) की ओर से हरीश साल्वे पेश हुए। तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि विकास दुबे एनकाउंटर मामले में छानबीन कानून के हिसाब से हो रही है। जो शख्स एनकाउंटर में मारा गया है उसने कुछ ही दिन पहले पुलिस बल पर गोलियां चलाई थी। उसके खिलाफ दर्जनों मामले दर्ज हैं और वह परोल पर जेल से छूटा था।
इस पर एसए बोबड़े बोले, “हम तो आश्चर्यचकित हैं कि ऐसे शख्स को जेल से जमानत पर छोड़ा गया। ये सिस्टम की नाकामी है कि वह जमानत पर छूटा और ऐसा किया। हम जमानत ऑर्डर देखना चाहते हैं। यूपी सरकार को कानून का शासन बहाल रखना होगा। आरोपी अथॉरिटी को चुनौती देता है पुलिस को चुनौती देता है लेकिन बतौर राज्य आपके लिए कानून का शासन है और उसे लागू करना आपकी ड्यूटी है। ये सिर्फ एक घटना की बात नहीं है बल्कि पूरा सिस्टम दांव पर लगने की बात है”। मुख्य न्यायाधीश ने इस दौरान सॉलिसिटर जनरल से कहा कि आप सीएम, डेप्युटी सीएम का बयान देंखे। अगर कोई बयान दिया जाता है और बाद में कुछ होता है तो उसे भी आपको देखना चाहिए।
बता दें कि पहले बहुजन समाज पार्टी और फिर समाजवादी पार्टी से संबंध रखने वाला कुख्यात अपराधी विकास दुबे 8 पुलिसकर्मियों की कानपुर के चौबेपुर क्षेत्र के बिकरू गाँव में की गई हत्या में मुख्य आरोपी था। विकास ज़मानत पर बाहर था जब ये घटना हुई थी। जैसे ही वह फरार हुआ, पुलिस ने युद्धस्तर पर कार्रवाई शुरू की, और विकास के कई अहम साथियों को या तो हिरासत में लिया, या फिर एनकाउंटर में मार गिराया। विकास दुबे को आखिरकार 9 जुलाई को उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के पास हिरासत में लिया गया, पर उसके भागने की फितरत उसी पर भारी पड़ गई। 10 जुलाई की सुबह कानपुर के पास सचेण्डी क्षेत्र में गाड़ी पलटने पर भागने का प्रयास करने के कारण पुलिस मुठभेड़ में विकास को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। फिलहाल, विकास दुबे के साथ घटना में शामिल 11 फरार गुर्गों की तलाश में एसटीएफ कई स्थानों पर छापेमारी भी कर रही है। इसके साथ ही पुलिस विकास दुबे के राजनीतिक कनेक्शन की भी जांच कर रही है और ये पता लगाने में जुटी है कि आखिर किसकी मदद और किन कारणों से विकास दुबे को जमानत मिली थी। स्पष्ट है विकास दुबे की मदद करने वाले नेताओं की भी क्लास लगने वाली है।
बता दें कि विकास पर हत्या, लूटपाट, आगजनी और कब्जा संबंधी 60 मामले दर्ज थे, पर फिर भी उसे ज़मानत मिल गई। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा विकास को मिलने वाली निरंतर ज़मानत पर चिंता जताना न केवल उचित है, अपितु भविष्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आवश्यक कार्रवाई के भी निर्देश देता है। इससे उन लोगों को निशाने पर लिया जा सकता है, जिनके प्रभाव के कारण विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधियों को अनेकों हत्याएँ करने के बाद भी कोर्ट से ज़मानत मिल जाती थी।