कोरोना महामारी को विश्वभर में फैले अब लगभग 5 महीने होने को हैं, लेकिन इस चीनी बीमारी का अभी कोई इलाज़ नहीं मिल पाया है। भारत के Indian Council of Medical Research यानि ICMR के अलावा दुनियाभर के कई मेडिकल एक्सपर्ट्स HCQ दवा को इस बीमारी के लिए काफी असरदार बता रहे हैं। हालांकि, इसी बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि WHO दुनिया को बरगलाने की कोशिश कर रहा है। HCQ के प्रति WHO का रवैया शुरू से ही आलोचनात्मक रहा है, जबकि इसका कोई आधार नहीं बनता।
HCQ के खिलाफ अभियान को आगे बढ़ाते हुए WHO ने बीते शनिवार को दोबारा एक बड़ा फैसला लिया। WHO ने कोरोना संक्रमित मरीजों को मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, एचआईवी की दवा लोपिनवीर और रिटोनवीर के कॉम्बिनेशन का डोज देने पर फिर रोक लगा दी। WHO ने कहा कि इस दवा से मृत्युदर में कमी नहीं आ रही है। जारी बयान में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि “इन दोनों दवाओं के इस्तेमाल में यह सामने आया है कि इलाज के अन्य मानकों की तुलना में इनसे कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की मृत्युदर में मामूली या न के बराबर कमी आई है”।
हैरानी की बात तो यह है कि WHO ने खुद से यह निष्कर्ष नहीं निकाला है, बल्कि WHO ने दवा की टेस्टिंग पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था की सिफारिश पर इन दवाओं के इस्तेमाल पर रोक लगाने का फैसला किया गया है। बीते दिनों अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने भी कोरोना मरीजों के इलाज के लिए मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की प्रभावशीलता का असेसमेंट करने के लिए चल रहे क्लीनिकल ट्रायल पर रोक लगा दी थी।
लेकिन क्या HCQ वाकई बेअसरदार है? भारत का ICMR और अमेरिका के कुछ मेडिकल एक्सपर्ट्स ऐसा नहीं मानते। 4 जुलाई को Fox news के मेडिकल रिसर्चर ने Dr David Samadi ने एक ट्वीट कर कहा था “HCQ कोरोना पर काम करता है, और शुरू से ही कर रहा है। बस! खत्म!” जब अमेरिका भी HCQ को कोरोना के इलाज में असरदार बता रहा तब भी WHO इस तथ्य को झूठलाने में लगा है।
Hydroxychloroquine works and has worked the whole time.
That's it. That's the tweet.
— Dr. David Samadi (@drdavidsamadi) July 4, 2020
इतना ही नहीं, भारत का ICMR भी HCQ के इस्तेमाल को लेकर काफी आशावादी है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर जनरल डॉ बलराम भार्गव के मुताबिक, मार्च में इस दवा का विट्रो ट्रायल किया गया था। विट्रो ट्रायल के दौरान यह देखा गया कि इस दवा में प्रभावी रूप से एंटीवायरल गुण मौजूद हैं, जो संक्रमण से बचाए रखने के लिए काफी हद तक सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। इसके साथ-साथ भार्गव ने यह भी बताया कि ऐसे अन्य और भी कई अध्ययन किए गए हैं, जिसमें इस दवा का सेवन करने के कारण किसी भी प्रकार का साइड इफेक्ट भी नहीं देखा गया है। इसलिए उनका मानना है हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का सेवन कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए प्राथमिक रूप से कारगर साबित हो सकती है।
तो फिर समस्या कहा हैं? दरअसल, HCQ विरोधी गैंग द्वारा इस दवा का विरोध करने की दो बड़ी वजहे हैं। पहला तो यह कि खुद ट्रम्प इस दवा को endorse कर चुके हैं। वे तो यह भी स्वीकार कर चुके हैं कि वे खुद इस दवा का सेवन कर रहे हैं, ताकि वे कोरोना से बचे रह सकें। बस राष्ट्रपति ट्रम्प के इतना कहते ही अमेरिका की लिबरल मीडिया ने HCQ के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। अब WHO इस अभियान का नेतृत्व करता दिखाई दे रहा है। इस अभियान का दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि HCQ सप्लाई करने में भारत सबसे आगे रहा है। भारत के इस ड्रग के खिलाफ अभियान चलाने के पीछे यहाँ लिबरल मीडिया और लिबरल गैंग की भारत-विरोधी मानसिकता भी बड़ा कारण हो सकता है।
WHO HCQ को लेकर कितना पक्षपातपूर्ण रवैया रखता है, इसका उदाहरण हमें तब भी देखने को मिला था जब 22 मई को एक झूठी Lancet study के आधार पर तुरंत WHO ने HCQ के ट्रायल पर रोक लगा दी थी। बाद में जब Lancet ने अपनी स्टडी को वापस लिया तो WHO को भी दोबारा HCQ के ट्रायल शुरू करने पर मजबूर होना पड़ा। ICMR और कई विश्वसनीय मेडिकल एक्सपर्ट्स के शोधों के मुताबिक HCQ काम करता है, और दुनियाभर में मरीजों की भलाई के लिए बिना किसी राजनीतिक एजेंडे के इसका प्रयोग किया जाना चाहिए।