चीन और रूस के बीच की कथित मित्रता में फिर से दरार उभरने लगी है। इस बार रूस ने चीन के अति महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बीआरआई यानि बेल्ट एण्ड रोड योजना को ठेंगा दिखाने का काम किया है। दरअसल पिछले माह चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने बीआरआई पर एक ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था, जिसपर चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग ने कहा कि ये COVID 19 के विरुद्ध हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है और अंतर्राष्ट्रीय सौहार्द को बनाए रखने में हमारी सहायता भी करेगा।
इस बात को सिद्ध करने के लिए 25 देशों से मंत्री पद के लोग इस चीनी कॉन्फ्रेंस का हिस्सा बने थे, परंतु जो व्यक्ति यहाँ उपस्थित नहीं था, और जिसकी अनुपस्थिति से चीन के इरादों को गहरा झटका लगा है, वो हैं रूस के विदेशी मंत्री सेर्जेई लावरोव। उन्होने स्वयं आने के बजाए एक लिखित बयान भेजा, जिसे रूसी राजदूत ने पढ़कर सुनाया।
लावरोव की अनुपस्थिति वर्तमान परिस्थितियों में बहुत कुछ कहती है। इससे साफ पता चलता है कि रूस को चीन के BRI प्रोजेक्ट में रत्ती भर की भी दिलचस्पी नहीं है। मॉस्को स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ इंटेरनेशनल रिलेशन्स के वरिष्ठ रिसर्च फ़ैलो इगोर डेनिसोव का मानना है, “रूस BRI का हिस्सा है ही नहीं। वह तभी तक चीनी प्रोजेक्ट्स को अपना समर्थन देगा जब तक वह रूस के हित में होगा”।
अब चीन भले ही दुनिया के सामने दावा करता फिरे कि रूस BRI में उसका सबसे अहम और रणनीतिक साझेदार है, परंतु सच्चाई तो यही है कि रूस को इस बात से तनिक भी फर्क नहीं पड़ता कि वो बीआरआई का हिस्सा है कि नहीं, पर चीन का मन रखने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन यदा कदा इसका उल्लेख करते रहते हैं। पुतिन का वास्तविक इरादा BRI के जरिये पूर्वी यूरोप, मध्य एशिया इत्यादि पर अपना प्रभाव बढ़ाने को लेकर था, परंतु यहाँ चीन उन्हीं के सपनों की हत्या करने पर तुला है। बीजिंग चाहता है कि रूस हमेशा कि तरह उसकी जी हुज़ूरी करता रहे, लेकिन वह शायद भूल गया कि रूस में अभी इस समय किस का शासन चल रहा है।
ऐसा नहीं कि चीन ने Russia में कभी निवेश नहीं किया, लेकिन उनके अधिकतर निवेश BRI अभियान से अलग ही रहे हैं। उत्तरी रूस में यामल LNG प्रोजेक्ट में जो भी निवेश हुआ है, वो बीआरआई से दूर दूर तक कोई नाता नहीं रखता। लोवी इंस्टीट्यूट पर काम कर रहे बोबो लो नामक एक चीनी अफसर ने कहा, “यामल एलएनजी का बीआरआई से कोई लेना देना है ही नहीं। ये केवल चीन एवं रूस में एक मैत्रीपूर्ण प्रोजेक्ट है”।
सच कहें तो चीन और रूस में दोस्ती उतनी ही मजबूत है, जितना अभी भारत और पाकिस्तान के बीच में। Russia का कुल एफ़डीआई निवेश जहां 25.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, तो वहीं चीन का रूस में एफ़डीआई निवेश महज 140 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, और इससे ज़्यादा तो चीन ईरान और पाकिस्तान में निवेश करता है।
ऐसे में Russia के लिए यही श्रेयस्कर रहा है कि वह चीन को बीआरआई के मामले में ठेंगा दिखाये। यदि Russia चीन के विरुद्ध खुलकर मोर्चा नहीं संभाल रहा है, तो उसके पीछे केवल एक ही कारण है – रूस की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था। लेकिन सेर्जेई लावरोव की अनुपस्थिति से एक बात तो पूर्णतया सिद्ध होती है कि रूस इतना भी नहीं झुकेगा कि अपने हित के लिए वह चीन का गुलाम बन जाए, क्योंकि वह चीन की तरह दुनिया की नज़रों में अस्पृश्य नहीं बनना चाहता।