“मेरे यहाँ आओ प्लीज़, बहुत पैसा मिलेगा”, चीन को बर्बाद होता देख Global CEOs से भीख मांगने लगे हैं “महान जिनपिंग”

अरे रे क्या से क्या हो गया देखते देखते!

जिस समय में फेसबुक, गूगल जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनियां भारत में बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं, ऐसे समय में चीन विदेशी उद्योगपतियों से अपने देश में उद्योग के लिए बेहतर माहौल तैयार करने की बात कर रहे हैं। Global CEO Council के लिखे एक पत्र के जवाब में जिनपिंग ने कहा “चीन चीनी और विदेशी उद्योगों को व्यापार के लिए बेहतर माहौल तैयार करने और उन्हें नए अवसर प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध रहेगा”।

पिछले कुछ समय में कोरोना और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अमेरिका और चीन में मतभेद काफी बढ़ गया है। दोनों ओर से एक दूसरे पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। हालांकि, ट्रम्प ने हाल ही में एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने देश में CCP के सदस्यों पर पाबंदी लगाने का फैसला ले लिया। इसके अलावा ऐसे चीनी अधिकारी जो Hong-kong में चीनी सुरक्षा कानून लागू करवाने में चीनी सरकार की सहायता कर रहे हैं, उनपर भी अमेरिका में पाबंदी लगना तय है।

अमेरिका-चीन के बीच जारी विवाद के बीच विदेशी उद्योग चीन में पैसा निवेश करने से घबरा रहे हैं। कई विदेशी कंपनियां अपना बिजनेस अमेरिका से बाहर ले जाने की तैयारी कर रही हैं, और अपना निवेश बाहर निकाल रही हैं। ऐसी स्थिति चीन के लिए बेहद चिंताजनक है। चीन और अमेरिका बड़े व्यापारिक साझेदार रहे हैं और अमेरिकी कंपनियां चीन में बड़े पैमाने पर निवेश करती आई हैं। इसीलिए जिनपिंग Global CEO Council के पत्र के जरिये दुनिया को यह संदेश देना चाहते हैं कि चीन की स्थिति बिलकुल नॉर्मल है।

SCMP की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2013 में चीनी सरकार ने 39 बड़ी MNCs के साथ मिलकर Global CEO Council को स्थापित किया था, ताकि बड़े-बड़े विदेशी उद्योगों के साथ चीन के कूटनीतिक रिश्ते मजबूत किए जा सकें।

वर्ष 2018 में अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वॉर शुरू होने से ठीक पहले जून में शी जिनपिंग ने इन MNCs के CEO के साथ मुलाक़ात की थी। अमेरिका से UPS, Pfizer, Cargill, Prologis, और Goldman Sachs जैसी कंपनियों के CEOs ने इस बैठक में हिस्सा लिया था तो वहीं Thales, Alstom, Schneider Electric, ABB, Nokia, Volkswagen, Philips, and ArcelorMittal जैसी यूरोपीय MNCs के CEOs भी इस बैठक में मौजूद रहे थे। कुछ हफ्तों पहले इस काउंसिल से जुड़ी 39 कंपनियों में से 18 कंपनियों के CEOs ने शी जिनपिंग की प्रशंसा करते हुए उनके नाम एक पत्र लिखा था, जिसका जवाब देते हुए जिनपिंग ने भी उन्हें चीन में निवेश करने की सलाह दी है।

जिनपिंग का यह पूरा ड्रामा चीन की बेहद खस्ता हालत को छिपाने के लिए किया गया है। ऐसा लगता है मानो यह एक सुनियोजित PR स्टंट है, जिसके माध्यम से चीन अभी भी अपने आप को एक बेहतर इनवेस्टमेंट destination साबित करना चाहता है।

पिछले कुछ समय में वैश्विक उद्योगों को लुभाने की दृष्टि से चीन कई बड़े कदम उठा चुका है। हाल ही में चीन ने दूसरे क्वार्टर में 3.2 प्रतिशत GDP विकास दर होने का दावा किया, जिसे दुनियाभर के experts झूठ बता रहे हैं। अमेरिकी एक्सपर्ट Derek Scissors के मुताबिक “यह GDP विकास दर हासिल करना नामुमकिन है। जब कई फैक्ट्रियाँ बंद पड़ी हों, और कई फैक्ट्रियाँ अपनी आधी क्षमता पर काम कर रही हों, तो यह GDP विकास दर हासिल करना बेहद मुश्किल है”।

इसमें कोई शक नहीं है कि चीन अपनी GDP के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता आया है। Brookings द्वारा हाल ही में पब्लिश किए एक अध्यन्न में यह दावा किया गया था कि चीन ने 9 वर्षों तक अपने GDP के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया। वर्ष 2008 से लेकर वर्ष 2016 तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी GDP विकास दर को 2 प्रतिशत तक बढ़ा कर दिखाया था। ऐसे में चीन की अर्थव्यवस्था उसकी मौजूदा अर्थव्यवस्था से 16 प्रतिशत छोटी हो सकती है।

स्पष्ट है कि चीन अब किसी भी कीमत में विदेशों से निवेश लाना चाहता है और इसके लिए वह झूठे PR ड्रामे करने से भी बाज़ नहीं आ रहा है। मार्केट में बेहतर माहौल तैयार करने के लिए चीन अपनी स्टॉक मार्केट में बेतहाशा डोलर्स निवेश कर रहा है, जिसके कारण चीनी स्टॉक मार्केट्स green में चल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि चीन जान-बूझकर अपने स्टॉक्स में हवा भर रहा है, जिसकी जल्द ही हवा निकल सकती है। उदाहरण के लिए वर्ष 2015 में सिर्फ कुछ ही हफ्तों में चीनी स्टॉक मार्केट ने 3-4 ट्रिलियन डॉलर खो दिये थे।

स्पष्ट है कि ऐसे समय में जब अमेरिकी कंपनियाँ बड़े पैमाने पर भारत में निवेश कर रही हैं और चीन में निवेश करने से घबरा रही हैं, वैसे समय में चीन नकली PR ड्रामा रचके अपने यहाँ सब कुछ नॉर्मल दिखाने में जुटा हुआ है। हालांकि, शायद ही चीन की यह तरीकीब उसके किसी काम आए।

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