आने वाले हैं तुर्की के बुरे दिन, फ्रांस और ग्रीस के बाद इजरायल भी एर्दोगन को सबक सिखाने के लिए मैदान में

तुर्की की दादागिरी पर इजरायली थप्पड़!

इजरायल

हमारे बुज़ुर्गों ने एक नसीहत खूब दी है, ‘जल में रहकर मगर से बैर न करें!’ लेकिन शायद तुर्की का इस कहावत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। सत्ता के नशे में चूर, तुर्की के वर्तमान राष्ट्रपति रेसिप एर्दोगन उन लोगों से भी पंगा ले रहे हैं, जिनसे कोई भी देश भिड़ने से पहले कई बार सोचेगा। कुछ दिनों पहले ग्रीस के समुद्री क्षेत्र में अनुसंधान के नाम पर तुर्की ने बेधड़क घुसपैठ की। पर एर्दोगन का यही अति-आत्मविश्वास अब उनपर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। अब इजरायल ने भी तुर्की के विरुद्ध पूर्वी मेडिटेरेनियन में मोर्चा संभाल लिया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि, यह तुर्की के लिए शुभ संकेत नहीं है।

द टाइम्स के एक लेख के अनुसार, इजरायल की प्रसिद्ध इंटेलिजेंस विंग मोसाद का मानना है कि, अब उनके लिए तुर्की एक बड़े खतरे के रूप में उभर के सामने आ रहा है। अब तक इजरायल के लिए प्रमुख रूप से उसका सबसे बड़ा खतरा ईरान था, लेकिन अब वो जगह तुर्की ने ले ली है। रोचक बात तो यह है कि, दोनों ही देशों(तुर्की और ईरान) में पहले उदारवादी शासन हुआ करता था, जिसकी जगह अब इस्लामिक विचारधारा ने ले ली है।

पर तुर्की से इजरायल को खतरा किस बात का है? द टाइम्स के लेख में बताया गया, मोसाद के अफसर कोहेन का मानना है कि, ईरान अब पहले जैसा खतरनाक नहीं रहा, क्योंकि उसे किसी ना किसी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन तुर्की की कूटनीति अलग है और उसके दांव पेंच ऐसे हैं, कि उसे पकड़ना आसान नहीं है। इसी का फ़ायदा उठाकर वह पूर्वी मेडिटेरेनियन में अपना वर्चस्व जमा रहा है।” यही नहीं, इस लेख में NATO की निरर्थकता सिद्ध करते हुए लिखा गया कि NATO अब इस समस्या को नहीं सुलझा सकता, क्योंकि अब उसमें पहले जैसी बात नहीं रही।

आखिर तुर्की ने पूर्वी मेडिटेरेनियन में ऐसा क्या किया, जिसे निपटाने के लिए स्वयं इजरायल ने मोर्चा संभाला है? दरअसल तुर्की ने पूर्वी मेडिटेरेनियन में अनुसंधान और खनिज पदार्थों की खोज हेतु अपने जहाज़ भेजे थे। लेकिन ये जहाज़ उन्होंने उन क्षेत्रों में भेजे, जो विवादित हैं और जहां ग्रीस और साइप्रस अपने-अपने दावे करते हैं। शुरुआत में ग्रीस ने बात बढ़ने के डर से तुर्की के विरुद्ध आक्रामक रुख नहीं अपनाया था, लेकिन जब तुर्की ने ग्रीस के उन क्षेत्रों पर भी दावा करना शुरू कर दिया, जिन्हें ग्रीस ने EEZ यानि विशेष आर्थिक ज़ोन घोषित किया था, तो ग्रीस को मजबूर होकर NATO और अन्य वैश्विक ताकतों के समक्ष गुहार लगानी पड़ी।

ग्रीस की सहायता के लिए कुछ देश सामने आए, जिनमें सबसे प्रभावशाली था फ्रांस। फ्रांस पूर्वी मेडिटेरेनियन क्षेत्र में तुर्की की दादागिरी को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अपने फाइटर जेट्स और युद्धपोत तैनात करने की दिशा में काम कर रहा है। बीबीसी वर्ल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, “फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष इम्मैनुएल मैक्रोन ने तुर्की को चेतावनी दी है कि, वह पूर्वी मेडिटेरेनियन सागर से दूर रहें। उन्होंने ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोटाकिस को आश्वासन दिया है कि, फ्रांस की सेना तुर्की की दादागिरी नहीं चलने देगी।”

अब इसी प्रकार इजरायल ने भी खुलेआम ग्रीस की सहायता करने का निर्णय लिया है।इजरायल दौरे पर गए ग्रीस के विदेश मंत्री का स्वागत करते हुए इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने न केवल ग्रीस को हरसंभव सहायता का विश्वास दिलाया, बल्कि यह भी बताया कि, इजरायल तुर्की को हल्के में नहीं ले रहा। बेंजामिन के अनुसार, “हम अच्छी तरह जानते हैं कि, तुर्की क्या कर रहा है और हम इसे हल्के में लेने की भूल नहीं करने वाले हैं

तुर्की की हालत अब ऐसी हो चुकी है कि, आगे कुआं तो पीछे खाई। एक ओर अब उसे फ्रांस की चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जो पहले ही लीबिया में उसे धो रहा है और दूसरी ओर अब इजरायल जैसे सैन्य-संपन्न देश से उसे पंगा मोल लेना पड़ेगा, जिसने एक समय पर मिस्र, सीरिया, लेबनान जैसे छह मुस्लिम देशों को इकट्ठे धुल चटाई थी। ऐसे में एर्दोगन की दादागिरी अब ज्यादा दिनों तक नहीं टिकने वाली।

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