QUAD के बाद, अब भारत एक नए गठबंधन में रूस और जापान के साथ मिलकर चीन को अलग-थलग करेगा

Indo-Pacific

कोरोना के बाद भारत ने रूस को Indo-Pacific क्षेत्र में शामिल करने की चर्चा शुरू कर एक बेहद ही महत्वपूर्ण तथा बड़ा भू-रणनीतिक चाल चली है। इसी क्रम में अब भारत और रूस जापान के साथ मिलकर एक Trilateral Track 2 बनाने की संभावना पर विचार कर रहे हैं जिससे रूस को Indo-Pacific Initiative में शामिल करने में आसानी हो सके। पिछले हफ्ते, विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने 4 अगस्त को रूस के उप-विदेश मंत्री, (Igor Morgulov) के साथ रूस-भारत-जापान त्रिपक्षीय सहयोग के प्रस्ताव पर चर्चा की थी।

अपने इस चाल से भारत ने एक साथ दो लक्ष्य पर निशाना साधा है। पहला तो चीन के बड़े भाई की तरह काम करने वाला रूस सीधे तौर पर Indo-Pacific Initiative से जुड़ जाएगा तथा दूसरा रूस के रहते हुए भी Indo-Pacific Initiative के केंद्र में ASEAN रहेगा जिससे भारत एक प्रमुख भूमिका में रहेगा। इन दोनों कारणों से चीन को काबू करने में सफलता मिलेगी और रूस भी Indo-Pacific क्षेत्र के मुख्यधारा से जुड़ जाएगा।

हालांकि, जब इंडो-पैसिफिक  की बात आती है तो रूस कोई मामलों पर विरोध भी है, और वह ‘इंडो-पैसिफिक’ शब्द का उपयोग करने से भी इनकार करत है। इस साल जनवरी में, रूसी विदेश मंत्री Sergey Lavrov (सर्गेई लावरोव) ने कहा कि Indo-Pacific Initiative को एशिया प्रशांत क्षेत्र में मौजूदा संरचनाओं पर फिर से विचार करना होगा। बावजूद इसके भारत ने रूस को ‘Indo-Pacific’ क्षेत्र में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है। हाल ही में, रूस में भारतीय दूत, डी बी वेंकटेश वर्मा ने कहा था कि भारत चाहता है कि रूस अपने आप को ‘Indo-Pacific’ क्षेत्र में अधिक अंतर्निहित करे।

डी बी वेंकटेश वर्मा ने कहा था, “भारत और रूस इस क्षेत्र में अपना हित साझा करते हैं। ‘Indo-Pacific’ क्षेत्र में शांति, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि का क्षेत्र बनाना चाहते हैं, जिससे कोई भी एक देश पूरे क्षेत्र की कीमत पर एकतरफा लाभ न ले सके।”

Indo-Pacific Initiative पर रूस की रुकावटों के बावजूद अब भारत ने जापान और रूस के साथ एक त्रिपक्षीय समूह की बात कर रूस को अपने पाले में करने का चाल चला है। यहाँ ध्यान्न देने वाली बात यह है कि भारत और जापान मिल कर बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और यहां तक कि अफ्रीका में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में कनेक्टिविटी और अन्य प्रमुख परियोजनाओं पर सहयोग करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।

भारत और जापान एक साथ मिल कर रूस को समझा सकते हैं, जिससे रूस की प्रतिबंधों की मार झेल रही अर्थव्यवस्था को चीन पर से निर्भरता कम करने में सहायता मिलेगी।

हालांकि, यह प्रस्ताव अभी विचाराधीन स्तर पर है लेकिन भारत और जापान जैसी अर्थव्यवस्था के साथ संयुक्त निवेश और परियोजनाओं पर काम करने की पेशकश रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को भी लुभाएगा जिससे वे मना नहीं कर सकेंगे।

इस त्रिपक्षीय प्रस्ताव पिछले वर्ष पीएम नरेंद्र मोदी और शिंजो आबे की रूस की सुदूर पूर्वी क्षेत्र की यात्रा के दौरान आया था। रूस भले ही इंडो-पैसिफिक का विरोध करे लेकिन स्वयं रूस के कई हित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में है। रूस के पूर्वी क्षेत्र का लगभग 4,500 किलोमीटर से अधिक लंबा तट ही इंडो-पैसिफिक में है। मॉस्को चीन की विस्तारवादी नजरों से अपनी पूर्वी क्षेत्र के बारे में असुरक्षित है क्योंकि चीन इस संसाधन संपन्न क्षेत्र पर अपनी नजर गड़ाए हुए है। हाल ही में, चीन के wolf-warriors ने रूस के सुदूर पूर्व शहर व्लादिवोस्तोक पर भी अपना दावा कर दिया था।

कोरोना के बाद से ही भारत की विदेश नीति में ताकतवर देशों के साथ सहयोग बढ़ा कर चीन को अलग थलग करने पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है। Indo-Pacific क्षेत्र में रूस एक ताकतवर देश है जिससे मनाना भी अन्य देशों के मुक़ाबले कठिन है क्योंकि रूस की अर्थव्यवस्था प्रतिबंधों के बाद चीन पर निर्भर है।

हालांकि, रूस भारत-प्रशांत में भारत के साथ हाथ मिलाएगा। अगर देखा जाए तो आज के दौर में रूस के दो मुख्य लक्ष्य हैं- पहला वर्ष 2014 में क्रीमिया को कब्जा करने के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से छुटकारा पाना और दूसरा अपने पूर्वी क्षेत्र को सुरक्षित रखना।

यदि रूस इस त्रिपक्षीय सहयोग और फिर Indo-Pacific में शामिल होता है, तो भारत रूस को पश्चिमी दुनिया के प्रतिबंधों से बचाने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकेगा। आज भारत रूस को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान के साथ एक संयुक्त मंच प्रदान कर रहा है। कल, भारत रूस को वाशिंगटन के साथ सम्बन्धों को बढ़ाने में मदद भी कर सकता है। इसलिए रूस भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा भरोसा कर सकता है।

यानि देखा जाए तो QUAD की सफलता के बाद अब भारत, रूस और जापान इस त्रिपक्षीय तंत्र के गठन के लिए चल रही प्रक्रिया भारत की Indo Pacific नीति में एक नया मोड ला सकता है जिससे भारत की स्थिति और अधिक मजबूत हो जाएगी और चीन को घेरने में सफलता मिलेगी।

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