अभी कुछ दिनों पहले ही वियतनाम के राजदूत फाम साह चाउ ने भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला से बातचीत की थी और दक्षिण पूर्वी एशिया में चीन की गुंडई को लेकर बातचीत की थी। इस मुद्दे पर वियतनाम ने भारत से उसकी तत्काल प्रभाव से सहायता करने को कहा था। अब इस मुलाकात के बाद चीन ने अपने तेवर में बदलाव करते हुए डैमेज कण्ट्रोल करने का काम शुरू कर दिया है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दक्षिण चीन सागर में अपने क्षेत्रीय विवाद को लेकर वियतनाम से बातचीत की मेज पर आने का आग्रह किया है। बीजिंग इस बात से डर रहा है कि है यदि भारत वियतनाम की ओर से हस्तक्षेप करता है तो वियतनाम के खिलाफ उसकी रणनीतियों पर पानी फिर जायेगा
दरअसल, चीन के विदेश मंत्री से स्टेट काउंसलर बने वांग यी ने एक समारोह के दौरान वियतनाम और चीन को आपसी सीमा सम्बंधित मुद्दों पर सफलतापूर्ण समाधान और जल सीमा विवाद को जल्द सुलझाने के लिए प्रयास करने को कहा है। वियतनाम और दक्षिण चीन के गुआंग्शी ज़ुआंग स्वायत्त क्षेत्र के डोंगकिंग में भूमि सीमा के सीमांकन की 20वीं वर्षगांठ और Dongxing में सीमा मार्करों के निर्माण की 10वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम के दौरान, वियतनाम के उपप्रधानमंत्री की उपस्थिति में उन्होंने यह बयान दिया।
साथ ही चीनी विदेश मंत्री ने नए युग में चीन वियतनाम के बीच रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने की भी बात की। अपने बयान में वांग यी ने कहा की “हम चीन और वियतनाम के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करेंगे। हम अन्य क्षेत्रीय विकास की अन्य रणनीतिक योजनाओं को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के साथ जोड़ेंगे”।
रिपोर्ट के अनुसार, 23 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने चीन के क्वांगशी प्रांत में वियतनाम के उप-प्रधानमंत्री व विदेश मंत्री फाम बिन्ह मिन्ह के साथ मुलाकात के दौरान भूमि के साथ-साथ समुद्री सीमा विवादों को सुलझाने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था, “हमें समुद्री विवादों के जल्द निपटारे के लिए भूमि संबंधी मुद्दों को सुलझाने के सफल अभ्यास पर ध्यान आकर्षित करना है, दोनों देशों के पास समुद्री समस्याओं पर बातचीत जारी रखने की क्षमता और बुद्धिमत्ता है।”
गौरतलब है कि चीन का यह बयान तब आया है जब वियतनाम और चीन के बिच पार्सेल द्वीप को लेकर विवाद गहरा गया था। हाल ही में खबर आयी थी की चीन ने पार्सेल द्वीप के समीप अपने एच 6 जे बॉम्बर विमान तैनात कर दिए थे। इसके बाद वियतनाम के राजदूत फाम साह चाउ ने भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला को इस पुरे मामले की जानकारी दी और भारत से मदद मांगी थी। वियतनाम ने भारत के साथ आपसी सहयोग बढ़ाने की इच्छा जाहिर की और भारत को दक्षिणी चीन सागर में तेल और प्राकृतिक गैस के उत्खनन के लिए निमंत्रण दिया। बता दें कि दक्षिण चीन सागर का क्षेत्र खनिज संपदा के मामले में संवृद्ध है। यही कारण है कि चीन अन्य बड़ी शक्तियों को इस क्षेत्र से दूर रखना चाहता है और यहाँ के छोटे देशों को अपनी सैन्य शक्ति से डराता रहता है।
हाल ही में अप्रैल महीने में चीन ने वियतनाम की मछली पकड़ने वाली नौकाओं को डुबो दिया था, जब वे चीन के अनुसार विवादित क्षेत्र में मछली पकड़ने चली गईं थी। यह सर्वविदित बात है कि चीन विवादित क्षेत्रों की परिभाषा अपनी सुविधा के अनुसार गढ़ता है।
परंतु जब वियतनाम ने भारत से मदद मांगी तो चीन ने वियतनाम के साथ सभी विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की बात शुरू कर दी। चीन जानता है कि भारत हिन्द महासागर में अमेरिका के बाद सबसे बड़ी नौसैनिक शक्ति है। साथ ही भारत जिस तरह से निकोबार द्वीपसमूह के विकास के लिए प्रतिबद्धता दिखा रहा है, वह बताता है कि भारत का इरादा अब हिन्द महासागर से आगे बढ़ते हुए दक्षिणी चीन सागर में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने का है।
भारत केवल वियतनाम के साथ ही नहीं, बल्कि फिलीपींस के साथ भी सहयोग बढ़ा रहा है। पहले ही भारत और फिलीपींस के बीच सबांग बंदरगाह के निर्माण के लिए समझौता हो चुका है, और दोनों देशों की नौसेना का आपसी सहयोग भी बढ़ रहा है। अभी हाल ही में भारत की नौसेना ने फिलीपींस के एक नौसैनिक जहाज के खराब होने पर, कोच्चि शिपयार्ड में उसे ठीक भी किया था। यही नहीं भारत ने दक्षिणी चीन सागर में जापान, अमेरिका और फिलीपींस के साथ मिलकर नौसैनिक अभ्यास भी किया था।
ऐसे में जैसे ही वियतनाम ने भारत से चीन की बढ़ती आक्रामकता के खिलाफ मदद मांगी, तो चीन ने तुरंत सोफ्ट स्टांस लेते हुए विवादों को बातचीत की टेबल पर सुलझाने की बात शुरू कर दी। चीन जानता है कि भारत दक्षिणी चीन सागर में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए अवसर की तलाश में है और चीन उसे ऐसा कोई अवसर नहीं देना चाहता। स्पष्ट हो कि चीन का वियतनाम के उप प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री से मिलने का एकमात्र उद्देश्य भारत और अमेरिका के प्रभाव को रोकना है। ऐसे में चीन की ये रणनीति कितनी सफल होगी ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।