राज्यसभा सांसद और समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता अमर सिंह का 64 साल की उम्र में, शनिवार को सिंगापुर के एक अस्पताल में निधन हो गया। वो काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और कुछ दिनों पहले ही उनका किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था।
अमर सिंह भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने राजनीति को कॉर्पोरेट और ग्लैमर से जोड़ा और इन तीनों के मिश्रण से अपनी पहचान बनाई। उनके कैरियर को देखा जाए तो उनके अर्श से फर्श तक पहुंचने की एक बेजोड़ कहानी है। कहा जाता है कि, समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह के रिश्ते की नींव उस समय बनीं जब एचडी देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बने। देवगौड़ा हिंदी नहीं बोल पाते थे और मुलायम का अंग्रेजी में हाथ तंग था, ऐसे में देवगौड़ा और मुलायम के बीच दुभाषिए की भूमिका अमर सिंह ही निभाते थे। उस समय से शुरू हुआ इस साथ के कारण उनकी पहचान मुलायम सिंह के दाहिने हाथ के रूप में बन गई। ये रिश्ता इतना खास था कि मुलायम बिना अमर के कोई फैसला नहीं लेते थे। अमर सिंह ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने सपा को एक ग्रामीण पार्टी की पहचान से निकाल कर ग्लैमर से जोड़ दिया था। जिस पार्टी फंड के लिये मुलायम और शिवपाल साइकिल पर घूमते थे अमर सिंह उसे मंजिल तक पहुंचाते थे। अमर सिंह ने उन्हें बॉलीवुड और कॉर्पोरेट का ऐसा समन्वय दिया कि सैफई में हर साल ग्रैंड फेस्टिवल होने लगा। हालांकि, जैसे-जैसे समय बीता और अमर सिंह के करतूतों का कच्चा चिट्ठा खुलता गया तो सपा में कई नेता उनके खिलाफ होते गए। पार्टी के अंदर बढ़ते विरोध को देखते हुए अमर सिंह को 2009 में सपा से निकाल दिया गया और 2011 में तथाकथित ‘वोट फॉर नोट’ घोटाले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
हालांकि, अमर सिंह डंके की चोट पर कहते थे वो ”मुलायमवादी” हैं और उनकी वफादारी मुलायम सिंह यादव के प्रति है, न कि पार्टी के प्रति। इसी का एक नमूना हमें समाजवादी दंगल के दौरान भी देखने को मिला था जब मुलायम का परिवार टूटने की कगार पर पहुंच गया था।
उस दौरान समाजवादी पार्टी के पारिवारिक कलह में अखिलेश यादव ने रामगोपाल यादव के साथ मिलकर पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव के खिलाफ बगावत कर दी थी। कहा जाता है कि अमर सिंह ने ही मुलायम से अखिलेश को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा कर शिवपाल को अध्यक्ष बनाने के लिए कहा था। इस फैसले के बाद अखिलेश के साथ कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी से बगावत कर दी थी और समाजवादी पार्टी दो खेमे में बंट गया था। दोनों खेमों के बीच का यह विवाद चुनाव आयोग तक पहुंचा था, जिसमें अखिलेश को ही पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष माना गया था।
दरअसल, जब साल 2009 में अमर सिंह को सपा से निकाला गया था तब ही यह तय हो गया था कि अमर सिंह किसी न किसी तरह वापसी करेंगे। सपा से निकाले जाने के बाद अमर सिंह पर कई आरोप लगे और वह इस बीच तिहाड़ जेल भी गए। हालांकि, इस बीच वे दूसरी पार्टियों में भी जाने की कोशिश करते रहे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद अमर सिंह फिर से 2016 में समाजवादी पार्टी का दरवाजा खटखटाने लगे। इसके लिए उन्होंने अपना निशाना चुना अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव को। कुछ मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उस दौरान शिवपाल से यह कहा गया था कि अगर वो Amar singh की एंट्री सुनिश्चित करेंगे तो उन्हें अखिलेश की जगह पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाएगा।
वर्ष 2016 में उनकी सपा में पुन: वापसी हुई। यहीं से सपा में आंतरिक कलह शुरू हुई जो आखिरकार पार्टी टूटने का कारण भी बनी। मुलायम सिंह के साथ दशकों तक काम करने वाले अमर सिंह उनकी कमजोरियों से भी भली-भांति परिचित थे, इसी का फायदा उठाते हुए उन्होंने बेटे और पिता के बीच दरार डालना शुरू कर दिया था। अखिलेश, राम गोपाल यादव और आज़म खान के विरोध के बावजूद मुलायम ने अमर सिंह को राज्यसभा भेजा। धीरे-धीरे Amar singh पार्टी में अपनी दखल बढ़ाते गए और बाप-बेटे के बीच दरार भी बड़ा होता गया।
14 अगस्त 2016 को जब शिवपाल यादव ने पार्टी छोड़ने की धमकी दी, तब अगले ही दिन नेताजी का बयान सामने आया कि यदि शिवपाल पार्टी छोड़ देंगे तो पार्टी टूट जाएगी। मुलायम और अखिलेश के बीच दरार इतनी बढ़ गयी कि अखिलेश द्वारा शिवपाल के समर्थक नेताओं को पार्टी से निकाले जाने के बाद 13 सितंबर को मुलायम सिंह ने शिवपाल को यूपी प्रभारी नियुक्त कर दिया।
इस दौरान दोनों चाचा-भतीजे के साथ मुलायम यादव की बंद कमरे में मीटिंग भी हुई जिसमें चाच-भतीजे के बीच हाथापाई तक की आशंका जताई जाती है। इसके बाद 19 सितंबर 2016 को शिवपाल ने अखिलेश से बदला लेते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से 7 अखिलेश समर्थक नेताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया। चाचा भतीजा एक दूसरे से वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहे और एक दूसरे को नीचा दिखाने का एक मौका भी नहीं छोड़ा।
हालांकि, अखिलेश हमेशा यह कहते रहे कि यह लड़ाई “एक बाहरी” के कारण हो रही है। रामगोपाल यादव ने भी कहा था कि जिस तरह मुख्यमंत्री को बिना बताए अचानक उनसे प्रदेश अध्यक्ष का पद ले लिया गया, वही सपा में अंतरकलह का कारण बना। उन्होंने एक खुलासे में कहा था, “मुख्यमंत्री को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हटाए जाने वाली रात नेताजी (मुलायम) का उनके पास फोन आया कि अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दीजिए और शिवपाल को यह पद दे दीजिए। नेताजी बेहद जल्दबाजी में यह पत्र हमसे लिखवाना चाह रहे थे। यह काम खुद को मुलायमवादी कहने वाले Amar singh का था जिनकी निष्ठा सिर्फ नेताजी से है, समाजवादी पार्टी से नहीं।“ 14 अक्टूबर 2016 को मुलायम सिंह यादव ने तो यह तक कह दिया था कि चुनावों के बाद सीएम, विधायकों के द्वारा चुना जाएगा यानि उन्हें परोक्ष रूप से अखिलेश से सीएम पद छीनने का मन बना लिया था। लेकिन 23 अक्तूबर को अखिलेश ने शिवपाल समेत कुछ अन्य मंत्रियों को सरकार से बरखास्त कर इस विवाद को एक नया मोड़ दे दिया था। देखा जाए तो राम गोपाल यादव की अमर सिंह को लेकर कही हुई बात आज भी सच है। उन्होंने कहा था कि मुलायम सिंह यादव की सरलता का फायदा उठा कर अमर सिंह ने अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने का फैसला करवा दिया। यह विधानसभा चुनाव के पहले सपा की छवि को खराब करने का एक षड्यंत्र था।” अमर सिंह को 2017 में पार्टी से दूसरी बार निष्कासित किया गया था।
अमर सिंह द्वारा शुरू किए गए इस पारिवारिक कलह का ही नतीजा था कि समाजवादी पार्टी को 2017 के विधान सभा चुनावों में भारी हार का सामना करना पड़ा और वह अभी तक जनता की नजर में उठ नहीं पाई है।