इस वर्ष कोविड महामारी फैलने से पहले ही चीनी अर्थव्यवस्था मंदी के संकेत देने लगी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल की शुरुआत में ही चीनी व्यापारियों के सामने बड़ी आर्थिक समस्या पैदा हो चुकी थी। उनके पास अपने खर्चों के लिए भी पैसा उपलब्ध नहीं था, और ना ही चीन के सरकारी बैंक उन्हें कैश मुहैया करा रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि चीनी बैंकों ने सालों तक real estate क्षेत्र की कई कंपनियों को बड़े-बड़े कर्ज़ दिये, इसके अलावा कई बड़ी कंपनियों को भ्रष्टाचार के जरिये भी कर्ज़ प्रदान किए गए। चीन के सामने समस्या यह है कि बड़े-बड़े कर्ज़ डूबने से और वित्तीय प्रणाली में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होने की वजह से चीन में अब उद्योग बर्बाद होने लगे हैं। आर्थिक बर्बादी के कारण चीन में जिनपिंग का विरोध भी बढ़ता जा रहा है, जिसे रोकने के लिए अब जिनपिंग ने माओ के रास्ते पर चलते हुए “भ्रष्टाचार-विरोधी कार्यक्रम” के तहत अपने विरोधियों को ठिकाने लगाना शुरू कर दिया है।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की वित्तीय प्रणाली बेहद खस्ता हो चुकी है। उदाहरण के लिए हाल ही में चीन में Huarong घोटाला सामने आया है। दरअसल, Huarong एक चीनी सरकारी कंपनी है, जिसके पूर्व अध्यक्ष Lai Xiaomin ने हाल ही में वर्ष 2008 से लेकर वर्ष 2018 के बीच में 259 मिलियन युआन रिश्वत लेने के आरोपों को कबूल किया है। इसका मतलब यह है कि करीब एक दशक तक Lai ने हर दिन करीब आधा मिलियन युआन की रिश्वत खाई थी। Huarong चीनी वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है और ऐसे में कंपनी में सिर्फ अध्यक्ष की ही मनमर्ज़ी चलती है, जिसके कारण Lai को कभी भ्रष्टाचार करने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई।
इसके अलावा चीन में इस साल का सबसे बड़ा “सोना घोटाला” कौन भूल सकता है? दरअसल, इसी वर्ष जुलाई में यह सामने आया था कि पिछले कुछ सालों में चीन के हुबई प्रांत की सबसे बड़ी प्राइवेट ज्यूलरी कंपनी Kingold ने सोना बोलकर 83 टन “कॉपर ” को अलग-अलग ऋणदाताओं के पास गिरवी रख करीब 16 बिलियन युआन का कर्ज़ उठाया लिया। इस साल फरवरी में चीन के एक बैंक Dongguan Trust ने जैसे ही Kingold के सोने को बेचने की कोशिश की, जांच के बाद पता चला कि वह तो कॉपर है। इस खबर के सामने आने के बाद Kingold के अन्य ऋणदाताओं की भी सिट्टी-पिट्टी गुल हो गयी। जब उन्होंने भी Kingold द्वारा गिरवी रखे सोने की जांच की, तो पता चला कि वे तो कई महीनों से कॉपर का बोझ उठा रहे थे।
ये खबरें दिखाती हैं कि किस प्रकार शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीनी अर्थव्यवस्था ताश के पत्तों की तरह बिखरने वाली है। Kingold जैसी बड़ी कंपनियों ने चीन के shadow Banks से बड़े पैमाने पर कर्ज़ लिया है, और real estate में तबाही आने के बाद ये कंपनियाँ अब इन बैंकों को पैसा नहीं दे पा रही हैं, जिसके कारण बैंकों पर भी बर्बादी के बादल मंडराना शुरू हो गए हैं। इसके साथ ही इन कंपनियों ने अपने नुकसान को सरकारी इन्शुरेंस कंपनियों से insured करवाया हुआ है। इतने बड़े नुकसान की भरपाई करते-करते चीनी सरकारी इन्शुरेंस कंपनियों का बर्बाद होना भी तय माना जा रहा है।
ऐसे में चीन के बिजनेसमैन और उद्योगपति, जो कि अधिकतर मामलों में CCP के सदस्य भी होते हैं, वे अब जिनपिंग का विरोध करना शुरू कर चुके हैं। देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद होते देख जिनपिंग के खिलाफ गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। हाल ही में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा CCP अकेडमी में पढ़ाने वाली Dr Cai को बीजिंग के सेंट्रल पार्टी स्कूल से बर्खास्त कर दिया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने हाल के बयानों में जिनपिंग और कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ बयान दिये थे और CCP को political Zombie बताया था। वे पिछले साल से ही अमेरिका में रह रही हैं। ऐसे में अब चीन ने उन्हें पार्टी से निकालकर उनके खिलाफ कार्रवाई की है। हालांकि, इस तरह की कार्रवाई को भुगतने वाली वे अकेली नहीं हैं। इसी वर्ष सरकारी रियल एस्टेट कंपनी के पूर्व अध्यक्ष रेन झिकियांग को सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। उनका दोष सिर्फ यह था कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से चीनी राष्ट्रपति की आलोचना की थी। बस इतना होते ही ना सिर्फ उन्हें पार्टी से निकाला गया, बल्कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा भी चला दिया गया।
भ्रष्टाचार के लिए कार्रवाई की आड़ में शुरू से ही जिनपिंग अपने विरोधियों की आवाज़ दबाते आए हैं। Wion की एक रिपोर्ट के मुताबिक शी जिनपिंग ने अपने देश के पुलिस प्रशासन, न्यायपालिका और कानून से जुड़ी एजेंसियों में “स्वच्छता अभियान” चलाया है, जिसके अंतर्गत चीनी सरकार “भ्रष्ट” लोगों को पकड़ रही है। इस बात की उम्मीद बेहद ज़्यादा है कि देश की खराब होती आर्थिक हालत के बीच जिस प्रकार देश में जिनपिंग का विरोध बढ़ रहा है, उसके बाद अब वे “भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम” चलाकर अपने विरोधियों को शांत करने में लगे हैं।
चीन में जिनपिंग से पहले भी चीनी राष्ट्रपति ऐसे ही अपने विरोधियों का नामो-निशान मिटाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना चुके हैं। उदाहरण के तौर पर वर्ष 1966 में चीनी राष्ट्रपति माओ ने “cultural revolution” के नाम पर देश से अपने विरोधियों और खासकर पूंजीवादी तत्वों को मिटाने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाया था। इस दौरान करीब 20 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। अब लगता है कि बढ़ते विरोध के कारण जिनपिंग भी अपने देश में इस तरह के कार्यक्रमों के माध्यम से अपने विरोधियों की आवाज़ को बंद करने का काम कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि चीन के आंतरिक हालात किस हद तक बदतर हो चुके हैं।