“हमारे मंदिर को तोड़ कर बनाई गई अल-अक्सा मस्जिद”- यहूदियों ने अल अक्सा पर अपना दावा ठोकना शुरू किया

बात धार्मिक अधिकार की है

यहूदी

pc: The Times Of Isreal

तुर्की के हागिया सोफिया को मस्जिद में बदले जाने के बाद अब इजरायल के यहूदियों ने अल-अक्सा मस्जिद को वापस अपने मंदिर में बदलने की कार्रवाई शुरू कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार दर्जनों इजरायली चरमपंथियों ने कल अल-अक्सा मस्जिद पर धावा बोला और मस्जिद के पूर्वी हिस्से में तलमुदी की नमाज अदा की।

फिलिस्तीनी चश्मदीदों के अनुसार, यहूदी लोग इजराइली सेना के संरक्षण में कट्टरपंथी Rabbi Yehuda Glick के नेतृत्व में आए थे। जब वे आए, तो मुस्लिम नामजियों को उस समय प्रवेश से रोक दिया गया था। यह इस तरह की पहली घटना नहीं थी, बल्कि पिछले महीने कई बार यहूदियों ने इसी प्रकार घुस कर अल-अक्सा मस्जिद में तलमुदी की नमाज अदा की थी। यहूदियों के अनुसार, अल अक्सा मस्जिद यहूदी मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी। अब यहूदियों द्वारा अपने धार्मिक स्थल पर पुन: दावा किया जा रहा है और उन्होंने कार्रवाई भी शुरू कर दी है।

पर सवाल है कि, यहूदिओं और मुस्लिमों का इस मस्जिद को ले कर विवाद क्यों है? दरअसल, टेम्पल माउन्ट को सबसे पहले 957 ईसा पूर्व में यहूदी किंग सुलेमान द्वारा बनवाया गया था। पहला मंदिर 586 ईसा पूर्व में बेबीलोन के लोगों द्वारा नष्ट कर दिया गया था और जब दूसरा मंदिर बना तो फिर से 70 ईस्वी में रोमन लोगों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। यहूदी मानते हैं कि, सुलेमान इजराइल के दूसरे शासक थे जबकि इस्लामी मान्यताओं में इन्हें देवदूत का दर्जा प्राप्त है। टकराव इसलिए है क्योंकि, मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार पैगम्बर मोहम्मद स्वर्ग जाते समय थोड़ी देर के लिए इस टेम्पल माउन्ट में रुके थे। इसी मान्यता के कारण अय्यूबी सल्तनत के पहले शासक सलादीन ने इस यहूदी मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बना दी थी। जेरुसलम के पूर्वी हिस्से, जिसमें अल अक्सा मस्जिद स्थित है, को लेकर साल 1967 में ‘सिक्स डे वॉर’ भी हो चुकी है।

बता दें कि, इजराइल के टेम्पल माउन्ट पर स्थित अल-अक्सा मस्जिद का तब चर्चा में आया, जब तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने के बाद अल-अक्सा मस्जिद को आज़ाद करवाने की बात कही

अल-अक्सा मस्जिद, जिसे यहूदियों के पवित्र मंदिर को तोड़ कर बनाया गया था, आज तक इजराइल और मुस्लिम जगत के बीच तनाव का कारण बना हुआ है लेकिन अब एर्दोगन उसे हवा देकर इस विवाद को और बढ़ाना चाहते हैं ताकि सभी उन्हें इस्लाम का अग्रदूत मानें। तुर्की सरकार द्वारा समर्थित एक अख़बार के मुताबिक़, हागिया सोफिया मस्जिद का पुनरुत्थान, अल अक्सा मस्जिद की आज़ादी का पहला कदम है। एर्दोगन के इस बयान की अमेरिका के यहूदी संगठनों ने भारी आलोचना की थी। देखा जाए, तो अल अक्सा मस्जिद को पहले से ही पर्याप्त स्वतंत्रता मिली हुई है। साल 1994 में इजराइल और जॉर्डन के बीच हुए एक समझौते के तहत, मस्जिद का  प्रशासन एक इस्लामिक वक़्फ़ द्वारा संचालित है, जो जॉर्डन स्थित इस्लामिक मामलों के मंत्रालय के अधीन है। इस स्थान का यहूदी मान्यताओं में भी महत्त्व है। हालाँकि, यहूदी अपने ही देश में स्थित इस पवित्र स्थल पर प्रार्थना नहीं कर पाते क्योंकि, मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों द्वारा यह कतई स्वीकार नहीं किया जाता कि यहाँ यहूदी आएं। यही कारण है कि, इस स्थान पर हमेशा तनाव बना रहता है। मुस्लिमों का यही विरोध अब इजराइल के लोगों से बर्दाश्त नहीं हो रहा है और अब यहूदी लोग अपने धार्मिक अधिकार के लिए लड़ने को तैयार हैं।

तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन शायद भूल गए थे कि अल अक्सा कोई हागिया सोफिया नहीं है। अल-अक्सा न सिर्फ यहूदी लोगों की भावनाओं से जुड़ा है बल्कि यह इजराइल की संप्रभुता में हस्तक्षेप भी है। शायद यही वजह है कि, हाल ही में मस्जिद में चरमपंथी यहूदियों के घुसने की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पिछले सप्ताह 900 से अधिक यहूदी, जेरुसलम स्थित अल-अक्सा मस्जिद में आए थे। इससे पहले भी इजरायली पुलिस के घेरे में 200 से अधिक चरमपंथी यहूदियों ने अल-अक्सा मस्जिद पर छापा मारा था। यानि, अब इजरायल में इस मस्जिद के खिलाफ लोगों में भावना भड़क चुकी है और एर्दोगन के बयान ने उनके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई है। अगर इस पवित्र स्थल के कारण एक बार फिर से इजरायल और मुस्लिम देशों के बीच तनाव बढ़ता है तो युद्ध की स्थिति बन सकती है जैसा 1967 में Six day War के दौरान हुआ था। हालांकि तब इजरायल ने सभी मुस्लिम देशों के एक साथ हमला करने के बावजूद उन सभी को धूल चटाया था। खाड़ी के देश शायद ही ऐसी गलती दोहराएँ।

Exit mobile version