लगता है है ऑस्ट्रेलिया के वर्तमान प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने चीन के विरुद्ध चलाये जा रहे अभियान को अलग ही स्तर पर ले जाने का बीड़ा उठाया है। हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने ये घोषणा की है कि वह एक विदेश नीति विधेयक को जल्द ही पारित करवाएगा, जिसमें ऑस्ट्रेलिया की सरकार को ऑस्ट्रेलिया के किसी भी इकाई के साथ किसी विदेशी सरकार द्वारा की गई संधि का पुनर्निरीक्षण करने, उसे स्थगित करने या रद्द करने की पूर्ण स्वतन्त्रता मिलेगी।
परंतु इसका चीन से क्या संबंध है? दरअसल, ये विधेयक स्पष्ट रूप से चीन के साथ किए गए परियोजनाओं को लेकर है। सच कहें तो ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ऑस्ट्रेलिया से चीन के प्रभाव को हमेशा के लिए समाप्त करना चाहते हैं। स्कॉट मॉरिसन का संदेश स्पष्ट है – अब चीन की किसी भी हेकड़ी को ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन द्वारा नहीं सहा जाएगा, और जहां जहां भी चीन ने ऑस्ट्रेलिया में निवेश किया है, उन सब जगहों से उसे धक्के मारकर बाहर निकाला जाएगा।
BREAKING – the Australian government announces it is legislating new powers to review and cancel agreements that state and territory governments, local councils and public universities make with foreign governments. Likely to spell the end of Victoria's BRI MoU with China. pic.twitter.com/YYqD9Q7QCt
— Stephen Dziedzic (@stephendziedzic) August 26, 2020
ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा हाल ही में जारी किए गए एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार “मॉरिसन सरकार एक ऐसा अधिनियम पारित करवाना चाहती है जो किसी भी विश्वविद्यालय, राज्य सरकार, केंद्र शासित प्रदेश अथवा परिषद स्तर पर विदेशी सरकारों के साथ किए गए करार ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति के अनुकूल हो। इस संशोधन के अंतर्गत विदेश मंत्री को किसी भी ऐसे परियोजना को रद्द करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी, जो देश के लिए आगे चलकर खतरनाक हो”।
इस प्रेस विज्ञप्ति का उद्देश्य स्पष्ट है – अब से ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति पूर्ण रूप से स्कॉट मॉरिसन के हाथों में होगी। अब तक ऑस्ट्रेलिया की क्षेत्रीय इकाईयों को किसी भी प्रकार के समझौते का हिस्सा बनने की स्वतन्त्रता थी, जिसका दुरुपयोग चीन ने विशेष रूप से किया है। विक्टोरिया प्रांत को चीन के कुकर्मों से सबसे अधिक नुकसान हुआ है और जब ऑस्ट्रेलिया आक्रामक होने लगी, तभी से ऑस्ट्रेलिया में मांग उठने लगी कि विक्टोरिया प्रांत में चल रहे चीनी प्रोजेक्ट्स पर तत्काल प्रभाव से रोक लगे।
परंतु विक्टोरिया का प्रोजेक्ट ही इकलौता प्रोजेक्ट नहीं है जिससे मॉरिसन पिंड छुड़ाना चाहते हैं। उत्तरी प्रांत में स्थित डार्विन पोर्ट भी एक ऐसी जगह है, जहां चीन ने भर भरके निवेश किया है। 2015 में इस पोर्ट को तत्कालीन ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन ने 99 वर्ष के लिए एक चीनी कंपनी को लीज़ पर दे दिया था। रणनीतिक रूप से ये एक बहुत बड़ी भूल थी, जिसका फ़ायदा उठाते हुए चीन ने इसे अपने विवादित BRI प्रोजेक्ट का हिस्सा जताना शुरू कर दिया। डार्विन पोर्ट रणनीतिक रूप से हिन्द प्रशांत क्षेत्र के उस छोर पर स्थित है, जहां से अमेरिकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके, और अब ऑस्ट्रेलिया चीन को ये सुविधा नहीं उठाने देना चाहता है। लेकिन समस्या यह है कि उत्तरी प्रांत के मुख्यमंत्री माइकल गनर इस पोर्ट को वापिस ही नहीं लेना चाहते हैं।
चीन का ऑस्ट्रेलिया पर कितना प्रभाव है, ये आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि अभी चीन के प्रति कई ऑस्ट्रेलियाई नरम रुख रखते हैं। कई ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में लगभग 10 प्रतिशत राजस्व चीनी विद्यार्थियों से ही आता, और न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय एवं सिडनी विश्वविद्यालय में 20 प्रतिशत विद्यार्थी चीन से हैं। यही नहीं, चीन के विद्यार्थी ऑस्ट्रेलिया में खुलेआम गुंडई करते हैं, और हाँग काँग के समर्थन में उठने वाली आवाज़ों का दमन करते हैं। इसके अलावा CCP ने कई ऑस्ट्रेलियाई शिक्षाविदों के इंटेलेक्चुअल सम्पदा को चीनी TTP यानि Thousand Talents Plan के अंतर्गत चोरी करने में जुटे हुए हैं।
परंतु अब और नहीं। अब प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने तय कर लिया है कि चीन की दादागिरी अब और नहीं चलेगी। वे नहीं चाहते कि चीन की तानाशाही का असर ऑस्ट्रेलिया पर हो, जिसके लिए वे एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने को भी तैयार हैं। ऐसे में अब कोई भी परियोजना, जो विशेष रूप से चीन से संबंधित हो, अब ऑस्ट्रेलियाई सरकार की समीक्षा के दायरे में आएगी, और ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगी कि अब चीन का बुरा वक्त आधिकारिक रूप से ऑस्ट्रेलिया की दृष्टि से शुरू हो चुका है।