‘पावर सेक्टर से चीन को निकालो, वरना हमें भुगतना पड़ेगा’, चीन के बढ़ते प्रभाव से ऑस्ट्रेलिया की चिंता बढ़ने लगी है

चीन को निकाल फेंकना ही समस्या का समाधान है

ऑस्ट्रेलिया चीन

चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच तनाव बढ़ने के बाद ऑस्ट्रेलिया के सुरक्षा विशेषज्ञ अपने देश में चीन की उपस्थिति से बहुत चिंतित हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने चीन से तनाव के बाद अपना रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला भी किया था। अब उन्हें एक नई चिंता सता रही है। ऑस्ट्रेलिया में मांग उठी है कि सरकार अपने इलेक्ट्रिसिटी के क्षेत्र में चीन के प्रभाव को खत्म करें अन्यथा इसके गंभीर परिणाम ऑस्ट्रेलिया को भुगतने पड़ सकते हैं।

दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के एक अत्यंत प्रभावशाली सीनेटर रेक्स पेट्रिक ने इस ओर सरकार का ध्यान दिलाया है।उनके अनुसार चीन ने विगत कई वर्षों में ऑस्ट्रेलिया को ट्रांसफार्मर का निर्यात करने में वियतनाम को काफी पीछे छोड़ दिया है।इसी कारण से ऑस्ट्रेलिया के पावर ग्रिड सेक्टर में चीन का एकछत्र राज है।

दरसल पश्चिम के सुरक्षा विशेषज्ञों में इस बात को लेकर चिंता है कि चीन पावर सेक्टर में इस्तेमाल होने वाले जो उपकरण आज दुनिया को बेच रहा है, उसमें वह ऐसे तकनीक का प्रयोग कर रहा है जिसके द्वारा वो आसानी से ऐसे देशों को पावर सप्लाई को नियंत्रित कर सकता है। यदि चीन इस तकनीक का प्रयोग करता है तो अपने विरोधी देशों को इतना नुकसान अवश्य पहुंचा सकता है कि उससे उबरने में महीने भर से अधिक का समय लग जाए। साइबर एक्सपर्ट Paul Dabrow का कहना है कि ऐसे नुकसान से उबरने में महीनों लग सकते हैं और यह एक्सपेरिमेंट में सिद्ध भी हो चुका है।

हाल ही में अमेरिका ने भी इसी कारण को आधार बनाते हुए चीन से आने वाले उपकरणों की जाँच और उनके विकल्पों की ओर ध्यान देने के लिए कदम उठाए थे। पिछले साल अमेरिका ने अपने कोलोराडो प्रान्त में चीन निर्मित ऐसे उपकरणों को जब्त किया था और उन्हें जाँच के लिए लैब में भेजा था। ट्रम्प सरकार ने आदेश जारी करते हुए कहा कि ऐसे उपकरण जो ऊर्जा आपूर्ति के पूरे तंत्र को नियंत्रित करते हैं उनकी विदेशों से बे-रोक-टोक आपूर्ति होना अस्वाभाविक तो है ही  बल्कि यह अमेरिका की आर्थिक, विदेश और सुरक्षा नीति के हिसाब से भी बहुत बड़ा खतरा है।

यही कारण है कि अब ऑस्ट्रेलिया में भी यह मांग उठ रही है। सीनेटर रेक्स ने कहा है कि  “आज जब ऑस्ट्रेलिया की सरकार को, ऑस्ट्रेलिया के विदेशी निवेश कानूनों के लिए अपने प्रस्तावित परिवर्तनों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, उसी समय चीनी सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण और प्रभाव वाली कंपनियों को ऑस्ट्रेलिया के बिजली उत्पादन से अलग करने की भी आवश्यकता है। जैसा बदलाव हांगकांग के दर्जे में किया गया है वैसा ही बदलाव हांगकांग में रजिस्टर कंपनियों के दर्जे में भी करना चाहिए।

हालाँकि, चीन की ओर से इस आरोप का पूर्णतः खंडन किया गया है। चीन ने कहा है कि यह राजनीति से प्रेरित कदम है जो ऑस्ट्रेलिया के घरों को सस्ती बिजली देने के प्रयास को बाधित कर सकता है। स्वाभाविक है कि चीन ऐसे किसी भी आरोप का खंडन ही करता लेकिन आज के वैश्विक परिदृश्य में जहाँ 5G इंटरनेट और आईटी सेक्टर देश की सुरक्षा से जुड़े हैं, वहां इस थ्योरी को पूर्णतः नहीं नकारा जा सकता। आज दुनिया साइबर अटैक और डाटा चोरी जैसी समस्याओं से जूझ रही है और अक्सर चीन पर ऐसे गलत हथकंडों का इस्तेमाल करने का आरोप लगता रहा है।

वैसे भी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में एक साइबर अटैक हुआ था जिसका आरोप चीन पर ही लगा था।  ऐसे में सेनेटर रेक्स ने जो मुदा उठाया है उसे नजरअंदाज करना ऑस्ट्रेलिया की सरकार को भारी भी पड़ सकता है।  ऑस्ट्रेलिया वैसे भी अपने देश में चीन के प्रभाव से परेशान रहता है। हाल ही में जब ऑस्ट्रेलिया की फ़ेडरल सरकार ने चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को मना कर दिया था, तब भी चीन ने ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रान्त की सरकार को इसमें शामिल होने पर मना ही लिया था। गौरतलब है कि चीन ने 2018-19  के बीच कुल 29 ट्रांसफार्मर ऑस्ट्रेलिया को निर्यात किये थे जिसमें से 16 इसी प्रान्त द्वारा ख़रीदे गए थे। ऐसे में यदि रेक्स की बातें सत्य हुई तो चीन बीजिंग से बैठे-बैठे ही ऑस्ट्रेलिया की ऊर्जा आपूर्ति को बाधित कर सकता है और उसकी अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।

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