“तुम मुझे पैसे दो, मैं तुम्हें बेलारूस दूँगा”, चीन की भक्ति में EU बेशर्मी की हदें पार कर चुका है

भाड़ में जाए ईमान, इन्हें चाहिए चीनी युआन

बेलारूस

कोरोना के बाद, चीन के प्रति यूरोपियन यूनियन का रुख एक पेंडुलम की तरह घूमता दिखाई दे रहा है। कभी EU चीन के प्रति बेहद सख्त रुख दिखाने का नाटक करता है, तो कभी वह अपने असली रंग दिखाकर चीन के तलवे चाटता दिखाई देता है। ऐसा ही एक बार फिर देखने को मिला है। हाल ही में Cyber attacks के लिए चीनी कंपनियों को प्रतिबंधित करने वाले EU ने अब बेलारूस के मामले पर खुलकर चीन के एजेंट के तौर पर काम करना शुरू कर दिया है। बेलारूस में हाल ही में चुनाव हुए थे, जिसमें चीन समर्थित राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको की जीत हुई। माना जा रहा है कि उन्होंने चुनावों में धांधली कर चुनाव जीता है। हालांकि, यूरोपियन यूनियन इसको लेकर आँख मूँदे बैठे हुए है। EU चाहता है कि, बेलारूस में चीन का प्रभुत्व बढ़ जाए और रूस का प्रभाव वहाँ हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाए।

बेलारूस पहले सोवियत यूनियन का ही हिस्सा था। वर्ष 1991 से पहले एक ही देश होने की वजह से अब तक रूस और बेलारूस के रिश्ते बेहद अच्छे रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ समय से यह देश चीन के चंगुल में फँसता जा रहा है। पिछ्ले साल बेलारूस ने रूस के 600 मिलियन डॉलर के लोन को ठुकराकर चीन के 500 मिलियन डॉलर के लोन को मंजूरी दी थी। इतना ही नहीं, बेलारूस के राष्ट्रपति बने अलेक्जेंडर लुकाशेंको खुद रूस की आलोचना करते रहते हैं। हाल ही में हुए चुनावों से पहले अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने, रूस पर चुनावों में हस्तक्षेप करने का भी आरोप लगाया था।

29 जुलाई को बेलारूस में 33 “रूसी लड़ाकों” को गिरफ्तार भी किया गया था। बेलारूस के प्रशासन ने आरोप लगाया था कि ये सभी क्रेमलिन से जुड़े हुए थे और देश को अस्थिर करने की कोशिशों में जुटे थे।

बता दें कि, चुनावों में अलेक्जेंडर लुकाशेंको की एकतरफा जीत हुई है। उन्हें करीब 80.23 प्रतिशत वोट मिले हैं, जिसके बाद वे छठी बार बेलारूस के राष्ट्रपति बनने वाले हैं। चुनावों के बाद लिथुआनिया भागने वाली विपक्षी उम्मीदवार को महज़ 9.9 प्रतिशत वोट ही मिल पाए। ये तथ्य अपने आप में इन चुनावों की निष्पक्षता को बयां करते हैं।

बेलारूस में अब लोगों के अंदर गुस्सा देखने को मिल रहा है। विपक्षी उम्मीदवार Tikhanovskaya अपनी रैलियों में भारी भीड़ जुटा पाने में सक्षम दिखाई दे रही थीं। अब चुनावों में धांधली के कारण बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। उम्मीद के मुताबिक, राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको इन सभी प्रदर्शनकारियों को दबाने की भरपूर कोशिशों में जुट गए हैं।

अलेक्जेंडर लुकाशेंको के छठी बार बेलारूस के राष्ट्रपति बनने से चीन को सबसे ज़्यादा फायदा हुआ है। BRI के लिए चीन बेलारूस को सबसे महत्वपूर्ण साझेदार समझता है, और ऐसे में अलेक्जेंडर लुकाशेंको का सत्ता में बने रहना चीन के लिए बेहद ज़रूरी है। इसिलिए तो जब चुनावों में धांधली कर, अलेक्जेंडर लुकाशेंको की जीत हुई, तो चीनी राष्ट्रपति ने सबसे पहले उन्हें बधाई दी।

ऐसे में EU की भूमिका पर सवाल खड़े करना लाज़मी है। EU आमतौर पर फर्जी चुनाव कराने वाले देशों और ऐसे चुनाव जीतकर आने वाले राष्ट्राध्यक्षों पर प्रतिबंध लगाने में विश्वास रखता है, लेकिन बेलारूस के मामले में लगता है EU ने अपनी आँखों पर चीनी युआन की पट्टी बांध ली है। EU के अंदर कुछ लोग बेशक अलेक्जेंडर लुकाशेंको पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी एक भी नहीं सुनी जा रही है।

उदाहरण के तौर पर, पोलैंड से यूरोपियन संसद के सदस्य, रोबर्ट बाइड्रोन ने मांग उठाते हुए कहा, “हमें मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए तुरंत बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको पर प्रतिबंध की घोषणा करनी चाहिए। अलेक्जेंडर लुकाशेंको को अपने किए के लिए दंड मिलना ही चाहिए। इसके बिना बेलारूस में कुछ बदलने वाला नहीं है”। हालांकि, EU में उनकी कोई भी सुनने वाला नहीं है।

बता दें कि, वर्ष 2016 में EU ने अलेक्जेंडर लुकाशेंको पर पहले से लगाए गए प्रतिबंधों को हटा दिया था। तब EU ने कहा था कि कुछ विपक्षी नेताओं को रिहा करके बेलारूस ने सही दिशा में कदम उठाया है, ऐसे में उनपर प्रतिबंध हटाए जा रहे हैं। हालांकि, अब चुनावों के बाद जब इस देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं, तब भी EU चुप ही दिखाई दे रहा है।

EU रूस के खिलाफ बड़े कदम उठाने में कोई हिचकिचाहट नहीं रखता। वर्ष 2014 में जब रूस ने क्रिमिया को अपने क्षेत्र में मिला लिया था, तो जर्मनी के नेतृत्व वाले EU ने रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हालांकि, अब EU चीनी समर्थक अलेक्जेंडर लुकाशेंको के खिलाफ जाने की हिम्मत भी नहीं दिखा पा रहा है।

EU अभी अपनी अघोषित नेता एंजेला मर्कल के हाथों में है, जो कि अपने यहाँ चीनी प्रभुत्व को बढ़ावा देने के लिए लोकतंत्र को खतरे में डालने के लिए तैयार है। इसीलिए जहां एक तरफ बेलारूस में अलेक्जेंडर लुकाशेंको की सरकार प्रदर्शनकारियों पर ज़ुल्म ढा रही है, तो वहीं EU ने दूसरी ओर मुंह फेरने का ही निश्चय कर लिया है।

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