“भाई, चुनाव में यहाँ मत आना”, बिहार Congress ने बड़ी ही चतुराई से राहुल को दफा हो जाने को कह दिया है

क्योंकि बिहार कांग्रेस चुनावों में जीतना चाहती है...

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pc: लोकमत news

बिहार चुनाव होने में बस कुछ ही महीने बाकी हैं और काँग्रेस आलाकमान ने इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आक्रामक तेवर दिखाते हुए, मोर्चा संभालने का निर्णय किया है। हालाँकि, काँग्रेस के नेता, राहुल की बातों से पूरी तरह सहमत नहीं दिखाई दे रहे। उन्हें अब यह डर सताने लगा है कि, राहुल गाँधी द्वारा चुनाव प्रचारों का मोर्चा सँभालने से, कहीं पार्टी की बची हुई साख भी खत्म ना हो जाए।

एक वर्चुअल मीटिंग में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि, बिहार एक अहम राज्य है, जो भारत की दशा और दिशा दोनों ही बदल सकता है। वर्चुअल मीटिंग राहुल कहते हैं, “राज्य सरकार कोरोना वायरस से निपटने में पूरी तरह नाकाम रही है। मैं भविष्यवाणी करता हूँ कि, बिहार में बेरोजगारी की बाढ़ आएगी, जो छह महीने में पूरे देश में छा जाएगी। अगले एक महीने में भारत, कोरोना वायरस का विश्व गुरु बन जाएगा। ऐसे में, बिहार की स्थित सुधारने के लिए काँग्रेस पार्टी ही एकमात्र विकल्प है। यदि हम आपसी सहयोग से काम करें, तो बिहार में हम विजय प्राप्त कर सकते हैं” –

राहुल गांधी के वक्तव्य से ऐसा प्रतीत होता है कि, वे बिहार में काँग्रेस को उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। पर, क्या बिहार काँग्रेस उनकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत है? शायद नहीं। दी स्टेट्समैन अख़बार में छपी एक रिपोर्ट की मानें तो बिहार काँग्रेस के अनुसार राहुल गांधी चुनाव प्रचार अभियान से जितना दूर रहें, उतना पार्टी के लिए बेहतर है।

सूत्रों की मानें तो बिहार काँग्रेस के नेता यह बिलकुल नहीं चाहते कि, राहुल गांधी अब वहाँ (बिहार) आएं क्योंकि, अब बहुत देर हो चुकी है। दी स्टेट्समैन की रिपोर्ट के अंश अनुसार, “सूत्रों ने कहा है कि, चुनाव की तैयारियों में अब बहुत देर हो चुकी है। वैसे भी अभी तक साझेदारों (महागठबंधन की साथी पार्टियों) के साथ सीट शेयरिंग पर कोई बात नहीं हुई है।“

इन बातों का अर्थ स्पष्ट है – बिहार काँग्रेस के नेता अप्रत्यक्ष रूप से चाहते हैं कि, राहुल गांधी बिहार से जितना दूर रहें, उतना ही अच्छा। और तो और कांग्रेस पार्टी के पिछले कुछ चुनावों के अनुभव भी यही कहते हैं कि, जिन भी राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान में राहुल गांधी ने प्रचार में सक्रिय रूप से हिस्सा नहीं लिया था, वहाँ काँग्रेस अपने स्थानीय नेताओं के बल पर चुनाव जीतने में सफल रही। मध्यप्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के चुनाव प्रचार में राहुल गांधी ने सक्रिय रूप से हिस्सा नहीं लिया था, जिसके कारण यहाँ काँग्रेस सरकार बनाने में सफल भी रही।

यहीं नहीं, जब राहुल गांधी ने वर्चुअल मीटिंग गठित की थी, तो उसी दौरान काँग्रेस नेता तारिक अनवर ने कहा था कि, काँग्रेस को बिहार चुनाव के लिए लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद से ही तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि, पार्टी का आधार राज्य में बहुत ही कमजोर है। जो बिलकुल सही बात भी है।

आपने पारस पत्थर की कहानी तो सुनी ही होगी, ऐसा पत्थर, जिससे कोई भी वस्तु स्पर्श होते ही स्वर्ण में परिवर्तित हो जाए। राहुल गांधी के साथ ठीक उल्टा मामला है – वह जिस भी जगह चुनाव प्रचार करने जाते हैं, वहाँ काँग्रेस या तो खिचड़ी गठबंधन ही बना पाती है, जो मुश्किल से एक साल टिकती है, या फिर काँग्रेस धूम-धड़ाके के साथ चुनाव हार जाती है। बिहार में काँग्रेस 1990 के बाद अब तक सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है, और ऐसे में बिहार कांग्रेस के नेता ये बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि पार्टी की जो रही-रही कसर बची हुई है, वो भी कहीं राहुल गांधी के बिहार आगमन से मिट्टी में ना मिल जाए।

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