ताइवान की राजनीति को हाल ही में एक गहरा धक्का लगा है, क्योंकि हाल ही में ‘मिस्टर डेमोक्रेसी’ के नाम से जाने जाने वाले ताइवान के पूर्व राष्ट्रपति Lee Teng-hui का अनेकों बीमारियों से जूझते हुए बृहस्पतिवार को निधन हो गया। ताईवान में लोकतन्त्र को लाने वाले पुरोधा माने जाने वाले Lee Teng-hui अनेकों संक्रमण, हृदय रोग एवं organ failure से पीड़ित थे। त्साई इंगवेन ने Lee Teng-hui हुई की मृत्यु पर अपना दुख जताते हुए यह घोषणा की है कि ली का अंतिम संस्कार ताइवान पूरे राजकीय सम्मान के साथ करेगा।
Lee Teng-hui के निधन से ताइवान काफी दुखी है, पर चीन के लिए तो मानो ये खुशी का अवसर था। चीन की चाटुकारी मीडिया ने तो ली को ‘विश्वासघाती’ और ‘राष्ट्रद्रोही’ की संज्ञा देते हुए यहां तक कह दिया कि उनकी मृत्यु से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ है, और चीन के लिए ये बेहद शुभ समाचार है। ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा, “ली की मृत्यु निस्संदेह चीन के लिए एक दुखद खबर नहीं हो सकती। चीन में उनकी बतौर राष्ट्रद्रोही की छवि कभी नहीं बदल सकती, और द्वीप के अलगाववादी चाहे जो कर लें, पर चीन के साथ ताईवान को एक होना ही पड़ेगा”।
परंतु ये Lee Teng-hui थे कौन? इनकी मृत्यु से चीन इतना खुश क्यों है? दरअसल, Lee Teng-hui ताइवान के एक अग्रणी नेता थे, जिन्होंने 90 के दशक में ताईवान को लोकतन्त्र का उपहार दिया था। 1996 में जब वे देश के राष्ट्राध्यक्ष बने, तो उन्होने ताइवान की राष्ट्रवादी पार्टी और चीन के विरुद्ध जाते हुए एक स्वतंत्र ताइवान की बात की। उनके अनुसार ताइवान का अपना अस्तित्व है, जिसे चीन, दुनिया की कोई भी शक्ति नहीं कुचल सकती।
चूंकि Lee Teng-hui ने ताइवान में लोकतन्त्र को सशक्त किया, इसीलिए चीन की दृष्टि में वे एक राष्ट्रद्रोही थे। ली ऐसे समय में ताइवान के राष्ट्रपति बने थे, जब बीजिंग ताइवान पर कब्जा करने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने को तैयार था, और चीनी सेना ने ताइवान की घेराबंदी शुरू कर दी। ऐसे में ली के नेतृत्व में न केवल ताइवान ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया, अपितु चीन को अपने कदम पीछे खींचने पर विवश भी किया था।
परंतु इसी बीच ली टेंग हुई मृत्यु को एक ऐसे देश ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है, जिससे बहुत कम लोगों को आशा थी, और ये कोई और नहीं, अपितु अपना भारत है। Lee Teng-hui की असामयिक मृत्यु पर अपना दुख जताते हुए भारत ने अपना दुख जताते हुए उन्हें स्पष्ट रूप से ‘मिस्टर डेमोक्रेसी‘ कहकर संबोधित किया। ताइवान में भारत का प्रतिनिधित्व करती इंडिया ताइपेई असोसिएशन ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है, “ताइवान के ‘मिस्टर डेमोक्रेसी’, श्री ली टेंग हुई की असामयिक मृत्यु के शोक में ताईवान के साथ इंडिया ताइपेई असोसिएशन पूरी तरह खड़ा है। उन्हीं के नेतृत्व में ताइवान में लोकतन्त्र सशक्त हुआ है। ईश्वर उनकी आत्मा को सद्गति दे”।
आज जब चीन भारत के साथ पूर्वी लद्दाख में युद्ध जैसी स्थिति में जाने पर उतारू है, तो ऐसे में भारत की ओर से ये बयान काफी मायने रखता है। ये बयान इस बात को भी सिद्ध करता है कि अब भारत ने चीन की वन चाइना पॉलिसी को कूड़ेदान में फेंक दिया है, और वे ताइवान के पक्ष में और अधिक सक्रियता दिखाएगा।
Lee Teng-hui के आदर्शों पर चलते हुए आज ताईवान की वर्तमान राष्ट्राध्यक्ष त्साई इंगवेन ने ताईवान के लिए एक अलग पहचान बनाई है। आज यदि चीन के विरुद्ध वुहान वायरस फैलाने के लिए वैश्विक अभियान छिड़ा हुआ है, तो इसके पीछे काफी हद तक ताईवान के वर्तमान प्रशासन का भी हाथ है। अब ताईवान किसी भी स्थिति में चीन का पिछलग्गू नहीं बनना चाहता, जिसे वर्तमान प्रशासन ने कई बार सिद्ध भी किया है।