चीन के सलामी slicing नीति का नया शिकार बना है तजीकिस्तान। हाल ही की रिपोर्ट्स के अनुसार चीन ने तजाकिस्तान के पामीर क्षेत्र पर दावा किया है, जो इस देश का लगभग 45 प्रतिशत क्षेत्र कवर करता है। ऐसा करके एक बार फिर बीजिंग ने अपनी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय दिया है। तजाकिस्तान केन्द्रीय एशिया में स्थित है, जो प्रारम्भ से ही चीन के प्रभाव में रहा है। लेकिन जिस तरह से चीन ने तजाकिस्तान के एक तिहाई से अधिक भूभाग पर दावा ठोंका है, उससे अब केन्द्रीय एशिया भी चीन के विरुद्ध मोर्चा खोलने को विवश हो सकता है।
अभी हाल ही में कई चीनी मीडिया पोर्टल्स ने चीनी इतिहासकर चो याओ लू द्वारा लिखित एक लेख को प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक है “Tajikistan (तजाकिस्तान) को अब चीन को उसकी खोई भूमि वापिस लौटानी चाहिए”। इस लेख में दावा किया गया है कि पूरा पामीर क्षेत्र पहले चीन का हिस्सा हुआ करता था, परंतु यूके और रूस के दबाव में उसे 19वीं सदी में इस क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ना पड़ा।
याओ लू ने अपने लेख में ये भी दावा कि 2010 में चीन ने पामीर के एक भूमिवर्ग को वापिस भी लिया था। यहां उसका इशारा 2011 के उस समझौते को लेकर था, जिसमें तजाकिस्तान को कर्जे के बोझ से मुक्ति पाने के लिए अपने विवादित भूमि का करीब 1158 स्क्वेयर किलोमीटर चीन को सौंपना पड़ा था। अब चीन इसी नीति का इस्तेमाल कर तजाकिस्तान का लगभग आधे से अधिक भूमि को हथियाना चाहता है।
भले ही चीन ने आधिकारिक तौर पर पूरे पामीर क्षेत्र पर दावा नहीं किया है, पर दूसरों की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की चीनी प्रशासन की प्रक्रिया ऐसे ही शुरू होती है। कोई दो टके का सीसीपी छाप इतिहासकार चीन के कथित भूमि वर्ग के बारे में सफ़ेद झूठ लिखता है, जिसे चीनी राजनयिक बढ़चढ़कर प्रकाशित करते हैं और फिर उसी के दम पर अपने पड़ोसियों को सताता है।
परंतु तजाकिस्तान हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वालों में से नहीं, और उन्होने बीजिंग को अपनी साम्राज्यवादी नीतियों से दूर रहने की चेतावनी दी है। आम तौर पर चीन समर्थक रहने वाली तजाकिस्तान को भी अब चीन के विरुद्ध आक्रामक नीति अपनानी पड़ रही है।
चूंकि USA aur EU केन्द्रीय एशिया में विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाते, इसलिए केन्द्रीय एशिया को न चाहते हुए भी चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। स्वयं तजाकिस्तान भी चीन के कर्जे के बोझ तले दबा रहा है, और इस देश पर चीन का करीब 1.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्जा बकाया है। लेकिन बीजिंग की औपनिवेशिक मानसिकता के कारण अब तजाकिस्तान को भी चीन के विरुद्ध मोर्चा खोलने के लिए विवश होना पड़ा है।
यहाँ केवल तजाकिस्तान नहीं है जो चीन के इस कदम से बौखलाया है। चीन के दावों से पहले ही कुपित हो चुका रूस भी अब इस नीति के विरुद्ध और अधिक आक्रामक हो चुका है। मॉस्को के लिए आज भी मध्य एशिया उसका अपना गढ़ माना जाता है, क्योंकि यहाँ के अधिकतम देश कभी सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे। इसीलिए रूस को चीन के बढ़ते प्रभाव से सबसे अधिक खतरा प्रतीत होता है। इसीलिए रूस ने चीन को खरी खोटी सुनाते हुए चेतावनी दी है कि यदि चीनी प्रशासन की गुंडई नहीं थमी, तो इसका परिणाम आगे चलके चीन के लिए बहुत ही हानिकारक हो सकता है।
अब मध्य एशिया के देशों को समझना होगा कि चीन के कर्जे के मायाजाल में फंसकर उनका सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही हो सकता है, और कुछ नहीं। जिस तरह से चीन तजाकिस्तान पर अपना दावा ठोंक रहा है, उससे साफ पता चलता है कि चीनी प्रशासन की वास्तविक मंशाएं कहाँ तक जाती हैं। यदि चीन अपने नीतियों में सफल रहा है, तो उसे अफ़गानिस्तान में घुसने के लिए एक आसान रास्ता मिल जाएगा, जो अमेरिका जैसे देशों के लिए भी बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकता है। अब वैश्विक ताकतों को तनिक भी देरी नहीं करते हुए चीन के विरुद्ध मोर्चा खोल देना चाहिए, ताकि एक और साम्राज्यवादी ताकत संसार को अपनी बर्बरता से कलंकित न कर सके।