लेबनान की राजधानी बेरुत में हुए भीषण बम धमाके ने मेडिटरेनियन क्षेत्र की जियो पॉलिटिक्स को बदल कर रख दिया है। धमाके से पहले लेबनान आर्थिक संकट, सामाजिक असंतोष, कोरोना महामारी से जूझ रहा था। तब अमेरिका सहित कई देशों ने इस छोटे से महत्वपूर्ण रणनीतिक देश को मदद करने से मना कर दिया था जिसके बाद यह देश भी चीन के पाले में जा रहा था और उससे आर्थिक मदद ले रहा था। परंतु 4 अगस्त के विस्फोट के बाद अब फिर से फ्रांस लेबनान में उतर गया है और इसे वापस अपने मैंडेट या संरक्षण में लेता दिखाई दे रहा है।
दरअसल, लेबनान की अर्थव्यवस्था की हालत वेनेजुएला और जिम्बाब्वे की तरह खराब हो चुकी है। 4 अगस्त के विस्फोट से महीनों पहले ही लेबनानी पाउंड ने डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य का लगभग 80 प्रतिशत गिरा चुका था जिसकी वजह से कीमतें अनियंत्रित रूप से बढ़ गई हैं, और मध्यम वर्ग गरीबी में डूब गया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और अंतर्राष्ट्रीय दाताओं ने भी 11 बिलियन डॉलर देने से इनकार कर दिया है, जिससे आर्थिक सुधारों और भ्रष्टाचार विरोधी उपाय लंबित थे।
यही नहीं लेबनान पर 92 अरब डॉलर का कर्ज है जो कि उसकी जीडीपी के 170 फीसदी के आसपास है। देश की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीती है और करीब 35 फीसदी लोग बेरोजगार हैं। किसी भी तरह से अपने देश को न बचा पाने के बाद ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह और उसके सहयोगियों द्वारा समर्थित प्रधानमंत्री हसन दीब की सरकार चीन से मदद लेने लगी थी। हिज़्बुल्लाह ने स्पष्ट तौर पर IMF से मदद लेने से मना कर चीन से मदद लेने की बात कही थी।
चीन ऐसे मौके की ही तलाश में रहता है। लेबनान की स्थिति को देखते हुए और उसके रणनीतिक महत्व को समझते हुए चीन तुरंत इस देश की मदद करने के लिए राज़ी हो गया और अपनी देश की कंपनियों के माध्यम से लेबनान के दशकों पुराने विद्युत संकट को समाप्त करने में मदद करने की पेशकश की है। यही नहीं बीजिंग ने पावर स्टेशनों के निर्माण और लेबनान के तट के साथ एक रेलवे लाइन की पेशकश की है। इस तरह के प्रोजेक्ट्स के माध्यम से किसी भी देश को कर्ज में डुबाने की चीन की यह आदत पुरानी है। चीन की नजर लेबनान के उत्तरी बंदरगाह त्रिपोली पर भी है जिसे वह चीन के ट्रिलियन-डॉलर “सिल्क रोड” परियोजना से जोड़ना चाहता है।
परंतु अब ऐसा लगता है कि चीन का सपना सपना ही रह जाएगा क्योंकि लेबनान में अब एक बार फिर से फ्रांस उतर चुका है और ऐसा लग रहा है कि वह पुनः इस देश को अपने संरक्षण में लेना चाहता है। लेबनान की राजधानी बेरुत में हुए भीषण बम धमाके के बाद विभिन्न देशों ने मदद को हाथ आगे बढ़ाए हैं, इनमें यूएस, यूके और फ्रांस समेत विभिन्न देश शामिल हैं। लेकिन फ्रांस कुछ अधिक सक्रिय भूमिका में दिख रहा है और ऐसा लगता है कि वह इस देश को फिर से अपने संरक्षण में लेना चाहता है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने मंगलवार को कहा कि फ्रांस एक नागरिक सुरक्षा टुकड़ी और कई टन चिकित्सा उपकरण लेबनान में तैनात करेगा।
विस्फोट के बाद से ही लेबनान में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हो रहे हैं और दोबारा से फ्रेंच मैनडेट लागू करने की मांग हो रही है। रविवार को, 60,000 से अधिक लोगों ने “फ्रांसीसी संरक्षण” की वापसी की मांग करते हुए एक ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर कर अपना समर्थन दिया। यही नहीं फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों लेबनान का दौरा करने भी पहुंच गए और कहा कि आने वाले दिनों में सहायता के लिए फ्रांस अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन राहत प्रयासों के लिए सम्मेलन आयोजित करेगा। उन्होंने वादा करते हुए कहा, “लेबनान अकेला नहीं है।”
फ्रांस के नेता ने परेशान भीड़ को दिलासा दिया, और शहर के पुनर्निर्माण का वादा किया। उन्होंने कहा कि इस विस्फोट से फ्रांस के दिल पर चोट लगी है। उन्होंने कहा कि “फ्रांस लेबनान को कभी जाने नहीं देगा, फ्रांसीसी लोगों का दिल अभी भी बेरुत के लिए धड़कता है।” फ्रांस के राष्ट्रपति का इस प्रकार से बयान कई चीजों को स्पष्ट कर देता है जैसे अब फ्रांस लेबनान को चीन की गोद में भी नहीं जाने देगा।
बता दें कि फ्रांस और लेबनान का एक बहुत करीबी इतिहास है, जो औपनिवेशिक काल के समय से है। 16 वीं शताब्दी में फ्रांसीसी राजशाही ने तुर्क शासकों के साथ बातचीत कर एक समझौता किया था जिससे ईसाइयों की रक्षा की जा सके और क्षेत्र में प्रभाव डाला जा सके। उसके बाद सितंबर 1920 में, ओटोमन साम्राज्य के टूटने के बाद, League of Nations ने फ्रांस को लेबनान और सीरिया का संरक्षण दिया था। उसके बाद फ्रांस ने वहाँ अपने देश के आधार पर एक संविधान लागू किया। यही नहीं उस दौरान कई फ्रेंच स्कूल भी खोले गए थे जिसके बाद से वहाँ फ्रांस के लिए काफी समर्थन है।
विस्फोट के बाद इमैनुएल मैक्रों के इस तरह से लेबनान की यात्रा को लेबनान के लोग कर्ज से बर्बाद हुए इस देश के लिए वित्तीय सहायता के रूप में देख रहे हैं। मैक्रों ने लेबनान के विभाजित राजनीतिक वर्ग को भी एक साथ ला दिया जो बेरूत में फ्रांसीसी दूतावास मुख्यालय में एक साथ दिखाई दिए, और मैक्रों से मिलने के बाद वापस गए। हालांकि, मैक्रों ने स्वयं फ्रांसीसी संरक्षण को खारिज करते हैं लेकिन अपनी इस यात्रा से उन्होंने बता दिया है कि वो लेबनान में सुधारों पर जोर दे रहे हैं जिससे इस देश को चीन जैसे गिद्ध देशों की नजर न लगे। फ्रांस के इस तरह से लेबनान के भीतर सक्रिय होने से चीन को बड़ा झटका माना जा सकता है क्योंकि चीन लेबनान को भी कर्ज में डुबोकर दूसरा पाकिस्तान बनाने के सपने देख रहा था।