‘चीन को मिलकर सबक सिखाएंगे’, चीन की हेकड़ी निकालने के लिए भारत और जापान साथ आ गए हैं

चीन भारत को घेरना चाहता था अब खुद चीन 2 फ्रंट पर घिर गया गया है

चीन वैसे तो हमेशा भारत को two फ्रंट वॉर की धमकी देता रहता है लेकिन वो ये भूल जाता है कि सिर्फ भारत ही नहीं है जिसका उसके पड़ोसियों से विवाद है। वस्तुतः चीन का भी अपने पड़ोसी मुल्कों से बेहद ही खराब सम्बन्ध रहे हैं, इन्हीं में से एक पड़ोसी जापान भी है जो ना सिर्फ चीन के लिए सिरदर्द बन रहा है, बल्कि चीन के खिलाफ खुलकर भारत का साथ भी दे रहा है। भारत और जापान एशिया की दो ऐसी महाशक्तियां हैं जो चीन के एशिया में एकछत्र राज के बीच की सबसे बड़ी बाधा है।  

जहाँ भारत और चीन के बीच अक्साई चीन, अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख सहित एक लंबा सीमा विवाद है, वहीं चीन और जापान के बीच भी सेनकाकू आइलैंड को लेकर विवाद है। इस तरह हिन्द प्रशांत क्षेत्र के बहुचर्चित गठबंधन, QUAD में भारत और जापान ही दो ऐसे देश हैं जिनका चीन के साथ प्रत्यक्ष सीमा विवाद है।

QUAD के अन्य दो सदस्य देश, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, के हित केवल स्वतन्त्र नाविक आवागमन से ही जुड़े हैं, जबकि भारत और जापान के सामरिक हित एवं क्षेत्रीय संप्रभुता प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी है और इन दोनों देश का दुश्मन एक ही है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी यह जानते हैं , यही कारण है कि हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने यह मत व्यक्त किया था कि QUAD के सदस्य देशों के बीच सहयोग और अधिक बढ़ना चाहिए

भारत और अमेरिका के बीच पहले ही एक मिलिट्री लॉजिस्टिक समझौता हो चुका है जिसका नाम  ‘The Logistics Exchange Memorandum of Agreement (LEMOA)’ है। यह समझौता भारत की विदेश निति में आया व्यापक बदलाव था जहाँ हम गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत से हटते हुए सीधे तौर पर अमेरिका के साथ सामरिक समझौते का हिस्सा बने थे। जबकि ऐसा ही एक समझौता हाल ही में हमने ऑस्ट्रेलिया के साथ भी किया है। ऐसे में जापान ही, QUAD का ऐसा एकमात्र सदस्य देश बचता है जिसके साथ भारत के कोई प्रत्यक्ष सामरिक समझौते नहीं था परन्तु अब जापान भी इस सूची में शामिल होने वाला है।

बता दें कि भारत के साथ गलवान में चीन की जो खुनी झड़प हुई थी, उसके बाद यह साफ़ जाहिर हो चुका है कि भारत और चीन के रिश्ते अब दशकों तक नहीं सुधरने वाले। हाल ही में खबर आयी है कि चीन ने लिपुलेख के निकट अपने फ़ौज की संख्या बढ़ा दी है। चीन ने यह कदम तब उठाया है जब दोनों देशों में शीर्ष सैन्य कमांडर स्तर की बैठक होने जा रही थी जिसका उद्देश्य सीमा पर तनाव कम करना था। भारत और चीन वस्तुतः एक म्यान में दो तलवार हैं जिनका साथ रहना बहुत मुश्किल है। भारत के आर्थिक हित भी चीन के साथ टकराते हैं क्योंकि चीन, भारत को अपने विकल्प के रूप में उभरने नहीं देना चाहता। वहीं जापान एक ऐसा देश है जिसने लम्बे समय तक कोरिया प्रायद्वित, चीन सहित सम्पूर्ण पूर्वी एशिया में अपना वर्चस्व बनाए रखा थाऐसे में जापान भी कभी चीन के दबाव को स्वीकार नहीं करेगा, वो भी तब जब चीन उसकी क्षेत्रीय अखण्डता का सम्मान तक नहीं करता।

यही कारण था की जब लद्दाख में स्टैंड ऑफ चल रहा था तब जापान ने खुलकर भारत का पक्ष लिया था।  जापान के राजदूत सातोशी सुज़ुकी ने बयान जारी करते हुए कहा था ‘बॉर्डर पर status que में बदलाव करने का कोई भी एक पक्षीय प्रयास स्वीकार नहीं किया जाएगा’। इस बयान के साथ ही उन्होंने अपने देश की ओर से भारत को समर्थन दिया। जापान का यह बयान तब सामने आया था जब भारत चीन के बीच कई दौर की वार्ता स्थगित हो गई थी और सीमा पर जंग जैसे हालात बने हुए थे। 

जापान ने चीन के खिलाफ हमेशा भारत का साथ दिया है। डोकलाम में चले तनाव के दौरान भी जापान ने भारत का समर्थन किया था।अब जापान भारत ऑस्ट्रेलिया UK और फ़्रांस के साथ डिफेन्स इंटेलिजेन्स को साझा करने के लिए नियमों में की तैयारी कर रहा है।  अतः इस बात की पूरी संभावना है की भारत और जापान भी जल्द ही किसी सामरिक समझौते पर हस्ताक्षर करें। यदि ऐसा हुआ तो यह भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।  चीन अक्सर भारत को दो फ्रंट पर लड़ाई की धमकी देता रहता है और भारत के रक्षा विशेषज्ञ भी इसकी संभावना व्यक्त करते रहते हैं। ऐसे में भारत और जापान का समझौता चीन को भी TWO FRONT WAR जैसी परिस्थिति में उलझा देगा।

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