“नेपाल में ओली नहीं अली की सरकार है,” PM के IT सलाहकार असगर अली ने नेपाल सरकार को बनाया चीनी कठपुतली

ओली तो बस औपचारिकता हैं

नेपाल

नेपाल में ओली का नहीं अली शासन चलता है। एक नए खुलासे में यह बात सामने आई है कि, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के आईटी सलाहकार असगर अली कई गैरकानूनी गतिविधियों के माध्यम से सरकार को कठपुतली की तरह नचा रहे थे। नेपाल की एक वेबसाइट के अनुसार असगर अली अवैध तरीके से सूचनाएं एकत्र करने से लेकर न्यूज पोर्टलों को हैक करने तथा चीन को फायदा पहुंचाने के लिए काम कर रहे थे।

Khabarhub.com ने सिक्यॉरिटी एजेंसियों के हवाले से यह खुलासा किया है कि, अली PMO के सर्वर और आईपी का इस्तेमाल करते हुए सरकार के अधिकतर IT कॉन्ट्रैक्ट्स पर कब्जा करते हैं। इन कॉन्ट्रैक्ट्स की कीमत 20 अरब डॉलर से भी अधिक बताई जा रही है। असगर अली की अधिकांश कंपनियां डिजिटल डोमेन पर कब्जा करने के लिए विदेशी ताकतों, मुख्यतः चीन के साथ अवैध लेनदेन में शामिल हैं।

इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, असगर अली का चीन की विवादास्पद कंपनी हुवावे के साथ भी संबंध हैं। पीएम ओली के आईटी सलाहकार नियुक्त किए जाने के तुरंत बाद असगर अली का व्यवसाय नई ऊंचाई पर पहुंच गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, अली चीन के साथ मिल कर नेपाल में हुवावे को 5 जी सेवा का कॉन्ट्रैक्ट् दिलवाने की योजना पर काम कर रहे थे जिससे नेपाल की संचार प्रणाली को नियंत्रित किया जा सके। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस तरह की गतिविधियों में चीन की गुप्त भागीदारी, नेपाल की राष्ट्रीय सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा है।

यही नहीं, साल 2016 में जब असगर अली ऑनलाइन सरकारी पेमेंट गेटवे e-SEWA के CEO थे, तब उन्हें सरकारी पोर्टल्स से सूचना चोरी करते हुए भी पकड़ा गया था। e-SEWA को बिटकॉइन के साथ लेनदेन और प्रमोशन में भी शामिल पाया गया जिसे नेपाल राष्ट्र बैंक अवैध लेनदेन मानती है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का करीबी होने के कारण अली बाख गए थे।

मिडिया रिपोर्ट्स में यह कहा गया है कि, जिस तरह से अली e-SEWA के मामले में बच कर निकाल गए, उससे यह स्पष्ट होता है कि उन्हें जान बुझ कर बचाया जा रहा है। नेपाली सेना के सूत्रों का कहना है कि, नेपाल में अली की गतिविधियों के पीछे चीनी सरकार की सीधी भागीदारी है।

असगर अली ने डेटा और दूसरी सूचनाओं के लिए नेपाल सरकार के कई विभागों पर दबाव डाला जिसमें पासपोर्ट डिपार्मेंट, लेबर डिपार्टमेंट, ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट, नेशनल आइडेंटिटी कार्ड मैनेजमेंट सेंटर और इमिग्रेशन डिपार्टमेंट शामिल है। सिर्फ दबाव ही नहीं बल्कि कई सरकारी संस्थाओं के प्रमुखों को असगर अली ने धमका कर अपना काम निकाला। इससे भी आगे बढ़कर, मतदाताओं की जानकारी हासिल करने के लिए चुनाव आयोग पर भी दबाव डाला गया। रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल विजिलेंस सेंटर ने पीएम कार्यालय में इसकी शिकायत की है, लेकिन अली के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया। हैरानी की बात है कि, नेपाल के 27 में से 22 कॉमर्शियल बैंक अली की कंपनी का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल कर रहे हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, आर्थिक लाभ के लिए अली जैसे लोगों द्वारा डाटा जमा करना जनता की प्राइवेसी के साथ समझौता है। ऐसे लोगों का चीन के साथ संबंध, सीधे तौर पर डाटा के गलत इस्तेमाल की संभावना को 100 गुना बढ़ा देता है।

इससे यह स्पष्ट पता चल रहा है कि, नेपाल की सरकार को ओली नहीं बल्कि अली नियंत्रित कर रहा और ओली बस नाम मात्र के लिए पीएम हैं। देखा जाए तो, असगर अली के माध्यम से चीन ने नेपाल की सरकार पर अंदर से कब्जा कर रखा है। पिछले कुछ समय से जिस तरह नेपाल ने भारत विरोधी एक्शन लेना शुरू किया था तभी यह अंदाजा लग गया था, लेकिन चीनी राजदूत का नेपाली राजनीति में हस्तक्षेप और अब असगर अली के खुलासे के बाद स्थिति और स्पष्ट हो चुकी है। नेपाल अब पूरी तरह से चीन के कब्जे में जा चुका है।

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