महीनों तक अमेरिका के धैर्य की परीक्षा लेने के बाद अब चीन शान्ति की भाषा बोलने लगा है। इसका एक कारण तो यह है कि चीन जानता है कि उसकी सैन्य क्षमता अमेरिका के आगे कम है। वहीं दूसरा महत्वपूर्ण कारण है कि चीन नहीं चाहता कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चीन की आक्रामक नीतियों का फायदा चुनाव में मिले। जब से कोरोना का फैलाव हुआ है, तब से आम अमेरिकी में चीन के प्रति दुर्भावना और अविश्वास बढ़ा है और ट्रम्प की चीन के प्रति आक्रामक नीति उनको चुनावी फायदा दिला सकती है।
हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार चीन ने हालात न बिगड़े इसके लिए अपने राजदूतों को आदेश दिया है। चीन की नीति में यह बदलाव अमेरिकी चुनाव के मद्देनजर आया है, क्योंकि चीन को लगता है कि ट्रंप चुनावी फायदे के लिए उस पर सख्त हैं। ऐसे में चीन अपनी ओर से ट्रम्प को कोई बहाना नहीं देना चाहता।
चीन के विदेश मंत्री ने चुनावों का सीधे तौर पर नाम लिए बिना बयान दिया है कि “अगले कुछ महीने महत्वपूर्ण होंगे, हमें किसी भी अतिवादी ताकत के बहाव में आये बिना अपना ध्यान केंद्रित रखना चाहिए, द्विपक्षीय रिश्ते को सही दिशा में बनाए रखना चाहिए और इसे नियंत्रण से बाहर होने या पटरी से उतरने से रोकना चाहिए।”
अमेरिका से रिश्ते न बिगाड़ने की बात को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि “इसका मतलब यह है कि मुद्दे चाहे कितने भी कठिन और जटिल क्यों न हों, उन्हें टेबल पर रखा जाना चाहिए … मैं खुद किसी भी समय अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ बातचीत के लिए तैयार हूं।“ साफ जाहिर है कि चीन ट्रम्प को अतिवादी के रूप में दिखाना चाहता है। वह ट्रम्प के बारे में प्रचार कर रहा है कि वे चीन की नीतियों के बजाए अपने चुनावी फायदे के लिए आक्रामक हुए हैं।
वास्तविकता यह है कि चीन ट्रम्प सरकार के फैसलों और उसकी दूरगामी रणनीति से डरकर यह कर रहा है। ट्रम्प ने पहले ही चीनी apps टिकटॉक और वीचैट को बैन कर दिया है, साथ ही क्लीन नेटवर्क के अभियान से नेटवर्किंग के क्षेत्र को चीन से पूर्णतः मुक्त करवाने का भी अभियान उन्होंने चला रखा है। इतना ही नहीं चीन जानता है की यदि ट्रम्प सरकार में आते हैं तो भारत और अमेरिका के रिश्ते दोनों देशों के राष्ट्रप्रमुखों की आपसी समझ के कारण और भी मजबूत होंगे।
ट्रम्प के विरोधी बाइडन का भारत विरोधी रवैया देखकर चीन को इस गठजोड़ से बचने का एक मौका देता है। जबकि वर्तमान राष्ट्रपति ट्रम्प के शासन में भारत और अमेरिका अधिक नजदीक आये हैं। चीन जानता है कि ट्रम्प का जीतना उसकी रणनीतिक हार है। यही कारण है कि वह खुद को शांतिदूत और राष्ट्रपति ट्रम्प को शांतिविरोधी दिखा रहा है।
चीन का नर्म रुख ट्रम्प को दुबारा व्हाइट हाउस पहुंचने से रोकने की नीति का हिस्सा है। लेकिन चीन पहले ही अमेरिका से अपने रिश्ते इतने खराब कर चुका है और ट्रम्प ने खुद को अमेरिका के रक्षक के रूप में स्थापित करने के प्रयास में सफलता पाई है। ऐसे में इस बात की उम्मीद न के बराबर है कि चीन को इस चालबाजी का फायदा होगा।