चीनी विदेश मंत्री के लिए यूरोप का दौरा एकदम फुस्स साबित हो रहा है। Wang Yi चाहते हैं कि यूरोप जल्द से जल्द चीन के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट कर ले, लेकिन यूरोप ने यहां एकदम सही दांव चला है। एंजेला मर्कल के नेतृत्व वाला EU यह अच्छे से जानता है कि चीन इस वक्त कूटनीतिक मोर्चे पर अलग-थलग पड़ा हुआ है, और इसलिए चीन जल्द से जल्द कोई ट्रेड डील करने के लिए आतुर है। ऐसे में EU अब प्रभावी तौर पर चीन को बैकफुट पर धकेलकर अपनी शर्तों के मुताबिक ट्रेड डील करना चाहता है।
यहां चीन की हवा इसलिए भी टाइट है क्योंकि चीन-अमेरिका की ट्रेड डील अधर में लटकी हुई है, और अगर चीन ने यूरोपीय संघ को कोई रियायत देकर EU-China FTA पर साइन कर लिए, तो चीन को ऐसी ही रियायत अमेरिका को भी देनी पड़ेगी। ऐसे में चीन के विदेश मंत्री यूरोप का दौरा कर जल्द से जल्द किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहते हैं। Wang Yi खुद इटली, निदरलैंड, नॉर्वे, फ्रांस और जर्मनी के दौरे पर हैं, तो वहीं CCP के विदेशी मामलों के सचिव Yang Jiechi भी ग्रीस और स्पेन और शायद पुर्तगाल के दौरे पर जाने वाले हैं। स्पष्ट है कि बीजिंग जल्द से जल्द ट्रेड डील करना चाहता है ताकि उसे कूटनीतिक और आर्थिक तौर पर कोई राहत मिले।
चीन पिछले काफी समय से EU के साथ मुक्त व्यापार समझौते करना चाह रहा है। EU का दुनियाभर के 70 देशों के साथ पहले से ही FTA है। इसी साल यूरोप ने वियतनाम के साथ भी FTA पर साइन किया था। इसके अलावा यूरोपीय संघ भारत के साथ FTA करने को लेकर इच्छुक है। हालांकि, जैसे ही चीन EU के साथ ट्रेड डील करने को लेकर वार्ता करता है, वैसे ही EU की उत्सुकता ठंडी पड़ जाती है। EU को चीन से पारदर्शिता और अधिक निवेश चाहिए, जिसको लेकर चीन आनाकानी करता रहा है, यही कारण है कि अभी तक ईयू और चीन के बीच यह डील नहीं हो पाई है।
EU की आधिकारिक website के मुताबिक “EU चीन के साथ संबंध बढ़ाने का इच्छुक है। हालांकि, EU चाहता है कि वह WTO का सदस्य देश होने के नाते पारदर्शिता अपनाए और हमारे intellectual property rights की सुरक्षा हेतु प्रतिबद्धता दिखाये”। यूरोपीय संघ यह भी चाहता है कि ट्रेड डील करने से पहले चीन उसके साथ निवेश संधि पर हस्ताक्षर करे और यूरोपीय संघ में निवेश को बढ़ाने का वादा करे। ऐसे में चीन के पास EU को लेकर ज़्यादा विकल्प मौजूद नहीं है। चीन को किसी भी हालत में EU के साथ मुक्त व्यापार समझौता करना ही है, और ऐसे में अगर उसे EU को बड़ी रियायत देनी भी पड़े, तो भी वह उससे पीछे नहीं हटेगा। ऐसे समय में जब पहले ही अमेरिका- चीन के बीच होने वाली ट्रेड डील पर तलवार लटकती दिखाई दे रही है, तो चीन के लिए EU के साथ ट्रेड डील करना उसकी मजबूरी हो गया है।
चीन के पास वक्त भी बेहद कम बचा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जर्मन चांसलर ऐंजला मर्कल अगले साल अपने पद से हटने वाली हैं और उन्हीं के नेतृत्व में EU चीन के साथ table पर बैठने को राज़ी हुआ है। मर्कल के बिना EU का एकजुट होकर चीन के साथ वार्ता करना भी बेहद मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि अधिकतर यूरोपीय संघ के सदस्य देश चीन के साथ डील करने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में यूरोप में चीन के लिए आने वाले दिन पीड़ादायक साबित हो सकते हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 14 सितंबर को EU के नेताओं के साथ एक वर्चुअल समिट का आयोजन भी करना चाहते हैं। अगर इस समिट में कुछ खास नतीजा नहीं निकलता है, तो चीन के लिए मुश्किलें काफी बढ़ सकती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तो चीन के पास समय कम है, और दूसरा यह है कि खुद यूरोपीय संघ पर चीन के साथ ट्रेड डील को लेकर अमेरिका का दबाव है जो नहीं चाहता कि भविष्य में EU चीन के साथ किसी भी तरह का कोई ट्रेड डील करे।
दुनियाभर के देश आज चीन के साथ अपने आर्थिक रिश्तों को खत्म कर रहे हैं। इसमें अमेरिका, जापान, UK, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं। ऐसे में चीन अपने लिए थोड़ी oxygen प्राप्त करने के लिए अब भागा-भागा EU के पास गया है। चीन को लगा था कि EU में एंजेला मर्कल उसकी सबसे अच्छी दोस्त है और वह चीन के साथ यूरोपीय संघ के FTA को बल देने का काम करेंगी, लेकिन यहाँ चीन की उम्मीदें दम तोड़ती दिखाई दे रही हैं। यूरोप यहाँ चीन की मजबूरी का फायदा उठाकर उसे पूरी तरह निचोड़ रहा है।