पीएम मोदी ने राम जन्मभूमि हिंदुओं को वापस दिलाई, हागिया सोफिया पर ईसाई जगत कब जागेगा?

हागिया सोफिया के लिए पश्चिम को भी एक मोदी की ज़रूरत है!

राम

pc: इंडिया स्पीक्स डेली

वैश्विक स्तर पर पिछले कुछ महीनों में दो बड़ी धार्मिक घटनाएँ घटी हैं। एक तुर्की में और एक भारत में। एक तरफ, जहां तुर्की में एक चर्च को मस्जिद में बदल कर अज़ान शुरू की गई तो वहीं दूसरी तरफ, भारत में हिंदुओं के आराध्य भगवान, श्री राम की जन्मभूमि पर सालों चली लड़ाई के बाद भव्य मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है। यह दोनों घटनाएँ अपने आप में महत्वपूर्ण हैं और यह तय है कि भविष्य में अहम भूमिका भी निभाएँगी।

पर यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि, हागिया सोफिया में ईसाई धर्म ने अपना चर्च खो दिया लेकिन राम जन्म भूमि मामले में हिंदुओं को उनकी अपनी जमीन वापस मिली है। एक तरफ, जहां हिंदुओं ने अपने हक के लिए 500 वर्षों तक लंबी लड़ाई लड़ी तो वहीं दूसरी तरफ हागिया सोफिया के जबर्दस्ती मस्जिद में परिवर्तन के बाद भी इसाई देशों द्वारा तुर्की के खिलाफ कोई कड़ा एक्शन नहीं लिया जा रहा।

यह उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है कि, राम मंदिर के पुनर्निर्माण और हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद बनाने में कोई समानता नहीं है। एक तरफ राम मंदिर के पुनर्निर्माण से भारत ने अपने उस गौरव को फिर से जीवित किया है जिसे मुस्लिम और मुगल आक्रान्ताओं ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया। लेकिन, दूसरी तरफ हागिया सोफिया मस्जिद, कट्टरपंथी ओटोमन साम्राज्य की क्रूरता और बर्बरता के उत्सव का प्रतिनिधित्व करती है।

दरअसल, तुर्की के तानाशाह एर्दोगन के दबाव में हाल ही में वहाँ की कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि हागिया सोफिया को एक मस्जिद में बदल दिया जाए। बता दें कि, आधुनिक तुर्की के संस्थापक मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क के फैसले के अनुसार और UNESCO के निर्देशों के तहत हागिया सोफिया को एक म्यूज़ियम के तौर पर संरक्षित किया गया था। परंतु, इस फैसले को अब एर्दोगन की इस्लामिक चरमपंथी सोच वाली सरकार ने द्वारा पलट दिया गया है। एर्दोगन के इस फैसले ने एक बार फिर से उस्मानी या ओटोमान साम्राज्य की उस क्रूरता को पुनर्जीवित कर दिया जिसमें वो शहरों को तबाह कर उसे इस्लामिक रंग देते थे।

यही कारण है कि, हागिया सोफिया अब मुस्लिमों और ईसाईयों के बीच युद्ध क्षेत्र में परिवर्तित होता दिखाई दे रहा है। एर्दोगन ने अपने कदम से ईसाई समुदाय की भावनाओं का खुलेआम क़त्ल किया है। इसके बावजूद पश्चिमी देश जिन्हें अपने इसाई अनुयायियों के हक की आवाज़ बनना चाहिए, वो सुस्त पड़े हैं।

ग्रीस, रूस, अमेरिका, EU और कुछ देशों ने तो तुर्की की आलोचना की लेकिन यह आलोचना काफी नहीं है। इन देशों की प्रतिक्रिया देख कर ऐसा लगा, जैसे किसी ने भी अपने धर्म को बचाने की कोशिश ही नहीं की। यह सभी को पता है कि, हागिया सोफिया पहले चर्च था जिसे मस्जिद में बदला गया। पूरे विश्व में सबसे अधिक संख्या ईसाई देशों की ही है। अगर वो सभी देश एकजुटता दिखाते और मिल कर तुर्की का बहिष्कार करते तो शायद दबाव बनाने में सफल रहते। जिस तरह से आज कोरोना के मामले को लेकर चीन को सभी देशों ने अलग-थलग कर दिया है वैसे ही तुर्की का भी बहिष्कार किया जा सकता था।

कठोर प्रतिबंधों को लागू करने के साथ-साथ तुर्की को नाटो से बाहर निकालने के लिए भी कार्रवाई की जा सकती थी। लेकिन तब भी ईसाई जगत ने हगिया सोफिया के कदम के बाद भी चुप रहना ही पसंद किया।

अगर राम जन्मभूमि मामले को देखा जाए तो भारत के हिंदुओं ने सिर्फ बयान जारी नहीं किया था, बल्कि इसके लिए 500 वर्ष लंबी लड़ाई लड़ी । लेकिन पश्चिमी देशों ने ऐसा नहीं किया। राम जन्मभूमि की बात करें तो हिंदुओं ने अपने हक की लड़ाई कानूनी तौर पर देश के संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा का मान रखते हुए लड़ी और विजयी हुए।

जब वर्ष 2010 में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीनों पक्ष – श्रीराम जन्मभूमि न्यास, निर्मोही अखाड़ा और बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के बीच विवादित भूमि को बराबर हिस्सों में बांटा, तो विरोध स्वरूप हिंदुओं को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा। यहाँ भी चुनौतियां कम नहीं थीं, और राजीव धवन और कपिल सिब्बल जैसे वकील फैसले को टालने के लिए अपनी सभी चालें चल रहे थे। लेकिन उनके सामने मानो दीवार की तरह डटके खड़े थे श्री राम जन्मभूमि न्यास के अधिवक्ता के.परासरन, जिन्होंने तब तक श्री राम के अधिकार का तक साथ नहीं छोड़ा, जब तक उन्होंने मामले को उसके निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा दिया।

अंत में, 9 नवंबर 2019 के ऐतिहासिक दिन दिन, सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई के नेतृत्व में सर्वसम्मति से न्यायालय की पीठ ने श्री राम जन्मभूमि न्यास के पक्ष में निर्णय सौंपा और श्रीराम जन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण की नींव रखी।

भारत में यह जीत एक लंबी लड़ाई के बाद मिली है जिससे पश्चिमी देशों को भी सबक लेना चाहिए और तुरंत तुर्की के खिलाफ एक्शन लेते हुए उसे सबक सीखना चाहिए। आज के दौर में तुर्की फिर से ओटोमन साम्राज्य जीवित करना चाहता है और राष्ट्रपति एर्दोगन मुस्लिम जगत के खलीफा बनने का ख्वाब देख रहे हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने हागिया सोफिया को मस्जिद में परिवर्तित करते हुए कर दिया है। पश्चिमी देशों को तुरंत एक्शन लेते हुए तुर्की पर लगाम लगाना होगा नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब वह अन्य देशों पर भी अपनी कट्टरपंथी सोच थोपना शुरू कर देगा।

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