वुहान में पैदा हुए कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया परेशान हुई लेकिन फिर भी चीन पर वायरस के कारणों की जांच करवाने के लिए दबाव नहीं बनाया जा सका। जहाँ एक ओर दुनिया चीन पर दबाव बनाने में असफल है वहीं दूसरी ओर चीन लगातार वायरस के फैलाव और उसके पैदा होने के कारणों से जुड़े सुबूत मिटा रहा है। इसी क्रम में चीन ने वुहान में ऐसे लोगों के स्वतन्त्र आवागमन पर रोक लगा दी है जिन्होंने ‘व्हिसिल ब्लोअर’ की भूमिका निभाई, साथ ही वुहान प्रान्त के अधिकारियों की भी निगरानी चीन की सरकार द्वारा की जा रही है।
NTD की रिपोर्ट के मुताबिक वुहान पब्लिक सिक्योरिटी के अधिकारियों ने वुहान के नागरिकों को अपने पासपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है जिससे वे कहीं बाहर न जा सके। यह आदेश 1 अगस्त से लागू होगा। यही हाल चीन के बाकि प्रांतों में भी है, जहाँ चीनी नागरिकों के पासपोर्ट आवेदन, किसी न किसी बहाने से रोक दिए जा रहे हैं। कभी चीन के अधिकारी महामारी का बहाना बना रहे हैं,कभी दूसरे देशो में चीनी नागरिकों की सुरक्षा का बहाना बनाया जा रहा है। सामान्य चीनी नागरिकों के अलावा यह नियम चीनी सरकार के अधिकारियों और चीन की सरकारी कंपनी से जुड़े लोगों पर भी लागू होगा।
“It’ll be too late if you don’t leave China now.” #China tightens control over private #passports. A recent order has invalidated all privately-held passports of regime-related staff in #Wuhan. The move is suspected to lock potential "future #whistleblowers" inside China. pic.twitter.com/9NLl8wAplW
— China in Focus – NTD (@ChinaInFocusNTD) August 1, 2020
ऐसा ही एक कानून चीन ने 20 जून को भी पारित किया था, जिसमे चीन के अधिकारियों के बिना अधिकारिक अनुमति के चीन से बाहर जाना कानूनी रूप से प्रतिबंधित करने के साथ ही अपराधिक भी घोषित कर दिया गया है। यदि कोई अधिकारी बिना अनुमति चीन से बाहर चला जाता है तो उसे चीन में अपनी नौकरी से भी हाथ धोना होगा।
चीन में पासपोर्ट से सम्बंधित कड़े नियम कोई नए नहीं हैं। इससे पूर्व शिंजियांग प्रान्त के नागरिकों पर भी कड़े पासपोर्ट नियम लागू होते थे। शिंजियांग के अतिरिक्त तिब्बत के लोगों को भी पासपोर्ट सम्बंधित मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वास्तव में चीन ने अपनी कारगुजारियों को छुपाने में इस नीति का हमेशा प्रयोग किया है। लेकिन अब चीन की सरकार के अधिकारी भी इसकी चपेट में आ रहे हैं जो साफ़ दिखाता है की चीन में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ न सिर्फ नागरिकों में बल्कि सरकारी अधिकारियों में भी विरोध बढ़ रहा है और चीन की सरकार इससे घबराई भी है।
चीन नवम्बर महीने से ही कोरोना वायरस की खबरों को दबा रहा है। पहले उसने WHO की मदद से दुनिया को धोके में रखा और अब वो ये नहीं चाहता की उसकी छवि को और बट्टा लगे। चीन ने कोरोना को लेकर दुनिया को सबसे पहले जागरूक करने वाले व्हिसिल ब्लोअर Dr. Li Wenlaing और Dr. Ai Fen की आवाज़ को भी दबाने की कोशिश की थी।
चीन ने दुनिया को अपने यहाँ हुई मौत के आंकड़े भी झूठे ही बताए थे। चीन के अनुसार वुहान, जहाँ वायरस पैदा हुआ, वहां उससे मरने वालों की संख्या महज 4000 ही है. यह किसी भी प्रकार सम्भव ही नहीं है क्यूंकि चीन में नवम्बर में पहला केस मिलने के बाद भी कई दिनों तक चीन की सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था और वायरस को ऐसे ही फैलने दिया था।
चीन ने ताईवान से 2 लाख के करीब कोरोना वायरस से मृत लोगों के लिए बने विशेष बॉडी बैग मंगवाए थे, जबकि चीन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार चीन में सिर्फ 84 हजार से अधिक कोरोना केस ही थे और मौत का आंकड़ा 4634 ही है, तो इतनी बड़ी संख्या में बैग मंगवाने का क्या औचित्य है। इसी बीच वुहान में अचानक आयी बाढ़ भी कई शंकाएं पैदा करती है। ये सभी बातें साफ़ जाहिर करती हैं की चीन ने कोरोना से सम्बंधित तमाम बातों को न सिर्फ छुपाया बल्कि अब उसकी कोशिश है की उसके अपने लोग दुनिया के सामने उसकी सच्चाई न जाहिर कर दें।