कांग्रेस को पहली बार मिलेगा गैर-गांधी अध्यक्ष, मतलब कांग्रेसी नेताओं के सामने गांधी परिवार घुटने टेक चुका है

गांधी परिवार को कांग्रेस में पहली बार हार मिली है

सोनिया गांधी

कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। कभी सोनिया गांधी के इस्तीफे की खबर आती है, तो अभी अन्तरिम अध्यक्ष पद पर बने रहने की। यह तो कांग्रेस से आने वाली सामान्य खबर है लेकिन इसी बीच एक असामान्य खबर भी सामने आई। बीते कुछ वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ कि कांग्रेस का मुद्दा 10 जनपथ से निकल कर किसी अन्य नेता के घर पर भी जा पहुंचा।  CWC की मीटिंग के बाद सोनिया गांधी को बदलाव के बारे में पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में से 9 नेता गुलाम नबी आजाद के घर पर मिले थे। इसमें आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर भी शामिल थे।

यानि इस बार का भूकंप अधिक बड़े स्तर का है और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व डोल रहा है। जब भूकंप धरती के ऊपर आता है तो जीर्णोद्धार की अवस्था वाले घर तबाह हो जाते हैं और उनके स्थान पर एक नए घर का निर्माण किया जाता है। कांग्रेस में भी इस भूकंप का ये असर देखने को मिल सकता है।

दरअसल, CWC की मीटिंग के बाद परिणाम वैसे ही आए जिसकी आशा की गयी थी। सोनिया गांधी अगले छह महीनों के लिए अंतरिम कांग्रेस प्रमुख के रूप में बने रहने के लिए सहमत हुई। परंतु अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) नेतृत्व में परिवर्तन के लिए तुरंत नए कांग्रेस अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू करेगी। हालांकि, कई लोग इस मत से सहमत नहीं होंगे लेकिन इस बार अधिक संभावना है कि कांग्रेस को एक गैर-गांधी अध्यक्ष मिले। इतने सालों में पहली बार ऐसा हुआ है कि गैर-गांधी परिवार के नेताओं का मत राष्ट्रीय स्तर पर हावी होता दिखाई दे रहा है। इस बार कांग्रेस के अंदर फैला विरोध अत्यधिक मजबूत दिखाई दे रहा है। एक साथ कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं का बगावत करना और पत्र लिखना, कांग्रेस में एक नए बदलाव का इशारा है। रिपोर्ट के अनुसार CWC बैठक में भी गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक और जितिन प्रसाद ने पत्र में उठाए गए मुद्दों पर चर्चा की बात कही थी, वे लोग इसपर अड़ भी गए थे कि मुद्दों का जल्द समाधान होना चाहिए।

जब राहुल गांधी की कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद को BJP का एजेंट कहने की बात सामने आई थी तब कांग्रेस तुरंत डैमेज कंट्रोल में जुट गयी थी, तथा सारा दोष मीडिया पर डाल दिया था। इन वरिष्ठ नेताओं को भी अब यह एहसास हो चुका है कि वे किस तरह से दरिया के किनारे खड़े हैं और किसी भी वक्त दरिया में गिराए जा सकते हैं। इसीलिए इन नेताओं ने अपने बचाव की प्रक्रिया शुरू करते हुए गुलाम नबी आजाद के घर पर बैठक की जिससे यह संदेश दिया जा सके कि उनकी यह बगावत यूं ही नहीं थी।

जिन नेताओं ने कांग्रेस के नेतृत्व खिलाफ असंतोष दिखाया था, उनकी वास्तविक मांगों को पूरा करने के अलावा गांधी परिवार के सामने और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। स्वाभाविक रूप से उनकी सबसे बड़ी मांग यही होगी कि पार्टी की बागडोर एक अधिक जिम्मेदार और गैर-गांधी नेता को दी जाए। हो सकता है कि इसी दबाव के कारण कांग्रेस में इतने सालों के बाद गैर-गाँधी नेता पार्टी अध्यक्ष बन सकता है।

आज भी कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर लिखा, ‘यह किसी पद की बात नहीं है। यह मेरे देश की बात है जो सबसे ज्यादा जरूरी है।’ यह कोई आम ट्वीट नहीं है बल्कि तूफान आने के पहले की खामोशी की ओर इशारा कर रहा है।

90 के दशक में जब राजीव गांधी के बाद कांग्रेस में लीडरशिप क्राइसिस हुई थी तो पहले पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। यह गांधी परिवार के चापलूसों के लिए सबसे बड़ी भूल साबित हुई थी। हालांकि, वर्ष 1996 के चुनाव में पीवी नरसिम्हा राव की हार हुई। उहोंने कांग्रेस की अध्यक्षता गांधी परिवार के किसी सदस्य को न देकर वयोवृद्ध सीताराम केसरी को दे दी। ये फैसला गांधी परिवार को बिलकुल रास नहीं आया था। 80 वर्ष की आयु में केसरी अध्यक्ष बने और प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते रहे। इस बीच 1998 के चुनाव से पहले सोनिया गांधी ने राजनीति में आने का ऐलान कर दिया और फिर से गांधी परिवार के चाटुकार सक्रिय हो गए। कहा जाता है कि सीताराम केसरी कुछ दिन और अध्यक्ष रहना चाहते थे लेकिन सोनिया के आने से उनकी मंशा पर पानी फिर गया। जब सोनिया गांधी की ताजपोशी होने वाली थी तो कांग्रेस और गांधी परिवार के तलवे चाटने वालों ने 82 वर्षीय वयोवृद्ध सीताराम को बाथरूम में बंद कर दिया था ताकि वह बैठक में सोनिया का विरोध न कर पाए और गांधी परिवार ही कांग्रेस का केंद्र बना रहे। सोनिया गांधी ने ये सिद्ध कर दिया था कि नेहरु-गांधी परिवार ही पार्टी में सर्वोपरि है।

अब जिस तरह से माहौल सेट हो चुका है उससे यह कयास लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के कुछ नेता बदलाव को प्राथमिकता दे रहे हैं। हालांकि, जितने लोग बदलाव चाहते हैं उससे अधिक लोग सोनिया गांधी और राहुल गांधी के चरणधूलि में ही लोटे रहना चाहते हैं जिससे उनके नयनों के सामने से गांधी रूपी धूल बदलाव के झोके से उड़ न जाए। अब यह देखना है कि मोदी-शाह की जोड़ी ने जो क्रान्तिकारी राजनीतिक बदलाव पैदा किये हैं, उससे कांग्रेस में भी कितने दिनों के अंदर क्रन्तिकारी की चिंगारी आज की लपटों में बदलती है और फिर कांग्रेस की आंतरिक शुद्धि होती है।

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