उत्तर कोरिया को 1 मिलियन डॉलर की सहायता देकर भारत ने जिनपिंग को बड़ी warning दी है

उत्तर कोरिया में चला भारत ने बड़ा दांव

उत्तर कोरिया

भारत ने कोरोना के समय में कई छोटे-बड़े देशों की मदद की है और उन्हें मेडिकल डिप्लोमेसी से अपने पाले में किया है। अब भारत ने अपने सॉफ्ट डिप्लोमेसी का एक और नमूना देते हुए चीन के करीबी देशों में से एक उत्तर कोरिया को अपने पाले में करने के लिए कदम उठाया है। 

दरअसल, उत्तर कोरिया में मेडिकल उपकरणों समेत कई स्वास्थ्य सेवाओं संबंधी जरूरतों की कमी है। इस विषय पर संवेदना जताते हुए भारत सरकार मानवीय आधार पर लोगों की जान बचाने के लिए आगे आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की अपील के बाद भारत की सरकार ने मानवीय आधार पर डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया यानि उत्तर कोरिया को पिछले महीने 25 जुलाई को 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद भेजी थी। भारत शुरू से ही कोरियन क्षेत्र में शांति की पहल करता आया है और भारत के नॉर्थ कोरिया को अपने पाले में करने की कोशिश का बड़ा प्रभाव हो सकता है। 

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विदेश मंत्रालय ने बताया कि यह सहायता उत्तर कोरिया में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चलाए जा रहे टीबी रोग उन्मूलन कार्यक्रम के तहत होगी। दवाओं की खेप उत्तर कोरिया में भारत के राजदूत अतुल मल्हारी ने WHO के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में देश के अधिकारियों को सौंपी। बता दें कि WHO का यह मदद कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लगाए गए इस देश पर प्रतिबंधों के बाहर है। 

यह पहली बार नहीं है जब भारत ने उत्तर कोरिया की मदद हो। भारत ने इससे पहले वर्ष 2011 और 2016 में उत्तर कोरिया को एक मिलियन डॉलर के मूल्य का भोजन भेजा था- दोनों ही World Food Programme के तहत भेजा गया था। 

यह सभी को पता है कि आज के समय में उत्तर कोरिया अपने चीन समर्थित कार्यों और अमेरिका विरोधी होने के कारण सबसे अलग थलग देशों में हैं जहां कोई मदद नहीं करना चाहता है। ऐसे में भारत ने WHO के माध्यम से इस अकेले पड़े देश के लोगों की मदद कर एक सॉफ्ट डिप्लोमेसी का संदेश भेजा है। 

भारत शुरू से ही कोरिया में शांति स्थापना की बात करता आया है। भारत ने कोरियाई युद्ध के दौरान और उसके बाद एक निष्पक्ष भूमिका निभाई थी। आज के समय में भारत की भूमिका और बढ़ चुकी है वो भी तब जब अमेरिका और चीन दूसरे के खिलाफ बंदूक ताने खड़े हैं और उत्तर कोरिया चीन के साथ है। भारत की भूमिका को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है भविष्य में भारत ही अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच मध्यस्तता करवा सकता है जिससे चीन को काउंटर किया जा सके। 

इससे पहले भारत ने 27 जुलाई, 1953 को कोरियाई युद्ध की समाप्ती के बाद शांति प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत की अंतराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति में यह पहला सफल प्रयास कहा जा सकता है। कई अवसरों पर पूरे विश्व ने देखा है कि भारत वैश्विक शांति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चाहे वो कोरियन युद्ध में किसी का साथ न देना हो या संयुक्त राष्ट्र की सेना में अमेरिका के नेतृत्व का विरोध करना हो, भारत ने एक निष्पक्ष भूमिका निभाई है। इसके अलावा भारत ने युद्ध में लड़ने के बजाए फील्ड एंबुलेंस यूनिट तैनात किया जो दोनों ओर के घायल सैनिकों की मदद करता था।  

यही नहीं, रूस के शासक जोसेफ स्टेलिन की मौत के बाद भारत ने युद्ध को समाप्त करने के प्रस्ताव भेजा था जिस पर तुरंत सहमति बन गयी थी। इसके बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र की न्यूट्रल नेशंस सुपरवाइजरी कमीशन की अध्यक्षता भी की जिसने 20 हजार से अधिक युद्ध बंदियों के भविष्य का फैसला किया। भारत को इस कमीशन का अध्यक्ष बनाया जाना दिखाता है कि सभी देशों को भारत की निष्पक्षता पर पूरा भरोसा था।

हालांकि, अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध शुरू होने के कारण भारत की भूमिका दब गयी। परंतु आज भारत ने दोनों कोरियाई देशों के साथ अपने सम्बन्धों को बनाए रखा है, खास कर उत्तर कोरिया के साथ। नई दिल्ली के एक थिकटैंक ऑब्जर्वर फाउंडेशन के रिसर्च फेलो अभिज्ञान रेज का कहना है कि “शीत युद्ध के दौर में भारत गुटनिरपेक्ष रहा, उसी की विरासत भारत-उत्तर कोरिया के संबंध हैं। शीत युद्ध खत्म होने के बाद भारत ने उत्तर कोरिया सहित उन देशों के साथ संपर्क रखने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई जिन्हें पश्चिमी दुनिया ‘समस्या वाले देश’ समझती थी।”

15 मई 2018 को भारतीय विदेश राज्य मंत्री विजय कुमार सिंह उत्तर कोरियाई उपाध्यक्ष किम योंग-डे से मुलाक़ात करने पहुंचे थे। उनकी यात्रा से भारत ने यह स्पष्ट बता दिया था कि भले ही दुनिया इस देश के खिलाफ हो चुकी है लेकिन भारत अभी भी शांति के पक्ष में है। अगर जरूरत पड़ी तो भारत दोनों कोरियाई देश के बीच शांति समझौते में मध्यस्तता करने के लिए भी राजी है जिससे कोरिया युद्ध के बाद शुरू किए गए शांति प्रयासों को अंतिम रूप मिल सकता है।

हालांकि, उत्तर कोरिया के ऊपर चीन का अधिक प्रभाव है जिससे आज भी यह देश शांति के किसी समझौते पर तैयार नहीं होना चाहता है। चीन ने उत्तर कोरिया का इस्तेमाल अमेरिका के खिलाफ अपने एक बेलगाम सिपाही की तरह किया है। 

अब भारत दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उत्तर कोरिया के साथ अपने सम्बन्धों को मधुर करने की ओर फिर से कदम बढ़ा रहा है। भारत ने उत्तर कोरिया को जरूरत के समय पर मदद भेज कर एक बार फिर से यह जाता दिया है कि उसके लिए एक मात्र उम्मीद भारत ही है जो आज भी बिना किसी हिचकिचाहट के मदद के लिए तैयार है। भारत के इस रणनीतिक कदम से आने वाले समय में एक सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकता है। भारत के इस तरह से वैश्विक शांति में प्रयासों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता आवश्यक है जिससे यह काम और आसान हो सके। 

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