चीन की विस्तारवादी नीतियों का शिकार केवल तिब्बत ही नहीं है। मध्य एशिया का एक भाग पूर्वी तुर्किस्तान भी हुआ करता था, जो 1949 में एक स्वतन्त्र राष्ट्र था। चीन द्वारा आक्रमण के बाद यह अपनी स्वतंत्रता गवां बैठा और आज चीन के शिंजियांग प्रान्त के रूप में जाना जाता है। आज के शिंजियांग में समय-समय पर चीन से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष होता रहा है। 1990 के दशक में, सोवियत संघ के टूटने के बाद मध्य एशिया में तुर्किस्तान, कजाकिस्तान आदि स्वतन्त्र देशों का अस्तित्व बना, तब चीन के शिंजियांग में पूर्वी तुर्किस्तान की स्वतंत्रता की मांग उठी जिसे चीन ने दबा दिया।
आज दुनिया में चीन के खिलाफ बढ़ते गुस्से के बीच स्वतंत्र पूर्वी तुर्किस्तान की, अमेरिका स्थित निष्काषित सरकार के प्रधानमंत्री साहिल हदयार ने दुनिया के देशों से अपने देश की स्वतंत्रता की मांग उठाई है। इसी क्रम में भारत के लोगों और प्रधानमंत्री मोदी का भी सहयोग पाने के लिए उन्होंने भारत के 74वें स्वतंत्रता दिवस पर भारत के लोगों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि पूर्वी तुर्किस्तान में लंबे समय तक चीनी कब्जे और नरसंहार के दशकों ने हमें सिखाया है कि स्वतंत्रता के बिना हमारे सबसे बुनियादी मानव अधिकारों की गारंटी होने या उनको सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं है। स्वयं को भारत का पड़ोसी बताते हुए उन्होंने कहा की “भारत के उत्तरी पड़ोसी अधिकृत पूर्वी तुर्किस्तान के लोगों की ओर से, हम भारत और उसके लोगों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना देते हैं।”.
उनके शब्दों में पूर्वी तुर्किस्तान के लोगों की स्वतंत्रता की चाह साफ़ दिख रही थी, उन्होंने आगे कहा “कई लोग पूछ सकते हैं कि स्वतंत्रता इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? स्वतंत्रता का अर्थ है दूसरों के नियंत्रण, प्रभाव और उत्पीड़न से मुक्ति। एक स्वतंत्र राष्ट्र में स्वतंत्र रूप से चुनाव करने, शासन करने और अपने स्वयं के कानून और निर्णय लेने की शक्ति होती है। किसी देश और उसके लोगों के लिए विकास और समृद्धि के लिए आज़ादी सबसे आवश्यक चीज़ है।”
बता दें की यह पहला मौका नहीं है जब चीन के शिंजियांग प्रान्त में स्वतंत्रता की मांग उठी है। वस्तुतः इस इलाके में रहने वाले उइगर मुसलमानों के साथ नस्लीय भेदभाव और उनका धार्मिक उत्पीड़न बहुत पुराना है। वर्ष 2009 में यहां बड़ी मात्रा में दंगे हुए थे, जिसमें उइगर मुसलमानो की बड़ी संख्या हत्या हुई थी। इसके बाद वहां सरकारी दमन अपने चरम पर है।
सरकारी आंकड़ों और 30 detention camp के लोगों के इंटरव्यू से यह पता चला है कि पिछले चार वर्षों में चीन की सरकार ने शिनजियांग के सुदूर पश्चिमी क्षेत्र में जहां उइगर मुसलमान रहते हैं वहाँ इस प्रकार का अत्याचार किया है जिसे कुछ विशेषज्ञ एक तरह से “जनसांख्यिकीय नरसंरहार” तक कह चुके हैं।
लेकिन कोरोना के फैलाव और अमेरिका-चीन के बीच चल रहे शीतयुद्ध ने यहाँ के लोगों को अपनी आजादी की मांग उठाने का सही अवसर दिया है। पूर्वी तुर्किस्तान की निष्काषित सरकार जानती है कि एशियाई शक्तियों में केवल भारत ही है जो चीन का मुकाबला कर सकता है। भारत ने हाल ही में चीन को गलवान की घटना के बाद जिस तरह से चीन को मुहतोड़ जवाब दिया है उसके बाद भारत की शक्ति के प्रति विश्वास बढ़ा है। यही कारण है कि पूर्वी तुर्किस्तान के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत के लोगो से भावनात्मक अपील की है।
गौरतलब है कि अमेरिका ने पूर्वी तुर्किस्तान के मुद्दे को लेकर चीन के शीर्षस्थ अधिकारियों पर प्रतिबन्ध लगाया है। इसी के बाद एक साक्षात्कार में East Turkistan Republican Party के सचिव ने बयान देते हुए कहा था कि भारत यदि पूर्वी तुर्किस्तान और तिब्बत के लिए और मुखर होता है तो यह न सिर्फ यह पूर्वी तुर्किस्तान और तिब्बत के लोगों के लिए मददगार होगा बल्कि भारत के लिए रणनीतिक रूप से लाभकारी होगा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका का साथी है, ऐसे में भारत को भी अमेरिका की तरह इस मुद्दे को उठाना चाहिए।
भारत सरकार ने सभी को चौकाते हुए हांगकांग का मुद्दा उठाया था। साथ ही भारत सरकार चीन के विरुद्ध आर्थिक मोर्चे पर लगातार आक्रामक है। ऐसे में यह तो तय है कि पूर्वी तुर्किस्तान की स्वतंत्रता के मुद्दे पर भारत सरकार जो भी कदम उठाएगी वह भारत की विदेश नीति के हिसाब से अति महत्वपूर्ण होगा।