चीन के विरुद्ध अब एक वैश्विक अभियान छिड़ चुका है और ऐसे में भला फेसबुक भी कैसे पीछे रहता? हाल ही में अमेरिकी संसद में फेसबुक चीफ मार्क जुकरबर्ग ने ये स्पष्ट कर दिया है कि अब वह चीन की एक नहीं सुनेगा। सोशल मीडिया पर टिकटॉक को निशाना बना कर चीन के प्रभाव को नष्ट करने के लिए फेसबुक अब कमर कस चुका है।
निक्केई एशियन रिव्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी काँग्रेस द्वारा आयोजित सुनवाई में गूगल, एप्पल और फेसबुक को चीन के वर्तमान निर्णयों और चीन से आगे के सम्बन्धों पर अपने विचार प्रस्तुत करने को कहा गया था। इस पर, गूगल और एप्पल तो चीन के खिलाफ ज्यादा मुखर नहीं हुए लेकिन फेसबुक ने चीन के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग के अनुसार, “फेसबुक अपने मूलभूत सिद्धांतों की रक्षा के लिए हमेशा प्रतिबद्ध है, चाहे वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो या फिर लोकतन्त्र के रक्षा की नीति। यह मूलभूत आधार सिर्फ हमारे लिए ही नहीं, बल्कि संसार में सभी लोकतान्त्रिक देशों के लिए आवश्यक है, लेकिन कुछ देश और उनकी कंपनियों इन नीतियों में तनिक भी विश्वास नहीं कर सकते।”
जुकरबर्ग का सीधा इशारा चीन और टिकटॉक की ओर था। यह बयान स्पष्ट रूप से टिक टॉक के सीईओ केविन मेयर को एक जवाब था। केविन ने कहा था कि फेसबुक देशभक्ति के नाम पर टिक टॉक जैसी संस्थाओं को बर्बाद कर रही है। केविन के अनुसार, “टिक टॉक को प्रतिस्पर्धा से कोई भय नहीं है। सही प्रतिस्पर्धा से सभी का विकास होता है। हमारा फोकस सही प्रतिस्पर्धा है न कि फेसबुक की तरह दूसरों को देशभक्ति के नाम पर नीचा दिखाकर यूएस में हमारी उपस्थिति खत्म करना।”
अब अमेरिकी प्रशासन ने भारत की तर्ज पर टिक टॉक जैसे कई चीनी एप्स को प्रतिबंधित करने के संकेत दिये हैं और फेसबुक इस माहौल का पूरा फायदा उठाना चाहता है।
लेकिन सवाल है कि मार्क जुकरबर्ग की आँखें कब खुलीं? जो व्यक्ति कभी चीन की तारीफ करते नहीं थकता था, वह अचानक से चीन का विरोधी कैसे हो गया? इसके पीछे कई कारण हैं, लेकिन सबसे प्रमुख है चीन द्वारा सालों तक फेसबुक की अनदेखी करना। ये सभी को पता है कि फेसबुक चीन में प्रतिबंधित है और इसे हटाने के लिए मार्क जुकरबर्ग को कई पापड़ भी बेलने पड़े, लेकिन तब भी सफलता हाथ नहीं लगी। मार्क जुकारबर्ग ने चीन को लुभाने के लिए कई हथकंडे अपना चुके हैं। साल 2007 में चीन द्वारा बैन किए जाने के बाद वो फेसबुक को चीन में स्वीकृति प्रदान करवाने के लिए कई नाकाम कोशिश कर चुके हैं। जिनपिंग को लुभाने के लिए ना सिर्फ उन्होंने चीन की mandarin भाषा सीखी, बल्कि उन्होंने mandarin में Tsinghua University में एक भाषण भी दिया था।
इतना ही नहीं, पिछले साल जब यूएन में ट्रम्प ने चीन की धुलाई की थी, तब पूरे विश्व की लिबरल मीडिया और सोशल मीडिया संगठनों ने उनके इस भाषण को पूरी तरह सेंसर कर दिया था, जिसमें फेसबुक भी शामिल था। ना तो उनका भाषण कहीं सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर पाया और ना ही इसको लेकर बड़े स्तर पर कोई कवरेज की गई। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि गूगल और फेसबुक जैसी अमेरिकी कंपनियां चीन में अपने व्यापार को बढ़ाने पर फोकस कर रही थीं। आपको याद होगा कि दुनिया भर की लिबरल मीडिया ने हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनों से संबन्धित खबरों को छुपाकर रखा था लेकिन कश्मीर से जुड़ी खबरों को प्राथमिकता से प्रकाशित किया था।
मार्क ने फेसबुक पर चीन की कहानियों को प्रोमोट भी किया था, लेकिन ये सब जिनपिंग को लुभाने में नाकाम साबित रहा। अब जुकरबर्ग ने भी चीन से उम्मीद छोड़ दी है और उन्होंने खुलकर चीन का विरोध करने का फैसला कर लिया है। इसीलिए उन्होंने चीन के विरुद्ध मोर्चा खोला है। मई महीने में मार्क जुकरबर्ग ने कहा था कि, पश्चिमी देशों को जल्द से जल्द लोकतान्त्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए इंटरनेट इस्तेमाल के लिए वैश्विक पैमानों का गठन करना चाहिए ताकि इंटरनेट पर बढ़ते चीन के प्रभाव को रोका जा सके। जुकरबर्ग ने यह भी कहा कि चीन के प्रभाव वाले देश लगातार चीन के नक्शेकदम पर चलते हुए सख्त और लोकतन्त्र-विरोधी इंटरनेट नीति का पालन करते जा रहे हैं, जो बेहद खतरनाक है। बता दें कि इससे पहले जुकरबर्ग खुलकर चीनी कंपनी टिकटॉक का विरोध भी कर चुके हैं और इसे लोकतांत्रिक के लिए खतरा बता चुके हैं। इससे न सिर्फ फेसबुक ने चीन के विरुद्ध आधिकारिक तौर पर मोर्चा खोल दिया है, बल्कि अपने वर्तमान रुख से यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह गूगल और एप्पल की तरह चीन के विरुद्ध कार्रवाई करने में अब कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाएगा।