भारत के पड़ोसी पाकिस्तान को हाल ही में जर्मनी से बड़ा झटका लगा। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्कल के नेतृत्व वाले एक Security Panel ने पाकिस्तान को Air-Independent Propulsion System की तकनीक देने से साफ़ मना कर दिया। यह तकनीक मिलने के बाद पाकिस्तान की submarines आसानी से पानी के अंदर ज़्यादा समय तक रह सकती थीं। बता दें कि, अभी पाकिस्तानी Submarines की batteries रिचार्ज करने के लिए उन्हें सतह पर लेकर आना पड़ता है। पाकिस्तान जर्मनी से नई तकनीक लेकर अपनी submarines को अपग्रेड करना चाहता था, लेकिन जर्मनी ने भारत को नाराज़ ना करने के लिए पाकिस्तान की विनती को ठुकराने का ही फैसला लिया । ऐसा इसलिए क्योंकि यही जर्मनी और EU के आर्थिक हितों में है।
अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प के आने के बाद से ही यूरोप और अमेरिका के बीच तनाव देखने को मिलता रहा है। उदाहरण के लिए वर्ष 2018 में अमेरिका ने यूरोप से आयात होने वाले steel और aluminium पर क्रमशः 25 प्रतिशत और 10 प्रतिशत import duty लगाने का फैसला लिया था। फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों ने यह फैसला लेने के लिए राष्ट्रपति ट्रम्प की निंदा की थी। इसके साथ ही NATO के नियमों के तहत डिफेंस बजट नहीं बढ़ाने के लिए भी जर्मनी कई बार अमेरिका के निशाने पर आ चुका है। इस वर्ष ही राष्ट्रपति ट्रम्प ने जर्मनी से अपने 12,000 सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया था। अमेरिका से बढ़ती दूरी के बीच जर्मनी और यूरोप के लिए चीन और भारत जैसे देशों में ही अवसर दिखाई दे रहा है।
यही कारण है कि, यूरोप भारत और चीन के खिलाफ बोलने से परहेज करता रहा है। हालांकि, दबाव बढ़ने के बाद यूरोप अवश्य ही चीन के खिलाफ बोलने पर भी मजबूर हो चुका है। उदाहरण के लिए चीन द्वारा Hong-Kong में दमनकारी सुरक्षा कानून लागू करने के बाद जर्मनी ने Hong-Kong से अपनी प्रत्यर्पण संधि को खत्म कर दिया था, जिस कदम की चीन ने घोर निंदा की थी। इतना ही नहीं, हाल ही में ईयू ने दुनियाभर में साइबर हमलों में शामिल रही कुछ चीनी कंपनियों और दो चीनी नागरिकों पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान भी किया था। इसके अलावा हाल ही में EU के विदेश मंत्रियों की बैठक में बेलारूस के चीन समर्थित राष्ट्रपति Alexander Lukashenko और उनके कई अधिकारियों के खिलाफ चुनावों में धांधली और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के आरोप में प्रतिबंध लगाने का फैसला भी लिया गया था।
During todays meeting with EU foreign ministers Sweden reiterated that EU’s reaction to the belarusian presidential election must be strong. EU will now initiate a process of sanctions against those responsible for the violence, arrests and fraud in connection with the election.
— Ann Linde (@AnnLinde) August 14, 2020
हालांकि, भारत के मामले में EU का रुख हमेशा ही सकारात्मक रहा है। इस वर्ष जनवरी में जब यूरोपियन संसद में कश्मीर और भारत के CAA कानून की निंदा करने वाले एक प्रस्ताव पर वोटिंग होनी थी, तो यूरोपीय संसद ने इसे टालने में ही अपनी भलाई समझी थी। इसके अलावा भी EU कश्मीर, CAA, NRC जैसे संवेदनशील मुद्दों पर टिप्पणी करने से बचता ही रहा है।
अब इसके पीछे का कारण भी जान लेते हैं। Brexit के बाद यूनाइटेड किंगडम स्वतंत्र रूप से व्यापारिक समझौते कर पा रहा है जिसके कारण अब UK और EU के बीच एक Trade race देखने को मिल रही है। दरअसल, EU से अलग होने के बाद UK बड़े पैमाने पर दूसरे देशों के साथ Trade deals साइन कर रहा है। हालांकि, इस दौड़ में EU पिछड़ता दिखाई दे रहा है। ऐसे में EU चाहता है कि, वह जल्द से जल्द भारत और चीन जैसी बड़ी महाशक्तियों के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत कर ले और व्यापारिक संधियों पर हस्ताक्षर कर ले। माना जा रहा है कि UK और EU में भारत के साथ trade deal करने को लेकर एक प्रतिस्पर्धा चल रही है और EU भारत के खिलाफ कोई भी एक्शन लेकर इस प्रतिस्पर्धा से बाहर नहीं होना चाहता।
जर्मनी, यूरोप और भारत लोकतांत्रिक मूल्यों को साझा करते हैं। यह भी बड़ा कारण है कि यूरोप भारत को एक दोस्त और एक साथी के रूप में देखता है। हालांकि, हाल के सालों में यूरोप भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने को लेकर बेहद उत्साहित दिखाई दिया है। जुलाई महीने में ही भारत और EU के बीच बैठक हुई थी जिसमें यूरोपियन यूनियन ने भारत के साथ Trade deal को लेकर बातचीत को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाई थी। ऐसे में EU किसी भी सूरत भारत को अपने खिलाफ नहीं करना चाहता। यही कारण है कि वह ना तो पाकिस्तान की कोई सैन्य मदद करना चाहता है और न ही भारत के किसी आंतरिक मामले पर बोलकर भारत को अपने विरोध में खड़ा करना चाहता है।