सऊदी अरब के प्रिंस और शासक मुहम्मद बिन सलमान पर अमेरिका के वाशिंगटन डीसी कोर्ट में एक मुक़दमा दर्ज हुआ है। सऊदी प्रिंस सलमान पर आरोप है कि, उन्होंने अपने देश के ख़ुफ़िया विभाग के पूर्व अधिकारी साद अल जाबरी को मारने के लिए सऊदी से विशेष दस्ते, “टाइगर स्क्वाड” को कनाडा भेजा था। इससे सऊदी अरब के शाही परिवार पर इतिहास में पहली बार एक अमेरिकी कोर्ट में मुकदमा चल सकता है। साद अल जाबरी के ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों की इंटेलिजेंस एजेंसियों के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं। अब इस मुकदमे के कारण सऊदी अरब के संबंध अमेरिका और कनाडा से और खराब होने के कयास लगाये जा रहे हैं। दरअसल सऊदी के इस कदम से कनाडा अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को ले कर सख्त हो गया है और अमेरिका को एक मुद्दा मिल गया है जिससे वह सऊदी को घेर सके।
साद अल जाबरी पिछले प्रिंस के शासन में सऊदी और पश्चिमी देशों के बीच सम्बन्ध बनाने में एक महत्वपूर्ण कड़ी थे। सऊदी के पुराने प्रिंस मुहम्मद बिन नईफ को हटाकर ही बिन सलमान 2017 में नए प्रिंस बने थे। बिन सलमान के भ्रष्टाचार के राज़ और सऊदी के सशत्र बलों की महत्वपूर्ण जानकारियां साद के पास मौजूद हैं। यही कारण है कि बिन सलमान उन्हें रस्ते से हटवाना चाहते हैं।
साल 2018 में, तुर्की में सऊदी के पत्रकार, जमाल खशोगी की हत्या में भी सऊदी के इसी टाइगर स्क्वाड का ही नाम आया था। अब अपनी ओर से अमेरिका में दाखिल मुकदमे में साद ने यह कहा है कि यह दस्ता उन्हें भी मारने के लिए कनाडा भेजा गया है। क्योंकि कनाडा और अमेरिका के बीच संबंध बहुत ही अच्छे हैं इसीलिए वहां की अदालतों में एक दोनों देशों के नागरिकों के मामले दर्ज किये जा सकते हैं।
हालाँकि, इन आरोपों पर सऊदीअरब की सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। वहीं कनाडा के नागरिक सुरक्षा मंत्री, बिल ब्लेयर कहा है कि, वो इस केस पर तो टिपण्णी नहीं करेंगे लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी है कि, विदेशी तत्वों द्वारा कनाडाई नागरिकों की रेकी और उन्हें डराने-धमकाने के प्रयास किये जाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि वो यह कतई स्वीकार नहीं करेंगे कि विदेशी तत्व कनाडा की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करें।
हाल के वर्षों में अमेरिका और उसके सहयोगियों के संबंध सऊदीअरब की सरकार के साथ उतने अच्छे नहीं रहे जितने 21वीं सदी की शुरुआत में थे।अमेरिका एक लम्बे समय तक तेल की आपूर्ति के लिए सऊदी पर निर्भर था, जबकि मध्य एशिया की राजनीति में अपने दबदबे को बनाए रखने और अपने आर्थिक विकास के अवसरों के कारण सऊदी भी अमेरिका की ओर झुका हुआ था। यही कारण था कि दोनों देशों के बीच एक अस्वाभाविक गठबंधन चल रहा था, जिसमें अमेरिका जो लोकतंत्र और मानवाधिकार का झंडा उठाए रहता है वह वहाबी और कट्टर सुन्नी इस्लामी विचार वाले सऊदी के साथ लम्बे समय तक बना रहा। यह गठबंधन भी ऐसे समय में था जब मध्य-पूर्व में अमेरिका ने इसराइल के साथ भी अपने मजबूत सम्बन्ध बनाए रखे, जो मुस्लिम जगत का स्वाभाविक शत्रु रहा है।
हालाँकि, अब अमेरिका की तेल की जरूरतें घरेलु उत्पादन से ही पूरी हो जाती है। साथ ही मध्य एशिया की राजनीति में हस्तक्षेप करने के कारण अमेरिका को कई युद्ध भी लड़ने पड़े जिनसे अब वहां की जनता भी ऊब चुकी है। यही कारण है कि ट्रम्प के आने के बाद से अमेरिका ने उस क्षेत्र में अपनी सक्रियता कम कर दी है। इससे अमेरिका और सऊदी के संबंध भी धीरे-धीरे कम हो रहे हैं। अब तो अमेरिका ने अपने पेट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम और अन्य अत्याधुनिक हथियारों को भी सऊदी के मिलट्री बेस से हटा लिया है।
निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि, अब दोनों देश एक दूसरे के विपरीत हो चुके हैं, क्योंकि अभी भी अमेरिका को ईरान के खिलाफ सऊदीअरब जैसे किसी मजबूत मुस्लिम मित्र राष्ट्र की आवश्यकता है। लेकिन इतना अवश्य है कि सऊदीअरब और अमेरिका के सहयोगियों के बीच तनाव बढ़ेगा ही बढेगा।
हाल ही में वैश्विक राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया है। कम्युनिस्ट विचारधारा का धुर विरोधी सऊदी अरब चीन के साथ अपने रिश्ते सुधार रहा है। पर देखा जाए तो सऊदी के लिए यह संभव नहीं है क्योंकि चीन के ईरान के साथ पहले से ही बहुत बेहतर सम्बन्ध हैं और सऊदी और ईरान के बीच एक-दूसरे के लिए काफी नफरत है। हाल ही में सऊदीअरब ने बीजिंग के प्रति झुकाव दिखाकर अमेरिका को एक सन्देश देना चाहा था पर अब अमेरिका भी सऊदी के प्रिंस को कनाडा के माध्यम से एक कड़ा सन्देश भेज रहा है।