भारत सरकार और नागा विद्रोहियों के बीच चल रही शांति वार्ता के बीच नागा विद्रोहियों ने भारत सरकार से अपने वार्ताकार और नागालैंड के राज्यपाल आर० एन० रवि को हटाने की मांग की है। नागा विद्रोहियों का कहना है कि रवि उनके और भारत सरकार के बीच चल रही वार्ता में बाधा पहुंचा रहे हैं और उनके लिए उलझने पैदा कर रहे हैं।
नागा विद्रोहियों और भारत सरकार का संघर्ष दशकों पुराना है। पं० नेहरू के कार्यकाल से ही नागा विद्रोही, भारत से आजाद होकर अलग देश की मांग के लिए हथियार उठाए हुए हैं। 2015 में मोदी सरकार के दौरान नागा विद्रोहियों ने हथियार के जरिये अपनी मांग मनवाने के बजाए बातचीत की टेबल पर आना स्वीकार किया था।
इस समझौते के तहत भारत सरकार की ओर से आर० एन० रवि मुख्य वार्ताकार नियुक्त हुए थे और नागा विद्रोही उन्हें इस प्रक्रिया से हटवाना चाहते हैं। नागा विद्रोहियों की ओर से इसका कारण यह बताया गया है कि गवर्नर रवि ने नागा समूह के बीच फ्रेमवर्क एग्रीमेंट से संबंधित कुछ कॉपी बांटी है, जिसमें उन्होंने भारत सरकार का पक्ष रखते हुए यह कहा है कि नागा विद्रोहियों के साथ होने वाले समझौते के तहत उन्हें भारत सरकार की संप्रभुता में पूर्ण आस्था व्यक्त करनी होगी। फ्रेमवर्क एग्रीमेंट के तहत समावेशी समझौता होगा, जिसमें नागा इतिहास और संस्कृति की विशिष्टता बनाए रखने का पूरा ध्यान दिया जाएगा।
इसके विपरीत नागा विद्रोहियों की मांग है कि जो भी समझौता होगा उसके तहत साझा संप्रभुता होगी, अर्थात विद्रोही अपनी अलग झंडे और अलग संविधान की मांग पर अड़े हैं, जैसा कश्मीर के सिलसिले में था।
विद्रोहियों का आरोप है कि रवि ने फ्रेमवर्क एग्रीमेंट से संबंधित जो कॉपी नागा समुदाय के लोगों, सिविल सोसायटी के बीच बँटवाई है, उसमें इस साझा संप्रभुता की बात को घुमा दिया गया है। उनका आरोप है कि रवि का उद्देश्य विद्रोहियों में फूट डालना है।
वास्तविकता यह है कि आर एन रवि ने नागाओं के अलग झंडे और संविधान की बात को पूर्णतः नकारते हुए पिछले वर्ष October तक शांति वार्ता को किसी नतीजे तक पहुंचाने को कहा था। विद्रोहियों का आरोप है कि रवि उन्हें कोई आंदोलनकारी न मानते हुए केवल लॉ एंड आर्डर की समस्या ही मानते हैं।
दरअसल आर एन रवि एक चतुर वार्ताकार है, जो नागा विद्रोहियों को मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है कि एनएससीएन-आईएम उन्हें एक खतरे के रूप में देखता है। क्योंकि वे उसे समझौते में किसी भी प्रकार से हावी नहीं होने दे रहे हैं।
कुछ दिनों पहले उन्होंने विद्रोहियों द्वारा जबरन वसूली का मुद्दा उठाया था, जो कोई भी अन्य वार्ताकार सामान्य रूप से नहीं करता। यह एक साहसिक बयान था जो बैकफायर होने पर वार्ता को पटरी से उतार सकता था। लेकिन इसके विपरीत हुआ, यह कि इसने विद्रोहियों की छवि को धूमिल किया।
रवि वार्ताकार के रूप में किसी भी अन्य अधिकारी से बेहतर हैं। वे पूर्व इंटेलिजेंस अफसर रहे हैं और वे अजीत डोभाल की ही तरह केरल कैडर के IPS हैं। उन्होंने डोभाल के साथ काम भी किया है।
हाल ही में असम राइफल्स और अरुणांचल पुलिस की एक संयुक्त टीम ने 6 विद्रोहियों को मार गिराया था ,जो बताता है कि भारत सरकार उन्हें कानून और व्यवस्था की समस्या ही मान रही है। सरकार भले ही विद्रोहियों से बातचीत कर रही है लेकिन वह किसी भी हाल में सशत्र विद्रोह बर्दाश्त नहीं करेगी और ऐसा करने वालों को कुचल दिया जाएगा। यही कारण है कि अपनी इस मांग के बाद भी विद्रोहियों ने वार्ता खत्म होने या उसके महत्व के कम होने की सभी संभावनाओं को नकार दिया है।
ऐसे में एक ही रास्ता है कि बातचीत द्वारा ही सरकार से अधिक से अधिक रियायत हासिल की जाए जो आर० एन० रवि के रहते सम्भव नहीं। उनकी उपस्थिति भारतीय सरकार के साथ मुनाफे का सौदा करने की NSCN-IN की सभी संभावनाओं को कमजोर करता है – ऐसे में आर० एन० रवि को किसी प्रकार हटवाना ही, विद्रोहियों के लिए एकमात्र समाधान है।