UAE-इज़रायल के बीच हुए शांति समझौते के कारण सबसे ज़्यादा पीड़ा किसको पहुंची है? इसका उत्तर ईरान या तुर्की नहीं, बल्कि चीन है। SCMP की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन के पूर्व राजनयिक Hua Liming का मानना है कि अमेरिका ने दोनों “दुश्मनों” के बीच यह शांति समझौता कराके ईरान को निशाना बनाया है। बता दें कि हाल ही में मीडिया में खबरें आई थीं कि ईरान और चीन के बीच 400 बिलियन डॉलर की 25 वर्षीय डील हो सकती है। ऐसे में क्षेत्र में ईरान के हितों को नुकसान पहुंचाकर अमेरिका ने चीन के सारे मंसूबों पर भी पानी फेर दिया है।
पूर्व राजनयिक Hua Liming इस बात को समझते हैं कि अमेरिका अब अपने अरब के साथियों को साथ लेकर इस अहम क्षेत्र से चीन को बाहर करना चाहता है। इस बीच UAE-इज़रायल शांति समझौते ने यह साबित कर दिया है कि अमेरिका-सऊदी के बीच बढ़ती दूरियों के बावजूद अमेरिका का आज भी पश्चिमी एशिया पर बेहद ज़्यादा प्रभुत्व है। ऐसे में यह चीन के लिए चिंता का विषय बन गया है।
चीन पश्चिमी एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए तुर्की, ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों को अपने साथ ले रहा है। ईरान के साथ 400 बिलियन डॉलर की डील का बड़ा मकसद यही था कि वह ईरान पर अपनी पकड़ मजबूत कर आसानी से हिज़्बुल्लाह और हऊथी जैसे “रणनीतिक तौर पर अहम सम्पत्तियों” का भी फायदा उठा सके। हालांकि, जिस प्रकार अब इज़रायल और अरब देशों के सम्बन्धों में तेजी से सुधार हो रहा है, और उनके बीच रणनीतिक साझेदारी पनप रही है, उसने ईरान-चीन को चिंता में डाल दिया है। इनको डर है कि इस समझौते के बाद ईरान इस क्षेत्र में अलग-थलग पड़ जाएगा, जो चीन के हितों के लिए भी घातक साबित होगा।
ट्रम्प प्रशासन के चीन विरोधी अभियान के तहत अमेरिका लगातार अपने साथियों पर अमेरिका-चीन में से किसी एक को चुनने का दबाव बना रहा है। अमेरिका इससे पहले UK, ब्राज़ील और इज़रायल जैसे देशों पर यही तरकीब अपना चुका है। उदाहरण के लिए इस वर्ष जब अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोमपियो ने इज़रायल का दौरा किया था, तो अमेरिका ने इज़रायल पर उनके देश में जारी सभी चीनी प्रोजेक्ट्स पर तुरंत रोक लगाने की बात कही थी। हालिया खबरों के मुताबिक इज़रायल ने भी अपने यहाँ चीन की हुवावे के लिए बड़ी मुश्किलें पैदा करना शुरू कर दिया है।
ऐसे में अब अमेरिका और चीन की यह लड़ाई अरब देशों तक भी आ पहुंची है, जहां अमेरिका द्वारा उन्हें अमेरिका-चीन में से किसी एक को चुनने के लिए कहा जा रहा है। शांति समझौते इस बात का संकेत है कि इन देशों ने अमेरिका के पक्ष में जाने का फैसला ले लिया है। बता दें कि ये देश चीन को उसकी तेल ज़रूरत का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा एक्सपोर्ट करते हैं। ऐसे में अमेरिका इन देशों पर दबाव बनाकर आसानी से चीन के लिए बड़ा आर्थिक संकट खड़ा कर सकता है।
अरब देशों और इज़रायल की बढ़ती नज़दीकियों से चीन को सिर्फ रणनीतिक नुकसान ही नहीं हुआ है, बल्कि उसे बड़ा आर्थिक नुकसान भी हुआ है। माना जा रहा है कि इज़रायल के साथ समझौते के बाद UAE के निवेशक चीन की बजाय इज़रायल के start-ups में निवेश करने को प्राथमिकता देंगे। साथ ही चीन के BRI के लिए भी यहाँ बड़ी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। UAE अभी तक BRI का हिस्सा रहा है। चीन इस हिस्से में UAE, ओमान और सऊदी अरब के बीच एक transportation link स्थापित करना चाहता है। हालांकि, नए समीकरणों के बीच ऐसा करना चीन के लिए बड़ा मुश्किल रहने वाला है।
चीन इस क्षेत्र में पाकिस्तान, तुर्की और ईरान को साथ लेकर एक गठबंधन बनाना चाहता था, लेकिन अब अमेरिका द्वारा समर्थित UAE-शांति समझौते के बाद UAE, सऊदी अरब, बहरीन, ओमान और इज़रायल के बड़े और शक्तिशाली गठबंधन ने चीन के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। ऐसे में पश्चिमी एशिया में चीन के लिए राह मुश्किल ही रहने वाली है।