भारत-दक्षिण कोरिया की दोस्ती: विश्व की दो उभरती शक्तियों के साथ की कहानी

ये रिश्ता है इतिहास का, विश्वास का, भविष्य की आस का

दक्षिण कोरिया

pc: जी news

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत जिस प्रकार वैश्विक स्तर पर कूटनीति का चैम्पियन बनकर उभरा है, वह किसी से छुपा नहीं है। भारत की सफल विदेश नीति, मौजूदा भारत सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। इसी का उदाहरण है भारत और दक्षिण कोरिया के फलते-फूलते संबंध, जिन्हें वर्ष 2014 के बाद से एक नया आयाम मिला है। विदेश नीति से लेकर सुरक्षा नीति तक और अर्थव्यवस्था से लेकर सांस्कृतिक संबंध तक, हर क्षेत्र में कोरिया और भारत के सम्बन्धों में मजबूती देखने को मिली है। कोरोना के बाद चीन के बढ़ते खतरे को देखते हुए दोनों देश एक दूसरे के और करीब ही आएंगे। ऐसे में, दक्षिण कोरिया का भारत के साथ संबंध बढ़ाना भारत की Act East policy की सफलता का सबसे बड़ा सबूत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति की सबसे बड़ी और खास बात यह है कि, वे भारत और अन्य देशों के बीच की साझा मूल्यों और सांस्कृतिक सम्बन्धों पर सबसे ज़्यादा फोकस करते हैं। PM बनने के बाद वर्ष 2015 में जब वे दक्षिण कोरिया की पहली आधिकारिक यात्रा पर गए थे, तो उन्होंने अपने भाषण में कहा था, “भारत और कोरिया के संबंध पहली शताब्दी से ही मजबूत रहे हैं जब, अयोध्या की राजकुमारी सुरिरत्ना ने, कोरिया के राजा सूरो से विवाह किया था और वे कोरिया राज्य की पहली महारानी बनी थीं”। आपको जानकर हैरानी होगी कि, आज दक्षिण कोरिया के करीब 10 प्रतिशत लोग अपने आप को राजकुमारी सुरिरत्ना का वंशज बताते हैं। पीएम मोदी के बयान ने उन सभी लोगों को अवश्य ही आकर्षित किया होगा। इसके अलावा, चौथी शताब्दी में बौद्ध धर्म भारत से ही कोरिया समेत पूर्वी एशिया में फैला था, जो कि ऐतिहासिक रूप से भी भारत-कोरिया के गहरे सांस्कृतिक सम्बन्धों को दर्शाता है।

वर्ष 2017 में दक्षिण कोरिया में, राष्ट्रपति मून जे इन की सरकार बनी थी जिसके बाद दक्षिण कोरिया की सरकार ने भारत की कूटनीतिक कोशिशों पर सक्रिय प्रतिक्रिया देनी शुरू की। मून सरकार ने New Southern Policy के तहत पहली बार भारत को एक “महत्वपूर्ण साझेदार” का दर्जा दिया और अपनी विदेश नीति में भारत को एक बड़ी ताकत के रूप में स्वीकार किया। भारत की Act East Policy और दक्षिण कोरिया की New Southern Policy ने मिलकर दोनों देशों के रिश्तों को आर्थिक और रणनीतिक तौर पर काफी बल प्रदान किया।

दोनों देशों, भारत और दक्षिण कोरिया की आर्थिक नीति में चीन का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। 90 के दशक से पहले दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था अधिकतर जापान और अमेरिका पर आधारित थी। बाद में, जैसे ही जापान मंदी का शिकार हुआ और अमेरिका में protectionism बढ़ा, तो दक्षिण कोरिया ने चीन की ओर रुख किया। वर्ष 2018 आते-आते कोरिया के करीब 34.4 प्रतिशत Exports अकेले चीन और Hong-Kong को ही होते थे। लेकिन जल्द ही कोरिया को यह समझ में आ गया कि, चीन के साथ व्यापार करना आग से खेलने के बराबर ही है। वर्ष 2000 में, दक्षिण कोरिया की Koguryo विरासत पर चीन के दावों ने और वर्ष 2013 में Air Defence Identification Zone के तहत चीन द्वारा दक्षिण कोरिया के एयर स्पेस के उल्लंघन ने, दक्षिण कोरिया को सावधान कर दिया। राष्ट्रपति मून ने सत्ता में आते ही चीन को आर्थिक तौर पर दरकिनार करने फैसला लिया और भारत एवं ASEAN के साथ संबंध बढ़ाने पर ज़ोर दिया।

भारत और दक्षिण कोरिया अब एक दूसरे के आर्थिक रिश्तों को मजबूत करने पर ज़ोर दे रहे हैं। वर्ष 2018 में, दोनों ओर से यह लक्ष्य रखा गया था कि, वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार, मौजूदा 20 बिलियन डॉलर से बढ़कर 50 बिलियन डॉलर हो जाना चाहिए। अभी भारत कोरिया का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।

दक्षिण कोरिया और चीन के बीच खराब होते रिश्तों का भारत-कोरिया आर्थिक रिश्तों पर सकारात्मक असर पड़ा है। कोरिया की Samsung और Hyundai जैसी कंपनियों ने भारत को अपना नया ठिकाना बनाया है। Samsung ने भारत के Noida में Asia की सबसे बड़ी Mobile phone manufacturing Unit को स्थापित किया है। इसके साथ ही, LG कंपनी भी भारत को अपना नया export hub बनाने की दिशा में काम कर रही है। चीन की कोरिया विरोधी नीतियों के कारण Hyundai को चीन में अपनी बिक्री के 60 प्रतिशत हिस्से का नुकसान उठाना पड़ा है, जिसके बाद इस कोरियन कंपनी ने भी भारत में ही अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने का फैसला लिया है। दक्षिण कोरिया के diplomats भी इस बात को मानते हैं कि, दक्षिण कोरिया की विदेश नीति में आज अमेरिका, रूस, चीन और जापान के बाद सबसे अहम स्थान भारत का है। इसीलिए तो वर्ष 2018 में कोरियन राष्ट्रपति अपने 4 दिन के दौरे पर भारत आए थे। आमतौर पर बेहद व्यस्त रहने वाले कोरियन राष्ट्रपति द्वारा 4 दिन का भारत दौरा अपने आप में बहुत हैरान करने वाला था।

दोनों देश रणनीतिक तौर पर भी अपने सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। वर्ष 2019 में भारत और कोरिया की नेवी ने logistics support के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके अलावा समय-समय पर भारत और कोरिया की नौ सेनाएं हिन्द महासागर में सैन्य अभ्यास भी करती रहती हैं। वर्ष 2019 में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 5 दिन के दौरे पर दक्षिण कोरिया गए थे और इस दौरान उन्होंने कई सुरक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके अलावा दोनों देश भारत में Make in India के तहत सैन्य उत्पादन को बढ़ावा देना की दिशा में भी काम कर रहे हैं। भारत चाहता है कि, कोरियन कंपनी भारत में सुरक्षा उपकरण बनाकर अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में वो हथियार एक्सपोर्ट करे।

Nuclear Suppliers Group का सदस्य होने के नाते दक्षिण कोरिया इस ग्रुप में भारत की सदस्यता का भी समर्थन करता है। इसके अलावा UNSC में permanent सीट के लिए भी वह शुरू से भारत का समर्थन करता आ आया है। उत्तर कोरिया के मामले में भी भारत दक्षिण कोरिया के साथ सहयोग की बात कह चुका है। वर्ष 2018 में भारत के विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह, उत्तर कोरिया की यात्रा पर गए थे, जिसे दक्षिण कोरिया में बेहद आशावादी नज़रों से देखा गया था। वर्ष 2018 में ही दक्षिण कोरिया ने भारत के प्रधानमंत्री को Seoul Peace Prize से नवाजा था, जिसे कोरिया की ओर से पीएम मोदी के सम्मान के बड़े प्रतीक के रूप में देखा गया था।

कोरोना के बाद पैदा हुए हालात में दोनों देशों के बीच घनिष्ठा बढ़ती देखने को मिल सकती है। दक्षिण कोरिया और भारत, दोनों ही चीन के खतरे का अहसास कर चुके हैं। सिओल भी अब अपनी नेवी को अपग्रेड करने पर फोकस कर रहा है, और उसके लिए वह अपनी नेवी में जल्द ही एक एयरक्राफ्ट कैरियर शामिल करने वाला है।

हाल में भारत सरकार द्वारा पारित नई शिक्षा नीति में कोरियन भाषा को स्कूल में पढ़ाने हेतु एक विकल्प के तौर पर जोड़ा गया है, जिसका कोरियन सरकार ने स्वागत किया है। भारत और कोरिया के सम्बन्धों की खास बात यह है कि, यह अन्य सम्बन्धों की तरह सिर्फ आर्थिक हितों की बुनियाद पर नहीं टिके हैं, बल्कि ये रिश्ते सदियों पुराने सांस्कृतिक इतिहास के आधार पर बुने गए हैं, जो कि आने वाले सालों में और ज़्यादा विकसित और मजबूत होंगे।

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