ट्रम्प और पुतिन की मुलाकात वैश्विक राजनीति में रूस की वापसी और चीन की बर्बादी का काम करेगा

दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है!

अमेरिका

PC: Daily Express

Cold war के समय से ही रूस और अमेरिका के रिश्तों में तल्खी देखने को मिली है। हालांकि, अमेरिका के सामने उभरती चीन नामक बड़ी चुनौती का रूस-अमेरिका के रिश्तों पर भी गहरा असर पड़ा है। ट्रम्प प्रशासन से पहले अमेरिकी सरकारों का सारा ध्यान रूस पर ही केन्द्रित रहता था, जिसका चीन ने बड़ा फायदा उठाया। चीन दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप में धीरे-धीरे अमेरिकी प्रभुत्व को खत्म करता गया और साथ ही WTO के नियमों का फायदा उठाकर अमेरिका का आर्थिक शोषण भी करता गया! हालांकि, ट्रम्प प्रशासन ने सत्ता में आने के बाद इस नए खतरे को पहचान लिया और अब अमेरिकी प्रशासन के लिए रूस बड़ा खतरा नहीं रहा है। शायद इसीलिए अब यह खबरें भी आ रही हैं कि अमेरिकी चुनावों से पहले भी ट्रम्प और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच एक मुलाक़ात हो सकती है।

NBC News के सूत्रों के अनुसार ट्रम्प चुनावों से पहले पुतिन से मिलकर 2010 Strategic Arms Reduction Treaty यानि START को renew करना चाहते हैं। इस संधि की वैधता अगले वर्ष समाप्त हो रही है। ऐसे में रूस के साथ इस अहम न्यूक्लियर हथियार नियंत्रक संधि पर हस्ताक्षर करके ट्रम्प चुनावों में बढ़त बढ़ाना चाहते हैं। ट्रम्प चाहते हैं कि चीन भी इस संधि पर हस्ताक्षर करे लेकिन चीन अब तक इस मुद्दे पर वार्ता करने से भागता रहा है। SCMP के मुताबिक, अगर रूस और अमेरिका के बीच इस संधि पर हस्ताक्षर होते हैं और चीन पर भी ऐसा करने के लिए दबाव बढ़ेगा! ऐसे में चीन भी इस संभावित ट्रम्प-पुतिन बैठक को लेकर चौकन्ना हो गया है। हालांकि, चीनी एक्स्पर्ट्स ने उम्मीद जताई है कि इस बैठक के होने के अनुमान बेहद कम ही हैं।

ट्रम्प-पुतिन के बीच की यह मुलाक़ात ना सिर्फ अमेरिकी चुनावों में ट्रम्प की जीत को पक्का कर सकती है, बल्कि यह चीन को भी बड़ा झटका दे सकती है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन के खतरे को देखते हुए रूस भी चीन के साथ “ट्रम्प कार्ड” खेल रहा है। पश्चिमी मीडिया में अक्सर अमेरिका-रूस की कथित दुश्मनी और चीन-रूस की कथित दोस्ती की एजेंडावादी खबरें छपती रहती हैं। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि रूस के लिए भी चीन उतना ही बड़ा खतरा है, जितना कि अमेरिका या भारत के लिए! रूस भी चीन की विस्तारवादी नीति का पीड़ित रह चुका है। इसके अलावा मध्य एशिया में प्रभुत्व की लड़ाई और Arctic में अपने प्रभाव को लेकर भी चीन-रूस आमने सामने हैं।

इन नए समीकरणों के बीच रूस और अमेरिका के रिश्ते बेहतरी की दिशा में आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। इस वर्ष चीन को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने के लिए जब ट्रम्प ने जी7 देशों की बैठक में भारत समेत अन्य देशों को भी शामिल करने का ऐलान किया था, तो उसमें रूस भी शामिल था। इसपर अमेरिकी विदेश सचिव माइक पोंपियो ने बयान देते हुए कहा था “जी7 में रूस को न्यौता देने का आखिरी फैसला ट्रम्प करेंगे, लेकिन मुझे लगता है कि रूसी लोगों के साथ वार्ता करना बहुत ज़रूरी है। ऐसे में जी7 में रूसी भागीदारी अहम है”। बता दें कि रूस वर्ष 2014 से पहले जी8 का हिस्सा था, लेकिन रूस द्वारा क्रिमिया पर कब्जा करने के बाद रूस को इस समूह से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था और रूस पर कई प्रतिबंध भी लगा दिये गए थे।

हालांकि, चुनावों से ठीक पहले ट्रम्प-पुतिन की इस बैठक से यह दोबारा निश्चित हो गया है कि अमेरिका के लिए चीन ही प्रमुख दुश्मन है और इसके लिए वह रूस के साथ नज़दीकियाँ बढ़ाना शुरू कर चुका है। अगर इस साल के चुनावों में भी ट्रम्प की जीत होती है तो आने वाले चार सालों में रूस-अमेरिका के रिश्तों की रूप-रेखा पूरी तरह बदल सकती है!

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