चीन के खिलाफ भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने साथ मिलकर एक नया कदम उठाया है जो चीन को ग्लोबल सप्लाई चेन से बाहर करने में काफी मदद करेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जापान ने इस समझौते की रूपरेखा को तैयार किया है और उसकी पहल पर ही भारत और और ऑस्ट्रेलिया उसके साथ आए हैं। तीनों देश एक त्रिपक्षीय व्यापारिक समझौते के लिए साथ आने को तैयार हुए हैं, जिसके तहत आपसी सप्लाई चेन को लचीला बनाया जाएगा। अब तीनों देशों के वाणिज्य और व्यापार मंत्रियों की बैठक के लिए तारीख तय करने की प्रक्रिया चल रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, जापान ने पहले भारत को इस प्रोजेक्ट के लिए संपर्क किया था। जापान के वित्त, वाणिज्य और व्यापार मंत्रालय ने भारत के साथ नवंबर में ही इस योजना को शुरू करने का सुझाव दिया था। अब चीन से बढ़ते टकराव के बीच भारत सरकार ने इस योजना को तेजी से आगे बढ़ाने का फैसला किया है। सरकार में उच्च स्तर पर इस योजना के लिए क्रियान्वन शुरू हो गया है।
गौरतलब है कि, यह मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण में भी मुख्य विषय रहा जिसमें उन्होंने कहा था कि व्यापारिक प्रतिष्ठान भारत को “सप्लाई चेन के हब” के रूप में देखने लगे हैं और अब भारत को “दुनिया के लिए निर्माण” शुरू करना होगा। भारत वैसे भी लगातार इस दिशा में प्रयासरत है कि वह चीन को हर उस क्षेत्र से बाहर करे, जहां आज वह आर्थिक रूप से काबिज है। भारत सरकार ने देश में कोयला खदानों के आवंटन में चीनी कंपनियों को बाहर कर दिया है। वहीं मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की बात करें तो यहाँ भी भारत सरकार की योजना है कि, चीन को भारतीय बाजार से खदेड़ा जाए। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पहले ही कह चुके हैं कि, भारत की योजना न सिर्फ घरेलू बाजार में बल्कि वैश्विक बाजार में भी खुद को चीन के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने की है।
जापान का प्रस्ताव इंडो पेसिफिक क्षेत्र को वैश्विक अर्थव्यवस्था का मुख्य केंद्र बना सकता है। साथ ही यह भारत में विदेशी निवेश और उच्च तकनीक की बढ़ोत्तरी में भी सहयोगी होगा। वैसे भी कोरोना के फैलाव के बाद भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ा है और यह योजना इसमें और भी इजाफा करेगी।
जापान की योजना है कि एक बार यह त्रिपक्षीय समझौता सफल हो जाए, तो भविष्य में आसियान देशों को भी इसमें शामिल किया जाए। गौरतलब है कि, आसियान देश आज चीन के सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार हैं। ऐसे में यदि वे भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की ओर आ जाते हैं तो यह चीन के लिए सबसे बड़ा आर्थिक झटका होगा।
गौरतलब है कि, अपनी कंपनियों को चीन छोड़ने के लिए जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की सरकार ने, 2 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद दी थी। चीन और जापान के बीच सेनकाकू द्वीप सहित अन्य इलाकों को लेकर विवाद चल ही रहा है। साथ ही, ऑस्ट्रेलिया में भी चीन के प्रभाव ने वहाँ की सरकार की चिंता बढ़ा रखी है। अतः भारत इन दोनों देशों के साथ मिलकर चीन को आर्थिक रूप से बहुत कमजोर कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप चीन का आर्थिक दबदबा अपने आप समाप्त हो जाएगा।