पहले जापान बस चीन की गुंडई देखता था, अब और नहीं, अब चीन की क्लास लगाएगा

और ये चीन के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होने वाला

जापान

आज पूरे विश्व की नजर इंडो-पैसिफिक पर टिकी है और इस क्षेत्र की दो शक्तियां यानि चीन और जापान एक दूसरे के खिलाफ अपनी पुरानी नीतियों को बदल एक नया आक्रामक रूप दे रहे हैं। एक तरफ जहां सीसीपी के महासचिव शी जिनपिंग ने चीन को और आक्रामक कर दिया है तो उसे देखते हुए जापान के शिंजो आबे भी अपनी शांति दुत की छवि को छोड़ आक्रामक रुख अपना रहे हैं।

अब तक ये दोनों ही देश एक दूसरे के खिलाफ खड़े नहीं हो रहे थे और इसका कारण है इनसे पहले दोनों देशों के पूर्व नेताओं द्वारा बनाई गयी नीतियां। एक तरफ जहां चीन अपने पूर्व राष्ट्रपति Deng Xiaoping द्वारा आंतरिक शक्ति बढ़ाने के दौरान ताकत न दिखाने की रणनीति पर चलता था तो वहीं, जापान द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के तत्कालीन प्रधानमंत्री Yoshida के सिद्धांत पर चलता था जिससे वह एक शांतिवादी देश बन चुका था। युद्ध के बाद Japan ने पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को लगभग पूरी तरह से अमेरिका के हवाले कर दिया था।

Yoshida सिद्धांत के कारण ही जापान 1990 के दशक तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका था। हालाँकि, तब तक चीन ने राष्ट्रपति Deng Xiaoping के नेतृत्व में बाजार संचालित आर्थिक सुधारों को अपनाया जिससे वर्ष 2013 तक Japan को पीछे छोड़ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बना। हालांकि, इसके बावजूद कभी चीन ने उतनी आक्रामकता नहीं दिखाई और अन्य देशों से अपनी वास्तविक शक्ति को छिपाता रहा।

आज, चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है, जबकि जापान तीसरे स्थान पर आता है। चीन ने जापान को आर्थिक ताकत के साथ साथ और सैन्य ताकत में भी पीछे कर दिया।

दूसरी ओर, 1990 के दशक तक जापान को शानदार वृद्धि के बाद भी कई आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। कार्यबल की कमी और सख्त प्रवासी कानूनों के कारण जापान एक गहरे वित्तीय संकट में फंस गया था। इसके अलावा, जापान की राजनीतिक अस्थिरता ने देश के वित्तीय संकट को और गहरा कर दिया था। वर्ष 1989 से वर्ष 2012 के बीच Japan ने 17 अलग-अलग प्रधानमंत्री देखे जापान पर जिसका गहरा प्रभाव पड़ा।

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे वर्ष 2012 के अंत में सत्ता संभालने के बाद से ही Japan की राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जब उन्होंने जापान की सत्ता संभाली थी तब यह द्वीपीय देश को एक अलग तरह के चीन का सामना करना पड़ा। चीन ने Xiaoping के सिधान्त को छोड़ जिनपिंग की Wolf-warrior diplomacy को अपना लिया था।

चीन ने अपने आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। अपने वैश्विक प्रभुत्व का दावा करने के लिए चीन पड़ोसी देशों विशेष रूप से भारत और जापान के पड़ोसियों को कर्ज के जाल में फंसाने लगा। ऐसे में लंबे समय बाद राजनीतिक संकट से बाहर आया जापान एक मुकदर्शक बन कर रह गया।

जब शी जिनपिंग ने Xiaoping के सिद्धांत को ठंडे बस्ते में डाल दिया था तब जापान के पास भी चीन की विस्तारवादी नीतियों को देखते हुए Yoshida Doctrine को छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। अब Japan ने भी Yoshida Doctrine को छोड़ आक्रामक रुख को अपना लिया है और चीन को करारा जवाब दे रहा है। जापान ने इंडो-पैसिफिक में कई ऐसे कदम उठाए हैं जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि अब यह देश मुकदर्शक नहीं बल्कि एक खिलाड़ी की तरह वैश्विक राजनीति में चीन को मात देगा।

शिंजो आबे ने दक्षिण पूर्व सागर के रणनीतिक जलमार्गों में चीनी आक्रामकता को टक्कर देने के लिए और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच सहयोग, सहायता और कूटनीति को आगे बढ़ाने वाले कई साहसिक कदम उठाए हैं जिससे आसियान सदस्यों के बीच जापान की आर्थिक और सुरक्षा स्थिति भी मजबूत होगी।

वास्तव में, जापान ने फिलीपींस और वियतनाम को भी अपने साथ कर लिया है क्योंकि दोनों देश चीन से उतनी ही घृणा करते हैं जितना Japan करता है। रिपोर्ट के अनुसार Japan ने वियतनामी कोस्ट गार्ड के लिए छह गश्ती जहाजों और फिलीपींस तट रक्षक के लिए 94 मीटर लंबी मल्टी-रोल रिस्पांस वेसल (MRRV) का निर्माण करने का फैसला किया है।

Indo-Pacific क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव को रोकने के लिए जापान भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ QUAD को एक नया रूप देने की कोशिश कर रहा है जिसमें सैन्य सहयोग भी शामिल है।

यही नहीं जापान ने COVID-19 महामारी आने से पहले ही चीन पर निर्भर सप्लाइ चेन में कटौती करने की योजना बनाना शुरू कर दिया था। टोक्यो लगातार जापान की कंपनियों को चीन से उत्पादन शिफ्ट करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है तथा इसमें आर्थिक रूप से मदद कर रह है।

आर्थिक और सुरक्षा स्थिति को मजबूत करने के अलावा, टोक्यो अपने पैसिफिज्म या शांतिवाद को भी पूरी तरह से त्याग रहा है। जापान ने अमेरिका से F-35B स्‍टील्‍थ फाइटर विमान खरीदने का फैसला किया है तो वहीं चीन के युद्धपोतों से बढ़ते खतरे को देखते हुए हाइपरसोनिक स्‍पीड से मार करने में सक्षम एंटी शिप मिसाइल बना रहा है। इसके साथ ही अपने Izumo-class हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने तथा Next Gen हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम भी कर रहा है। जापान अपने हवाई ईंधन भरने और सैन्य परिवहन क्षमताओं में वृद्धि कर रहा है, तथा एंटी-सैटेलाइट हथियारों का निर्माण करने पर विचार कर रहा है।

जापान ने Indo-Pacific क्षेत्र में चीन के आक्रामकता का जवाब देते हुए एक मुखर भूमिका निभाई है। शिंजो आबे के नेतृत्व में Yoshida Doctrine को त्यागना चीन के लिए बुरी खबर है। इसका असर न सिर्फ Indo-Pacific क्षेत्र में होगा बल्कि जापान एक बार फिर से दुनिया में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर सकता है।

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