नागा शांति वार्ता में मिली बड़ी कामयाबी : नागा समूह ने आतंकवादी संगठन NSCN को छोड़, RN Ravi का दिया साथ

नागालैंड में वर्षों से चल रहा अलगाववादी आंदोलन खत्म होने वाला है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर नागा समूह सरकार की शर्तों पर शांति समझौते के लिए तैयार हो गए हैं। नागा विद्रोहियों में केवल एक संगठन National Socialist Council of Nagaland ‘NSCN’ के अतिरिक्त बाकी सभी नागा समुदाय अपनी विशेष नागा संस्कृति के संरक्षण की गारंटी की शर्त पर अलग झंडे और और अलग संविधान की मांग को छोड़ने पर सहमत हो गए हैं।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नागालैंड की प्रमुख सिविल सोसाइटी और NSCN के अलावा अन्य सशस्त्र विद्रोही गुट NSCN की इन मांगों और रवैये से सहमत नहीं है और वो मोदी सरकार के साथ हैं। नागालैंड का प्रभावी संगठन Nagaland Gaon Bura Federation ‘NGBF’ सरकार के पक्ष में खुलकर आ गया है। NGBF की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ” NSCN के नेताओं की यही प्रवृत्ति है कि जो उनकी राजनीतिक विचारधारा को न माने उसे नागा-द्रोही और देशद्रोही करार दिया जाए।”

साथ ही रिपोर्ट में बताया गया है कि वार्ता में तनाव होने की खबरें सत्य नहीं हैं और नागालैंड की असल स्थिति को नहीं दर्शाती, बल्कि यह NSCN की चाल है। इस रिपोर्ट से स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि मोदी सरकार नागा वार्ताकार के जरिये नागा विद्रोहीयों में फूट डालने और नागालैंड को अतिवादियों के चंगुल से छुड़ाने में सफल हो रही है।

बता दें कि NGBF नागालैंड के ग्राम प्रधानों का संगठन है। इसका अलगाववादियों के बजाए सरकार को समर्थन देना बताता है कि नागालैंड के आम लोग मोदी सरकार पर विश्वास करते हैं, और वे आश्वस्त हैं कि उनकी विशेष संस्कृति भारतीय संप्रभुता स्वीकार करने के बाद भी अक्षुण्ण रहेगी।

यह केंद्र सरकार की एक बड़ी सफलता है कि पिछले 70 वर्षों से चल रहे संघर्ष को मोदी सरकार ने महज 5 वर्षों में शांत कर दिया। इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारत सरकार के वार्ताकार आर एन रवि की है। हमने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे श्री रवि ने NSCN की स्थिति कमजोर कर दी है।

2015 में भारत सरकार ने नागा विद्रोहियों के साथ शांति के लिए एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया था। इस एग्रीमेंट के तहत विद्रोहियों ने यह स्वीकार कर लिया था कि वे सभी मुद्दे आपसी बातचीत से सुलझाएंगे।

इस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट के बाद शांति वार्ता में भारत सरकार का पक्ष था कि नागा विद्रोहियों के साथ भविष्य में होने वाले किसी भी शांति-समझौते के तहत उन्हें भारत सरकार की संप्रभुता में पूर्ण आस्था व्यक्त करनी होगी। फ्रेमवर्क एग्रीमेंट के तहत एक समावेशी समझौता होगा, जिसमें नागा इतिहास और संस्कृति की विशिष्टता बनाए रखने पर पूरा ध्यान दिया जाएगा।

परंतु इसके विपरीत National Socialist Council of Nagaland ‘NSCN’ ने बातचीत के दौरान अलग झंडे और अलग संविधान की मांग को उठाकर कश्मीर जैसी स्थिति पैदा कर दी थी।

विद्रोहियों की ओर से ऐसी मांग उठने के बाद भारत सरकार ने अपनी रणनीति बदलते हुए नागा समुदाय से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित किया। इस काम को सफलता मिली श्री रवि के नेतृत्व में। उन्होंने वही नीति अपनाई जो भारत सरकार ने कश्मीर में अपनाई थी। उन्होंने कश्मीर की तरह ही नागालैंड में भी अलगाववादी तत्वों से बात करने के स्थान पर ग्राम प्रधानों से संवाद शुरू किया।

इसका फायदा यह हुआ कि NSCN जैसे अतिवादी संगठनों के बहकावे में आने के बजाय नागा समुदाय ने भारत सरकार पर भरोसा जताना शुरू किया।

यही कारण था कि NSCN ने उन्हें वार्ताकार के पद से हटाने की बात की थी। मगर जब तक NSCN आर एन रवि की चाल को समझता, उन्होंने चालाकी से नागाओं में NSCN द्वारा फैलाए भ्रम को तोड़ दिया। आर एन रवि ने नागा विद्रोहियों के सबसे प्रभावी समूह को शांति वार्ता में अप्रासंगिक बना दिया है। अब लगभIग तय हो गया है कि समझौता जल्द ही होगा और नागालैंड भारत को पूरे मन से गले लगाएगा।

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