एक तरफ अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते खटास से शीत युद्ध की संभावना बनती जा रही है तो दूसरी तरफ चीन दिन-प्रतिदिन अपने सहयोगियों को खोता जा है। फिलीपींस के बाद अब एक और एशियाई देश बीजिंग से दूरी बना रहा है। मलेशिया में सत्ता परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्री मुहिद्दीन यासीन चीन को लगातार एक बाद एक झटके दे रहे हैं।
इसी क्रम में अब मलेशिया ने चीन की अवैध ‘nine-dash line’ सिद्धांत को खारिज कर दिया है, जिसके तहत चीन दक्षिण चीन सागर के 90 प्रतिशत जल क्षेत्र को अपने हिस्से के रूप दिखाता है। दक्षिण चीन सागर में बढ़ते टकराव और कई देशों द्वारा चीन के इस विस्तारवादी नीति के विरोध के बाद मलेशिया चीन के दावों को खारिज करने वाला सबसे नया देश है।
चीन यह दावा करता है कि सामरिक जलमार्गों के उत्तरी हिस्सों में मलेशिया को अपना स्वयं का एक Continental Shelf स्थापित करने का कोई अधिकार नहीं है। चीन के इन अवैध दावों के जवाब में अब मोहिउद्दीन यासीन की सरकार ने UN Convention on the Law of the Sea लागू किया है।
दरअसल, 29 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र में मलेशियाई मिशन ने संयुक्त राष्ट्र महसचिव एंटोनियो गुटेरेस को लिखे एक नोट में कहा था कि मलेशिया चीन के किसी भी समुद्री अधिकारों के संबंध में ऐतिहासिक अधिकारों, या क्षेत्राधिकार के दावों को खारिज करता है।
इस नोट में कहा गया था कि विवादित जलमार्ग में चीन का दावा UN Convention on the Law of the Sea के विपरीत हैं। इसमें आगे लिखा गया है कि मलेशिया सरकार का मानना है कि दक्षिण चीन सागर में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का दावा अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत नहीं है।
हालांकि, चीन और मलेशिया सामरिक जलमार्ग के संबंध में संयुक्त राष्ट्र को कई महीनों से नोट वर्बल जमा करते रहे हैं लेकिन अब तक यह मलेशिया Continental Shelf की स्थापना के अपने अधिकार पर नोट लिखता था। परंतु इस बार मलेशिया ने दक्षिण चीन सागर में चीन के अवैध दावों पर नोट वर्बेल जमा किया है जो उसके बदलती नीति को दर्शाता है।
वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक डेरेक ग्रॉसमैन का कहना है कि, “दक्षिण चीन सागर के ऊपर मलेशिया का नवीनतम बयान आश्चर्यजनक है क्योंकि महाथिर ने अमेरिका या चीन में से किसी का भी पक्ष चुनने से नकार दिया था। हालांकि अब मलेशिया के पास एक नया नेता है।”
मुहिद्दीन के इस चीन विरोधी कदम पूरे विश्व के लिए एक संकेत है। विदित हो कि मलेशिया के पूर्व प्रधान मंत्री नजीब रज्जाक अपने चीन समर्थक नीतियों के लिए जाने जाते थे जिन्हें हाल ही में कई आरोपों में दोषी पाए जाने के बाद 12 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी।
रज्जाक ने मलेशिया के प्रधानमंत्री के रूप में अपने नौ साल के लंबे कार्यकाल के दौरान चीन को खुश करने की नीतियों पर ही काम किया था। उन्होंने चीनी निवेश का समर्थन किया था, इसके कारण उन पर मलेशिया को चीन के हाथो बेचने का भी आरोप लगाया जाता है।
रज्जाक के बाद महाथिर मोहम्मद मलेशिया के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने मई 2018 के चुनावों में चीन के मुद्दे को उछाल कर ही जीत हासिल की थी।
उस दौरान ऐसा लगा कि महाथिर मोहम्मद मलेशिया को चीन के चंगुल से मुक्त कराएंगे लेकिन वह बढ़ते चीनी प्रभाव का मुकाबला करने में असफल रहे। दक्षिण चीन सागर और हुवावे जैसे मुद्दों पर उन्हें चीन के दबाव के सामने झुकना पड़ा। पिछले वर्ष महाथिर ने सुझाव दिया था कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को बीजिंग के साथ मिल कर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा था कि वे वास्तव में उतने ताकतवर नहीं हैं कि चीन का विरोध कर सकें। इसके अलावा महाथिर ने चीनी टेलीकॉम दिग्गज हुवावे का समर्थन कर अमेरिका की हुवावे नीति की आलोचना की थी।
तब चीन मलेशिया पर अपना प्रभाव डालने में सक्षम था। पहले नजीब रज्जाक के ऊपर और फिर महाथिर के साथ। परंतु अब मलेशिया की स्थिति बदल रही है और मुहिद्दीन के शासन में कई चीजें जल्दी बदल रही हैं। भारत के साथ दोस्ती बढ़ाने से ले कर चीन का खुल कर विरोध जताने तक, मलेशिया अपने विदेश नीति में एक अहम बदलाव ला चुका है। प्रधानमंत्री बनने से पहले ही मुहिद्दीन ने चीन पर कड़ी कार्रवाई की थी। पिछले वर्ष मलेशिया में एक विदेशी मुद्रा घोटाले में 600 चीनी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया था और मलेशिया के तत्कालीन गृह मंत्री मोहिउद्दीन ने चीन को अपने नागरिकों पर लगाम लगाने की सलाह दी थी।
सत्ता में आने के बाद मुहिद्दीन सरकार ने पहली बार पांच कंपनियों के लिए 5 जी अनुबंध निरस्त कर दिया, जिससे हुवावे नुकसान होना तय है और अब दक्षिण चीन सागर विवाद को लेकर मलेशिया ने बीजिंग को बड़ा झटका दे कर अपने चीन विरोधी रुख को स्पष्ट कर दिया है।