चीन की debt trap policy में फंसे एक और पड़ोसी देश की भारत ने मदद की है। यह देश है मालदीव। हिन्द महासागर में द्वीप समूहों वाले देश मालदीव को भारत सरकार ने कुल 500 मिलियन डॉलर की आर्थिक मदद देने का फैसला किया है। इसका उपयोग मालदीव में इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने और वहाँ के प्रमुख द्वीपों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए होगा। इसमें से 400 मिलियन डॉलर लाइन ऑफ़ क्रेडिट के रूप में दिए जाएंगे। इससे मालदीव 400 मिलियन डॉलर तक का कर्ज़ जब चाहे ले सकता है। यह उसे आसान किश्तों पर उपलब्ध होगा। जबकि, बाकी 100 मिलियन डॉलर ग्रांट के रूप में, अर्थात सहायता के रूप में दिया जाएगा।
भारत द्वारा मालदीव में Greater Male connectivity project की शुरुआत की जा रही है, जो Maldives में अब तक का सबसे बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट है। इस प्रोजेक्ट में मालदीव की राजधानी माले के तीन द्वीपों (Villingili, Gulhifahu and Thilafushi) को जोड़ा जाएगा। इस अवसर पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, “एक बार पूरा होने के बाद, यह लैंडमार्क परियोजना इन द्वीपों के बीच कनेक्टिविटी को सुव्यवस्थित करेगी। इससे आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार पैदा होंगे और माले क्षेत्र में समग्र शहरी विकास को बढ़ावा मिलेगा।”
भारत के इस फैसले से मालदीव के लोगों में भारी ख़ुशी है। इस मौके पर पर खुशी जताते हुए मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने ट्वीट कर कहा, “मालदीव और भारत के संबंधों के बीच आज एक ऐतिहासिक क्षण है जब हमें बजट सहायता के रूप में 250 मिलियन डॉलर और ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के लिए 500 मिलियन डॉलर की भारतीय सहायता प्राप्त हुई है। मैं पीएम नरेंद्र मोदी और भारतीय लोगों को उनकी उदारता और दोस्ती के लिए धन्यवाद देता हूं।”
A landmark moment in Maldives-India cooperation today as we receive Indian assistance of USD250 million as budget support and USD500 million for the Greater Malé Connectivity Project. I thank PM @narendramodi and the Indian people for their generosity and friendship.
— Ibrahim Mohamed Solih (@ibusolih) August 13, 2020
गौरतलब है कि, चीन अपनी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति के तहत भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध बढ़ाकर और उन्हें सस्ता लोन देकर अपनी ओर करता है। लेकिन बाद में जब ये देश लोन नहीं चुका पाते तो उनकी जमीन या प्रमुख बंदरगाहों को चीन हड़प लेता है। चीन इनका उपयोग भारत को हिन्द महासागर में आंख दिखाने के लिए करता है। इसी नीति के तहत चीन ने श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को हड़प लिया था और पिछले कुछ सालों से मालदीव पर भी दबाव बना रहा था।
इसी के जवाब में भारत ने नहले पर दहला फेंका और मालदीव को सस्ता लोन और आर्थिक मदद देकर अपने हितों को क्षेत्र में सुरक्षित कर लिया। मालदीव की वर्तमान सरकार वैसे भी अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की पक्षधर रहती है। इसी साल जब पाकिस्तान ने OIC में कश्मीर का मुद्दा उठाया था तब वह मालदीव ही था जिसने पाकिस्तान का पुरजोर विरोध करते हुए कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताया था। अब भारत का यह पैगाम मालदीव के साथ मित्रता को और मज़बूत करेगा।
यह प्रोजेक्ट सामरिक दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है उतना ही लाभकारी यह आर्थिक दृष्टि से भी है। इस प्रोजेक्ट के तहत भारत और मालदीव के बीच direct cargo ferry service भी शुरू होगी। भारत खुद को एक ‘वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब’ बनाने की योजना पर कार्य कर रहा है, अतः मालदीव के बाजारों तक भारतीय उत्पादों को पहुंचाने में यह योजना काफी मददगार होगी। अगले कुछ महीनों में कई द्विपक्षीय परियोजनाएं शुरू होने वाली हैं, अतः मालदीव के साथ यह कार्गो सेवा शुरू करने का बिल्कुल सही समय है।”
बता दें कि, पिछले वर्ष मालदीवी राष्ट्रपति इब्राहिम ने ही इस प्रोजेक्ट के लिए भारत के विदेश मंत्री से सहायता का अनुरोध किया था।
यह पहला मौका नहीं है जब भारत ने मालदीव की मदद की है। इससे पहले भी भारत ने कोरोना के फैलाव के बाद चीन में फंसे मालदीवी छात्रों को वहां से बचाकर निकाला था। यही नहीं, भारत ने मालदीव को कोरोना से बचाव में सहयोगी दवा HCQ की आपूर्ति भी की थी। यही कारण है कि, मालदीव भी भारत के साथ सदैव सहयोग करता है। यह प्रोजेक्ट, दोनों देशों की आर्थिक तरक्की के साथ ही हिन्द महासागर में चीन को बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाने पर काफी मददगार साबित होगा।