“डिग्री गयी भाड़ में, अब ज्ञान पर ज़ोर होगा”, ब्रिटिश राज देश से अब खत्म हुआ है

अब छात्रों के पूर्ण विकास होगा!

नई शिक्षा नीति

pc: jagran.com

भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू कर मैकाले के ज़माने से चली आ रही ब्रिटिश राज की शिक्षा नीति का अंत कर दिया है। दरअसल, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था तो उन्होंने एक ऐसी शिक्षा नीति बनाई जिसका उद्देश्य अंग्रेजी बोलने वाले और आदेश मानने वाले बाबुओं की ऐसी फ़ौज खड़ी करना था जो हमेशा अंग्रेजों के वफादार रहें। यही कारण था कि भारत में स्कूली शिक्षा के स्तर पर अनुशासन और आदेशात्मक पढ़ाई का ऐसा दौर चला जिसने बच्चों के अंदर की रचनात्मकता को ही ख़त्म कर दिया ।

अब तक भारत की स्कूली व्यवस्था में 10 + 2  शिक्षा का पैटर्न था, जिसमें विद्यार्थी को किसी एक ही स्ट्रीम के विषय को पढ़ने की बाध्यता थी। यही व्यवस्था विद्यार्थियों को लकीर का फकीर बनाने के लिए उपयोग होती रही थी। परंतु अब भारत ने अपनी नीति में व्यापक बदलाव किया है। अब 10 +2 के स्थान 5+3+3+4 पर की नीति होगी जिसमें छात्र अलग-अलग और अपनी इच्छानुसार विषयों का चुनाव करेंगे। इससे ना सिर्फ उनकी रचनात्मकता बढ़ेगी बल्कि अन्य विषयों से जुड़े ज्ञान भी वो बराबर तरीके से ग्रहण कर पाएंगे।

स्कूली शिक्षा के स्तर पर सबसे बेहतर बदलाव यह है कि प्री- स्कूल शिक्षा या आंगनबाड़ी में पढ़ने की उम्र अब बढ़ाकर 8 साल कर दी गई है।  अब 8 साल तक के बच्चे को किसी परीक्षा के बोझ से नहीं दबना होगा और न ही उसका बचपन पास-फेल के बंधन में बंधेगा।  इस उम्र में सिर्फ बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास पर जोर दिया जाएगा और उनमें संस्कार के साथ टीम वर्क की भावना आदि अच्छे गुणों को विकसित करने पर ज़ोर होगा।  साथ ही 5वीं कक्षा तक अपनी मातृभाषा में शिक्षा मिलने से बच्चे अपनी सांस्कृतिक जड़ों के और नज़दीक आएंगे।

इस नीति की सबसे खास बात यह है कि, पहली बार स्कूली स्तर पर कौशल विकास की बात की गई है। कक्षा 8वीं तक के बच्चों में पढ़ाई के अतिरिक्त उन्हें एक ‘स्किल’ भी सिखाई जाएगी जिससे वो भविष्य में रोजगार के लिए तैयार होने लगें। देखा जाए तो विद्या के साथ ही विद्यार्थी को किसी अन्य स्किल या कौशल का ज्ञान देना प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति का हिस्सा था,  लेकिन कालांतर में अंग्रेजी शिक्षा ने इस पद्धति को योजनाबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया था। इसी को अब भारत सरकार ने आधुनिक जरूरतों के अनुरूप ढालते हुए पुनः लागू किया है। आज जब भारत में बड़ी मात्रा में निवेश हो रहे हैं तो विद्यार्थियों के कौशल विकास पर स्कूली स्तर से ही ध्यान दिए जाने की आवश्यकता भी थी।

भारत सरकार द्वारा लागू नई नीति के अनुसार अब विद्यार्थी एक साथ इतिहास और गणित या भौतिक विज्ञान और कॉमर्स पढ़ सकेंगे। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार की नौकरियों के लिए तैयार करना है। अब तक भारत के युवाओं को अपनी शिक्षा के हिसाब से ही नौकरियां खोजनी पड़ती थी। यदि उनकी शिक्षा के अनुरूप नौकरी नहीं आती थी तो, ऐसे में विद्यार्थियों के पास अधिक विकल्प भी नहीं होते थे। मगर अब नई नीति उनके लिए और अधिक अवसर पैदा करेगी।

यह भारत की तीसरी शिक्षा नीति है और यह विश्वस्तरीय नीति भी है। गौरतलब है कि, यह ऐसी ही नीति अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप आदि सभी विकसित देशों में मौजूद है। यहाँ तक कि पुरानी नीति का जन्मदाता ब्रिटेन भी 1989 में अपनी ही नीति को बदल चुका है।

इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने डिग्री की पढाई की एक बड़ी समस्या का भी समाधान किया है। पहले भारत में तीन वर्ष का डिग्री कोर्स था। अब तक भारत में विद्यार्थी अपनी बैचलर्स की पढ़ाई के दौरान यदि किसी कारणवश डिग्री बीच में छोड़ता था तो उसे दोबारा शुरू से अपनी डिग्री की पढ़ाई शुरू करनी पड़ती थी लेकिन अब नए बदलाव के अनुसार विद्यार्थी अपनी डिग्री को साल दर साल पूरा करेंगे।  अगर कोई विद्यार्थी एक साल की पढाई के बाद अपनी डिग्री छोड़ देता है तो उसे एक सर्टिफिकेट मिलेगा जिसके द्वारा वो अन्य किसी भी राज्य में अपनी डिग्री दूसरे साल से शुरू कर सकेगा।

सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए भी अब मेडिकल और इंजीनियरिंग परीक्षाओं की तर्ज पर,  राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा एक ही होगी। यह नीति भारत की उच्च शिक्षा में समानता लाएगी जिससे भारत में शिक्षा का स्तर सुधारा जा सकेगा। स्कूली स्तर पर अपनी मातृभाषा में पढ़ाई का प्रावधान जहाँ भारत की विभिन्न संस्कृतियों को संरक्षण देगा, तो वहीं उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय एकरूपता लाकर उच्च शिक्षा का स्तर और ज़यादा निखरेगा।

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